आईआईटी बीएचयू दीक्षांत समारोह में सभ्यता, संस्कार और सांस्कृतिक की झलक देखने को मिली। समारोह में कुछ ऐसे भी मेधावी शामिल थे जिन्होंने विषम परिस्थितियों को मात देकर सफलता हासिल की, कोई घर का पहला इंजीनियर तो किसी के पिता ने कर्ज लेकर पढ़ाया.. और दीक्षांत का वह दृश्य तब भावात्मक हो गया जब गले में चमचमाता मेडल लेकर आईआईटीयंस अपने परिवार से मिले…आइए अब आपको कुछ मेधावियों की कहानी से रूबरू कराते हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की छात्रा और दीक्षांत में सबसे अधिक मेडल पाने वाली भव्या ने कहा – मेरे लिये ये दिन एक्स्ट्रा ऑर्डनरी है। हर दिन ऐसा ही होता है। इस कैंपस में हर दिन अच्छे रहे हैं। आज उन सबको लेकर जा रही हूं। फिलहाल, एक एमएनसी में सॉफ्टवेयर डेवलपर की तरह से काम कर रहीं हूं। माता-पिता दोनों चार्टेड अकाउंटेंट हैं। भाई इंजीनियरिंग कर रहा है। आईआईटी-बीएचयू में एडमिशन लिया तो कोविड में दो साल ऑनलाइन पढ़ाई हुई। उसके बाद दो साल ही कैंपस में रही। बनारस के बारे में सोचो तो सबसे पहले मेरे दिमाग में घाट का ख्याल आता है। काशी बहुत रिलैक्स शहर है- आदित्य
सात मेडल पाने वाले आदित्य नायक ने बताया- बनारस का एक्सपीरियंस काफी अलग रहा। चार साल की पढ़ाई में काशी के सारे मंदिरों को विजिट किया। घाटों पर कई रातें बिताई। बहुत रिलैक्स शहर है। सात मेडल का श्रेय माता-पिता को जाता है। आदित्य ने बताया कि वो उड़ीसा के जार्जपुर का निवासी है और पुणे में काफी समय तक रहा। उन्होंने बताया कि शिक्षा मंत्री ने मंच पर मेडल देते समय पूछा कि कहां से हो। इस पर जवाब दिया- उड़ीसा। धर्मेंद्र प्रधान इस जवाब पर काफी खुश हुए उन्होंने कहा कि बड़ी खुशी की बात है कि उनके भी राज्य से ऐसे मेधावी आ रहे हैं। करीब एक मिनट तक शिक्षा मंत्री से बातचीत हुई। कोयले की खान में पला-बढ़ा–और अब माइनिंग पर ही कर रहा रिसर्च माइनिंग इंजीनियर के दिलीप कुमार ने कहा कि – कोयले की खान में पला-बढ़ा, माइनिंग में बीटेक किया और अब टाटा स्टील, जमशेदपुर में माइनिंग विभाग में ही काम कर रहा हूं। होम टाउन यहीं धनबाद में है। पिता माइनिंग में ही काम करते हैं। बनारस से ये सीखा कि लाइफ तनाव मुक्त होकर जीना चाहिए। ये फील्ड काफी चैलेजिंग है। संसाधन खत्म हो रहे हैं, उनको तकनीक की मदद से बचाकर रखने के लिए काम करना है। बढ़ई का बेटा बना फार्मास्यूटिकल इंजीनियर
फार्मास्यूटिकल इंजीनियर के जतिन दीक्षांत समारोह समाप्त होने के बाद अपने माता-पिता के साथ एक कोने पर खड़े थे। वह अपने मित्रों से मदद लेकर फोटो खिंचवा रहे थे और उनके माता-पिता काफी भावुक दिखाई दे रहे थे। जतिन ने बताया कि बहादुरगढ़ हरियाणा का निवासी हूं। पिता बढ़ई हैं कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था कि बेटा फार्मास्यूटिकल इंजीनियर बनेगा। एम. फॉर्मा करने के बाद पीएचडी में एडमिशन लिया। एकेडमिक और साइंटिस्ट बनकर रहना काफी पसंद है। उम्र के साथ बढ़ रहे अल्जाइमर रोग पर कंट्रोल करने के लिए पीएचडी करनी है। कैंसर के मरीजों को ठीक करने के लिए करूंगा रिसर्च
चंदौली के रहने वाले अखिलेश कुमार यादव को आईआईटी-बीएचयू में बेस्ट थीसिस का अवॉर्ड मिला। इससे काफी उत्साहित हूं। कैंसर इलाज के मैकेनिज्म पर रिसर्च करने की वजह से मेरे काम को काफी पहचान मिली है। अली लैब आधार पर ही काम कर रहा हूं। आगे अपने रिसर्च को मानवों पर प्रयोग करके देखना है। इसके लिए बायो ग्लास मटेरियल्स और बायो मेडिकल पर रिसर्च जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि आगे चलकर कैंसर के मरीजों के लिए रिसर्च करूंगा और उन्हें हमारे रिसर्च से फायदा हो यही कामना करता हूं।
