यूपी के कई जिलों में बाघ, तेंदुआ और भेड़ियों का आतंक है। लखीमपुर में बाघ के हमले में 5 लोगों की मौत हो चुकी है। बहराइच में भेड़िए मार्च से अब तक 10 लोगों को शिकार बना चुके हैं। इनमें 9 बच्चे और एक महिला शामिल है। 5 अक्टूबर की रात एक भेड़िए को ग्रामीणों ने मार डाला। उससे पहले वन विभाग 5 भेड़िए पकड़ चुका है। मतलब कुल 6 भेड़ियों का सफाया हो चुका है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। जिस लंगड़े भेड़िए को झुंड का सरदार बताया जा रहा है, वह पकड़ से दूर है। हालांकि, शनिवार देर शाम प्रशासन की ओर से साफ किया गया कि आखिरी भेड़िए को भी मार दिया गया। लखीमपुर, पीलीभीत, बहराइच और सीतापुर में जंगली जानवरों के हमले बढ़े हैं। पीलीभीत में तेंदुए ने कई लोगों पर हमला किया। बड़ा सवाल ये है कि आबादी वाले इलाकों में जंगली जानवरों का आतंक अचानक क्यों बढ़ गया? क्या वन क्षेत्र कम हो रहा? इन इलाकों में जंगल के किनारे आई बाढ़ इसकी वजह तो नहीं? भास्कर एक्सप्लेनर में इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे। लखीमपुर में बाघ का हमला… पेट फाड़ा, गर्दन खा गया
लखीमपुर में मोहम्मदी वन रेंज के आसपास के गांवों में कई जानलेवा हमले हो चुके हैं। ताजा घटना राजेपुर शाह गांव की है, जहां 1 अक्टूबर को किसान प्रभु दयाल (50) पर बाघ ने हमला कर दिया। वह खेत में चारा लेने गए थे। अचानक बाघ ने उन पर झपट्टा मारा, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। ग्रामीणों ने बताया, गांव से 5 लोग घास काटने निकले थे। प्रभु दयाल गुरुद्वारा के पास गुरप्रीत के खेत पर घास काटने लगा। अन्य लोग दूसरी जगह पर घास काट रहे थे। प्रभु दयाल के साथी घास काट कर जब आए, तो उन्हें प्रभु दयाल नहीं दिखा। उन्होंने सोचा, प्रभु दयाल घास काटकर चला होगा। इसके बाद वे लोग भी घर चले गए। प्रभु दयाल के भाई रजनीश शर्मा ने बताया कि घर से सुबह 7 बजे बोल कर निकले थे कि दो घंटे में आ जाऊंगा। पत्नी से बोला था कि ससुराल चलना है, तैयार रहना। करीब 10 बजे गांव के सभी लोग वापस आ गए, लेकिन प्रभु दयाल नहीं आया। हम लोग उसे ढूंढने निकले। मेरे साथ प्रभु का बेटा भी था। गन्ने के खेत के पास साइकिल खड़ी मिली। खेत में देखा तो घास काटने वाली दराती अलग पड़ी थी। खून के निशान बने हुए थे, फटे कपड़े पड़े थे। जहां कपड़े मिले, वहां से लगभग 300 मीटर दूर प्रभु का क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला। बाघ ने पेट फाड़ दिया था, गर्दन पर भी हमला किया था। बहराइच में भेड़िए ने मां के पास सो रहे बच्चे को खींचा, ग्रामीणों ने पीटकर मार डाला
रामपुर गांव में 5 अक्टूबर की रात भेड़िए ने मां के पास सो रहे तीन साल के नियाज पर हमला किया। भेड़िया बच्चे को खींचकर जाने लगा, तभी मां की आंख खुल गई। उसने शोर मचा दिया। इस पर भेड़िया बच्चे को छोड़कर भागा। लेकिन पास ही बंधी एक बकरी को ले गया। शोर पर ग्रामीण भेड़िए के पीछे भागे। करीब 200 मीटर दूरी पर उसे घेर लिया। लाठी-डंडों से पीटकर उसे मार डाला। वन विभाग के DFO अजीत सिंह ने भेड़िए के मारे जाने की पुष्टि की। लेकिन, बहराइच के 50 गांवों की करीब 80 हजार आबादी का खौफ खत्म नहीं हुआ है। जिस लंगड़े भेड़िए को सरदार बताया जा रहा है, वह अभी भी जिंदा बताया जा रहा है। आबादी वाले इलाकों में क्यों बढ़े हमले?
