साइबर ठगों ने कानपुर की एक महिला को पहले स्मगलिंग में आरोपी बताया। उसके बाद उन्हें डिजिटल अरेस्ट किया। महिला को छोड़ने के नाम पर 90 लाख रुपए की ठग लिए। इस मामले में पीड़िता ने साइबर थाना में रविवार को रिपोर्ट दर्ज करा दी है। रूद्र ग्रीन बिठूर निवासी मीना चावला द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें 17, 18 और 19 मई 2024 को उनके मोबाइल नंबर पर फोन आया। फोन करने वालों ने स्काइप आईडी से कॉल किया था। खुद को दिल्ली साइबर क्राइम से होने की बात कही।उन्हें स्काइप आईडी पर धमकी दी कि उनका स्मगलिंग के केस में नाम आया है। इसकी जांच ED द्वारा की जा रही है। फोन करने वालों ने उन्हें एक कोर्ट केस का समन भी भेजा। उन्हें डरा धमकाकर कई बार में 90 लाख रुपए वसूल लिए। ठगी के लिए 15 नंबरों का किया इस्तेमाल
मीना चावला की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके एक मोबाइल नंबर पर 8 नंबरों और दूसरे मोबाइल नंबर पर सात अलग-अलग मोबाइल नंबरों से कॉल आई। आरोपियों ने उन्हें एक ही जगह पर बैठे रहने को कहा। फिर उन्हें इस केस से बचाने के नाम पर रुपए वसूल लिए। उन्होंने भारत सरकार की साइबर फ्रॉड कम्प्लेंट वेबसाइट पर भी इसकी शिकायत दर्ज कराई है। आगे जानिए क्या है डिजिटल अरेस्ट? साइबर अपराधी कैसे इसका इस्तेमाल लूट के लिए कर रहे? क्या है इससे बचने के तरीके? क्या है डिजिटल अरेस्ट?
साइबर एक्सपर्ट्स इसे कानूनी तौर पर कोई शब्द नहीं बताते हैं। हालांकि, यह साइबर अपराधियों के लिए एक नया तरीका बन गया है। इसमें अपराधी, पीड़ित को डराकर, लालच या किसी दूसरे बहाने से वीडियो या ऑडियो कॉल पर जोड़े रखते हैं। डर और लालच दिखाकर कुछ घंटे या हफ्तों तक कैमरे के सामने रखते हैं। कई मामले ऐसे भी सामने आए, जिसमें साइबर ठगों ने पीड़ितों तो सोने तक नहीं दिया। साइबर एक्सपर्ट्स की माने तो साइबर ठग ज्यादातर ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं, जो रिटायर हो चुके हैं या फिर फिलहाल कोई बड़े अफसर या डॉक्टर-इंजीनियर हैं। इसके पीछे की वजह है- इनके बैंक अकाउंट में मोटी रकम होने की गारंटी। ठगों को पता होता है कि इनके अकाउंट में ज्यादा पैसे होंगे। साथ ही इनकी जिंदगी इतनी बीत चुकी होती है कि उनके कौन-कौन से दस्तावेज कहां-कहां इस्तेमाल हुए हैं, ये ठीक से इन्हें याद नहीं होगा। डिजिटल अरेस्ट के लिए क्या तरीके अपनाते हैं ठग?
