Drishyamindia

रोहिणी नक्षत्र में करें करवाचौथ का पूजन:कानपुर में रात 8:07 बजे होगा चंद्रोदय, पूजन का शुभ मूहुर्त शाम 5:30 से 6:45 तक

Advertisement

अखंड सौभाग्यवती के लिए रविवार को महिलाएं कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी यानी की रविवार 20 अक्टूबर को करवाचौथ का व्रत रहेंगी। दांपत्य जीवन को खुशहाल व पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत चंद्रमा के सबसे प्रिय रोहणी नक्षत्र के संयोग में मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस नक्षत्र में चंद्रमा सबसे प्रसन्न मुद्रा (उच्च श्रेणी) का माना गया है। रोहिणी नक्षत्र में पूजा करने से सुहागिनों का दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा। यह संयोग दो साल बाद बन रहा है। ज्योतिषियों की माने तो वर्ष 2022 में रोहिणी नक्षत्र में करवाचौथ व्रत संपन्न हुआ था, जबकि 2023 में करवाचौथ की पूजा मृगसिरा नक्षत्र में हुई थी। रविवार सुबह 8:32 बजे लगेगा रोहिणी नक्षत्र ज्योतिषाचार्य मनोज द्विवेदी की माने तो रोहिणी नक्षत्र रविवार सुबह 8:32 बजे लगेगा और 21 अक्टूबर की सुबह 6:51 बजे तक रहेगा। मान्याता है कि चंद्रमा के 27 नक्षत्रों में रोहिणी नक्षत्र सबसे प्रिय नक्षत्र माना जाता है। यह नक्षत्र वृषभ राशि के अंतर्गत आता है। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है।दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाने के लिए शुक्र गृह लाभदायक है। जिसके कारण दांपत्य जीवन खुशहाल व संपन्न बना रहता है। ज्योतिषाचार्य के मुताबिक रविवार को चंद्रोदय से पूर्व पूजन का सबसे शुभ मूहुर्त रविवार शाम 5:30 से शुरु होकर 6:45 तक रहेगा। इस समय के दौरान करवाचौथ की कथा व पूजन करना सर्वाधिक लाभदायक होगा। चंद्रोदय की पूजा है विशेष महत्व ज्योतिषाचार्य मनोज द्विवेदी ने बताया कि रोहिणी नक्षत्र में पूजा करते समय गृह नक्षत्रों की सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो मनोकामानएं पूर्ण करने में सहायक होतीं हैं। बताया कि कानपुर में चंद्रोदय रविवार रात 8:07 बजे होगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि चंद्रोदय होने के दौरान महिलाओं को अपने उपयुक्त स्थान पर उपस्थित होना चाहिए, चंद्रोदय का समय पूजा का सबसे अच्छा समय होता है। मान्यता है कि चंद्रोदय का समय व्यतीत होने के कुछ समय बाद चांद वृद्धावस्था में होता है। क्यों होती है चंद्रमा की पूजा चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है और इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और पति की आयु भी लंबी होती है। करवा चौथ का व्रत सुहागिने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं।इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। मिट्‌टी का करवा पूजा के लिए लाभकारी प्रेम, त्याग व विश्वास के महापर्व में मिट्टी के करवे का विशेष महत्व है। पूजन के दौरान सुहागिनें चंद्रमा को जल अर्पण कर व्रत पूर्ण करेंगी। करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है। ज्योतिषाचार्याें ने बताया कि कोई भी व्रत, अनुष्ठान में मिट्‌टी का विशेष महत्व होता है। मिट्‌टी को धरती का स्वरूप माना गया है और धरती के पुत्र मंगल है। संतान प्राप्ति के लिए शुक्र के साथ मंगल ग्रह का भी अच्छा होना बहुत महत्वपूर्ण है, जिस कारण सोने, चांदी के करवे के साथ मिट्‌टी का करवा अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कल सुबह भद्रा का समापन, व्रत पर कोई प्रभाव नहीं सुहागिन महिलाओं में व्रत के दौरान भद्रा के दोष का बहुत संशय बना हुआ है। ज्योतिषाचार्याें के मुताबिक 19 अक्टूबर की रात 8:18 से भद्रा की शुरुआत है जिसका समापन कल सुबह 6:46 पर हो जाएगा। भद्रा दोष का विचार होलिका दहन व रक्षाबंधन के दौरान किया जाता है। किसी भी व्रत व अनुष्ठान में इसका विचार नहीं होता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

मध्य प्रदेश न्यूज़

यह भी पढ़े