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सिद्धि पीठ मां पाटेश्वरी मंदिर में भक्तों की अपार भीड़:बेटे के ज़िंदा होने पर उज्जैन के राजा ने कराया था मंदिर का निर्माण

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शारदीय नवरात्र पर अयोध्या स्थित देवी मंदिरों में मां की विभिन्न स्वरूपों का पूजन अर्चन किया जा रहा है। कैंट क्षेत्र स्थित सिद्धि पीठ मां पाटेश्वरी मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ देखने को मिली है। यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है, जो श्रद्धालुओं की श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है, जहां सुबह-शाम भक्तों का तांता लगा रहता है। पूरे नवरात्र यहां मेले जैसा दृश्य रहता है। श्रद्धालु अपनी मनवांछित सभी कामनों को पूर्ण करने माता का पूजन अर्जन करते है। राम मंदिर से दस किलोमीटर स्थित मां पाटेश्वरी देवी का दिव्य दरबार है। पावन मंदिर के पास ही एक सरोवर है। सरोवर व मंदिर की पौराणिक महत्ता के कारण यह स्थान सिद्धपीठों में शामिल है। 108 शक्ति शक्तिपीठों में भी इसका स्थान है। यहां माता सती के पट का कुछ अंश गिरा था। इसलिए इस स्थान का नाम मां पाटेश्वरी पड़ा तथा माता यहां गर्भगृह में पिंडी रूप में विराजमान हैं। दूर दराज से भक्त आते हैं मां के दर्शन के लिए मां के दर्शन के लिए प्रतिदिन दस हजार से अधिक भक्त आते है। मंदिर का मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद करीब 50 मीटर दूर एक विशाल अंगने में मंदिर का गर्भगृह है। मंदिर को देखने मात्र से पता चलता है कि यह अति प्राचीन मंदिर है। विद्वानों के अनुसार मंदिर के महत्व को लेकर कई किंवदंतियां है, लेकिन कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिलते है। हालंकि यह आस्था का केंद्र है, भक्तों का मानना है कि मां के दरबार आने वाले प्रत्येक भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों को अपार शांति का एहसास होता है। बेटे को जीवनदान मिलने के बाद उज्जैन के राजा अनुभुज ने कराया मंदिर का निर्माण किंवदंती के अनुसार उज्जैन के राजा अनुभुज के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो जाने पर राजा पुत्र के शव को इसी रास्ते लेकर शमशान घाट जा रहे थे। रात्रि हो जाने के कारण वे इसी स्थान पर नीम के पेड़ के नीचे रुक गये। दुखी: राजा पुत्र वियोग में विलाप कर रहे थे कि वहां एक बूढ़ी माता आयीं और राजा से विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने अपना सारा दुख: माता को बता दिया। माता ने राजा से कहा कि यदि तुम्हारा बालक जिन्दा हो जाये, तो क्या तुम मंदिर व सरोवर निर्माण का वचन दे सकते हो? राजा ने माता को नमन कर वचन निभाने का संकल्प लिया तत्पश्चात माता ने राजा से सरोवर का जल लाकर बालक पर छिड़कने को कहा। राजा ने जैसे ही सरोवर का जल बालक पर छिड़का वह जीवित हो उठा। उसी के बाद राजा ने संकल्प के अनुसार इस स्थान पर मंदिर व पक्के सरोवर का निर्माण करवाया था। माता सती का पट इसी स्थान पर गिरा मंदिर के पुजारी राम केवल ने बताया कि मान्यता यह भी है कि जब माता सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में सती हुई थी तो भगवान शिव उन्हें आकाश मार्ग से लेकर जा रहे थे। माता सती का पट इसी स्थान पर गिरा था। मां के दरबार में भक्तों की मुरादें होती है पूरी आने वालों भक्तों का मानना है कि मां के दरबार में चुनरी बांधने से मुरादें पूरी होती हैं। मंदिर परिसर में हनुमान जी, शिव जी, शिरडी के सांई बाबा, ज्वाला माता, शनि देव, ब्रह्म बाबा, माता काली, भैरव नाथ का भी स्थान बना हुआ है। नवरात्र के दिनों में विशेष पूजा-अर्चना होता है तथा सप्तमी व नवमी को विशाल भण्डारे का आयोजन भी किया जाता है।

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