ऐसे मामलों में अक्सर देखा जाता है कि साइबर ठग खुद को पुलिस, ईडी कार्यालय, सीबीआई या इनकम टैक्स ऑफिसर बताकर फोन करते हैं। बातचीत के लिए कुछ कॉमन पैतरें और बातें कहते हैं- पहला तरीका: साइबर ठग फोन करके कहते हैं- आपके आधार कार्ड, सिम कार्ड, या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों के लिए हो रहा है या हुआ है। ऐसे में अगर आप बचना चाहते हैं तो पैसे ट्रांसफर कर दीजिए। दूसरा तरीका: ठग फोन पर कहते हैं- विदेश से आपके नाम कोई पार्सल आया है, जिसमें गैरकानूनी सामान है। ठग फोन पर खुद को कस्टम या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का कोई बड़ा अधिकारी बताते हैं। सामने वाले इंसान का भरोसा जीतने के लिए वो उनसे जुड़ी जानकारियां बताते हैं। जांच के नाम पर अकाउंट नंबर से लेकर संवेदनशील जानकारियां निकलवाते हैं। तीसरा तरीका: इसमें साइबर ठग बेटा या बेटी या किसी नजदीकी रिश्तेदार के नाम का इस्तेमाल करते हैं। फोन कर कहते हैं- आपके परिवार का कोई सदस्य गंभीर मामले में फंस गया है। अगर आप इन्हें छुड़ाना चाहते हैं तो पैसे ट्रांसफर कर दीजिए। ऐसे मामलों में कथित किसी बड़े अधिकारी से बात करवाकर पैसे से केस सेटलमेंट की बात करते हैं। ठग शिकार बनाने वाले व्यक्ति के बेटा या बेटी का नाम अक्सर इस्तेमाल करते हैं। ऐसे मामलों में जब पीड़ित डर जाते हैं तो ठग वीडियो कॉल पर जुड़ने के लिए कहते हैं। अगर कोई कॉल पर जुड़ने से मना करता है तो ठग उनके घर पुलिस भेजने की बात करते हैं। वीडियो कॉल पर जुड़ने पर ठग पहले से तैयारियां करके रखते हैं। ऐसे अपराधी पहले से थाने का सेटअप, नकली एसपी, दरोगा, नारकोटिक्स और सीबीआई जैसे अधिकारियों से बात कर पीड़ित को पूरी तरह फंसाने की कोशिश करते हैं। साइबर ठग कैसे तय करते हैं अपना शिकार?
साइबर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि डिजिटल अरेस्ट करने वाले गैंग रिटायर अफसरों, डॉक्टर, शिक्षकों और इंजीनियर का डेटा खरीदते हैं। ऐसे डेटा डार्क वेब (वो साइटों जो सामान्य सर्च में नहीं दिखती) पर आसानी से उपलब्ध होता है। साइबर अपराधी यहां से अपने टारगेट ग्रुप का डेटा खरीदते हैं। उदाहरण के लिए बैंक की डिटेल मिलने पर वो लोगों को फोन करते हैं और उन्हें उनके खाते की ही जानकारी देते हैं। भरोसा जीतने के लिए सेविंग अकाउंट से लेकर एफडी तक में जमा राशि की पूरी डिटेल बताते हैं। मामला असली लगे, इसके लिए वो जिले के प्रशासनिक अफसरों के नाम का इस्तेमाल करते हैं। इन चालबाजों से सामने वाला इंसान अपराधियों पर भरोसा कर बैठता है। पीड़ित को लगता है कि वह सच में किसी मुसीबत में फंसने वाला है। डिजिटल अरेस्ट होने से कैसे बचें?
नोएडा पुलिस ने जुलाई महीने में एक 12 पॉइंट्स की एडवाइजरी जारी की। इसमें कहा गया कि पुलिस कभी भी किसी का अरेस्ट वारंट वॉट्सऐप पर जारी नहीं करती है। नोएडा पुलिस के सामने कुछ महीनों में ही 10 डिजिटल अरेस्ट के मामले आए। पुलिस ने इसके बचने के ये तरीके बताए: प्रदेश में कितना बड़ा है साइबर ठगों का नेटवर्क?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट (2023) के मुताबिक, साइबर क्राइम के मामले में उत्तर प्रदेश 8वें नंबर पर है। इसमें भी साइबर क्राइम के जरिए यौन शोषण के मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है। साल 2020 में यूपी में कुल 11 हजार 97 साइबर क्राइम के मामले दर्ज हुए। 2021 में 8 हजार 829 और 2022 में 10 हजार 117 केस दर्ज हुए। —————— ये खबर भी पढ़िए- JE बोले- पत्नी मेरी जासूसी कर रही: रास्ते में फोटो खींचती है, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को मेल कर गलत शिकायत करती इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अवर अभियंता (JE) विद्युत के पद पर तैनात एक शख्स ने अपनी पत्नी और साले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। पति-पत्नी के बीच शादी के बाद मनमुटाव हुआ और मामला अदालत में है। ऐसे में JE का कहना है कि पत्नी उसे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान कर रही है। यूनिवर्सिटी की मेल ID, आधिकारिक वेबसाइट पर गलत शिकायतें, फोटो आदि डाल देती है। चोरी-छिपे रास्ता चलते उसकी फोटो खींची जाती है। पर्सनल फोटो ऑफिस के मेल और अन्य जगहों पर भेज दी जाती है। इससे वह मानसिक रूप से परेशान है। JE ने पुलिस को मेल की कॉपी, फोटो, स्क्रीन शॉट और अन्य सबूत पुलिस को सौंपे हैं। पढ़ें पूरी खबर…
