बलिया के नगरा में सार्वजनिक रामलीला समिति द्वारा आयोजित ऐतिहासिक रामलीला के दौरान मुनि आगमन,ताड़का व सुबाहु वध की लीला का मंचन किया गया। कलाकारों का अभिनय मंचन देख दर्शक भाव-विभोर हो गए। लीला मंचन के अनुसार जब बक्सर वन में राक्षस गण महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ में विध्वंस डाल रहें हैं। तब विश्वामित्र चक्रवर्ती नरेश राजा दशरथ से यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को मांगने उनके राजमहल पहुंचे। महर्षि ने राजा दशरथ से कहा कि राजन ताड़का नाम की राक्षसी से पूरा समाज भयभीत है। वह जप तप यज्ञ इत्यादि नहीं करने देती है। इसलिए यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को लेने आया हूं। यह सुनते ही राजा दशरथ दुखी हो गए और कहा कि मुनिवर मेरे राम व लक्ष्मण बहुत कोमल व सुकुमार हैं, भला ताड़का जैसी राक्षसी का कैसे वध करेंगे? ऋषिवर मैं स्वयं आपके यज्ञ की रक्षा के लिए चलूंगा, लेकिन राम व लक्ष्मण को नहीं जाने दूंगा। राजा दशरथ की बात सुन महर्षि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और बोले कि मैं तुम्हारी अयोध्या नगरी को भस्म कर दूंगा। उसी समय वशिष्ठ मुनि आते हैं और विश्वामित्र को शांत कराते हुए राजा दशरथ को समझाते हैं कि राम लोक कल्याण के लिए अवतरित हुए हैं। इसलिए इनको महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दीजिए। राजा दशरथ राम व लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ विदा करते हैं। भगवान राम रास्ते मे ही ताड़का नाम की राक्षसी का वध करते हैं। इसके बाद श्रीराम मारीच को समुद्र के उस पार फेंक देते हैं तथा सुबाहु का वध कर विश्वामित्र के यज्ञ को संपन्न कराते हैं। ताड़का, सुबाहु का वध होते ही रामलीला प्रांगण जय श्रीसियाराम के उद्घोष से गुंजायमान हो उठा। लीला का शुभारंभ गोठवां के पूर्व प्रधान राम शिरोमणि तिवारी ने श्रीराम-लक्ष्मण की आरती पूजन कर किया।