लखीमपुर जिले में जिन इलाकों में बाघ हमला कर रहा, पास ही में दुधवा टाइगर रिजर्व है। यहां करीब 50 गांव में बाघ और तेंदुए का खौफ हमेशा बना रहता है। दुधवा नेशनल पार्क में 2022 की गणना में 105 बाघ मिले थे। इनकी संख्या बढ़ने की वजह से टेरेटरी की लड़ाई होती है। कई बार बाघ जंगल से निकलकर गांव की तरफ आ जाता है। वह इंसान और मवेशियों का शिकार करने लगता है। इस इलाके में गन्ने की खेती भी खूब होती है, इसलिए उन्हें छिपने की जगह मिल जाती है। लखीमपुर खीरी में पहले भी बाघ के हमले होते रहे हैं। हालांकि, कई साल बाद बाघ के हमलों में 5 लोगों की जान गई है। वहीं, पीलीभीत में तेंदुए के हमले के मामले सामने आए हैं। इसी तरह बहराइच के जिस महसी इलाके में भेड़ियों ने हमले किए, वहां भी जंगल का क्षेत्र है। दो टाइगर रिजर्व, एक वन्यजीव अभयारण्य
लखीमपुर, पीलीभीत, बहराइच में जहां जंगली जानवरों के हमले बढ़े हैं, वहां वन क्षेत्र ज्यादा है। इन तीन जिलों में दो टाइगर रिजर्व है, एक वन्य जीव अभयारण्य है। सभी का वन क्षेत्र मिलाकर करीब 1500 वर्ग किलोमीटर है। यहां बाघ, गैंडा, तेंदुआ, भेड़िया, हाथी, हिरण समेत कई तरह के जंगली जानवर पाए जाते हैं। गन्ने के खेत चुनौती, हमला कर इन्हीं में छिप जाते हैं बाघ
लखीमपुर जिले के गोला में बड़ी चीनी मिल है। इसलिए यहां पूरे इलाके में गन्ने के ही खेत नजर आते हैं। सिर्फ 1 से 2 फीसदी रकबे में ही दूसरी फसल लगती है। कई जगह पर तो गांव के किनारे-किनारे और गांव में जाने वाली सड़कों के दोनों तरफ गन्ने ही दिखते हैं। ये गन्ने के खेत जंगली जानवरों के शिकार के लिए सबसे मुफीद होते हैं। अब तक जितने भी हमले हुए, सभी की लाश इन्हीं गन्नों के खेतों में मिली। वन विभाग के कर्मचारी संजय बिस्वाल कहते हैं- कई बार हमें सूचना मिली कि फला गांव में बाघ देखा गया। हम लोग वहां पहुंचे। पहुंचने और सेटअप तैयार करने में एक घंटा लग ही जाता है। ऐसे में बाघ दूसरी जगह जा चुका होता है। फिर अगर गन्ने के खेत में भी छिप जाए, तो हम उसे देख नहीं पाते। हमने इसके लिए इलाके में 12 से ज्यादा कैमरे लगाए हैं। कई जगह पिंजरा रखा गया है। बाघ, तेंदुआ, भेड़िया जैसे जंगली जानवर इंसानी बस्ती में कैसे आ जाते हैं?
वन्य जीवों के जानकार बताते हैं कि जंगल का रकबा कम होता जा रहा है। इंसानी आबादी जंगल के करीब तक बसती जा रही है। इससे जंगली जानवर इंसानों पर हमले कर रहे हैं। ‘अवर वर्ल्ड इन डाटा’ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2010 से 2020 के बीच भारत में करीब 7 लाख हेक्टेयर जंगल काटा जा चुका है। भारतीय वन संरक्षण की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सोनभद्र में सबसे ज्यादा जंगलों की कमी आई है। उदाहरण के लिए, पीलीभीत टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 620 वर्ग किलोमीटर है। मानक के मुताबिक, इतनी जगह में 20 से 24 बाघों को ही ठीक से रखा जा सकता है। लेकिन, 2022 में इस टाइगर रिजर्व में बाघों की गणना में सामने आया कि 73 से भी ज्यादा बाघ यहां रह रहे हैं। ऐसे में बाघों की संख्या पर्यटन के लिहाज से तो अच्छी है, लेकिन उनके लिए टेरेटरी कम पड़ने लगती है। तब वो आसपास के गांवों में जाने लगते हैं। इस तरह ऐसे जानवरों और इंसानों का आमना-सामना और संघर्ष बढ़ जाता है। आबादी वाले इलाके में बाघों के घुसने की एक वजह उनका गन्ने के खेत को जंगल समझना भी है। गोला रेंजर संजीव तिवारी कहते हैं- बाघ और तेंदुए जंगल से निकलकर पशुओं के पीछे आ जाते हैं। गन्ने के खेत में ठिकाना बना लेते हैं। यहां पर शिकार करने में उनको ज्यादा भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती। आसानी से पशुओं को दबोच लेते हैं। आबादी के आसपास जो लोग गन्ने की बुआई कर रहे हैं, उनसे कई बार गन्ना बोने से मना किया। लेकिन वे लोग मानते नहीं। गन्ने की वजह से बाघ को पकड़ने में दिक्कत आती है। क्या हमलों का बाढ़ से भी है कनेक्शन?
यूपी के कई जिलों में हर साल बाढ़ आती है। इस बार भी प्रदेश के 49 जिले बाढ़ से प्रभावित हुए। पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच समेत आसपास के जिलों में बाढ़ का कहर देखा गया। कई इलाके अभी भी प्रभावित हैं। वन्य जीवों के जानकार बताते हैं कि बाढ़ के कारण जंगली जानवर बेघर हो जाते हैं। वह इंसानी बस्तियों का रुख करने लगते हैं। भेड़िए नदी के किनारे ही रहना पसंद करते हैं। इसकी वजह ये है कि वहां उन्हें शिकार आसानी से मिल जाता है। लेकिन जब बाढ़ का पानी बढ़ जाता है, तो इनके रहने की जगहों पर भी पानी भर जाता है। तब ये बस्ती का रुख करते हैं। बाकी जानवरों के साथ भी ऐसा ही है। जानवर आदमखोर कैसे बन जाते हैं?
आदमखोर का मतलब होता है, जो इंसान को खाता हो। आसान भाषा में ये शब्द उन जानवरों के लिए इस्तेमाल होता है, जो इंसान को अपना भोजन बनाने लगता है। ऐसे में, सवाल उठता है कि कोई जानवर आदमखोर क्यों बन जाता है? इसका जवाब मिलता है- वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 में। इसमें इस शब्द का विस्तार से जिक्र है। एक्ट के मुताबिक, जो जानवर ‘डेंजरस टू ह्यूमन लाइफ’ यानी इंसानों के लिए खतरनाक होता है। उसके शिकार की अनुमति दी जाती है। इसके लिए भी एक प्रॉसेस अपनाया जाता है। जैसे टाइगर, लेपर्ड, एलिफैंट जैसे जानवर जब इंसानी जिंदगी के लिए खतरा हो जाते हैं, तो इन्हें मारने की अनुमति है। अगर कोई जानवर लगातार इंसानी इलाकों में आता है और उनकी जान लेता है तो उसे आदमखोर कहा जाता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, कई बार जानवर किसी खास चोट या बीमारी के कारण भी इंसानों पर हमला करने लगते हैं। उनके लिए सामान्य शिकार जैसे हिरण या अन्य जानवरों का पीछा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इंसानों का शिकार भेड़ियों या बाघों के लिए आसान हो जाता है। ये भी पढ़ें… लखीमपुर में टाइगर का नाइट वॉक, VIDEO, दुधवा नेशनल पार्क से बाहर टहलते दिखा, एक महीने में बाघ के हमले से तीन की मौत लखीमपुर खीरी जिले में दुधवा नेशनल पार्क से सटे कुकुरा बांकेगंज रोड पर सड़क पर मस्ती में टहलते हुए बाघ का वीडियो सामने आया है। बाघ की सड़क पर चहल-कदमी से इलाके में दहशत का माहौल है। पिछले एक महीने में बाघ के हमलों से तीन लोगों की जान जा चुकी है, जिससे लोग पहले से ही खौफ में हैं। गाड़ी में बैठे लोगों ने यह मोबाइल से यह वीडियो बनाया है। पढ़ें पूरी खबर…
