बाल विकास और पुष्टाहार विभाग में तैनात 124 मुख्य सेविका और 92 लिपिक भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। इनके सामने परिवार चलाने का संकट खड़ा हो गया है। कर्मचारियों को चिंता है कि वे इस बार भी बिना मानदेय के दिवाली कैसे मनाएंगे। कर्मचारियों का कहना है कि दिवाली पर जब बच्चे कुछ मांगेंगे तो क्या जवाब देंगे। 22 से 24 साल से कर रहे सेवा इन कर्मचारियों को पिछले 15 महीनों से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। यह स्थिति तब है जब ये पिछले 22 – 24 वर्षों से लगातार विभाग में सेवाएं दे रहे हैं। इस संबंध में संघ की अध्यक्ष रजनी सिंह ने बताया कि उनकी सेवा विस्तार फाइलें कई बार शासन में भेजी गईं पर कुछ न कुछ कारण बताकर उन्हें वापस कर दिया गया। हालात ऐसे हो गए हैं कि कर्मचारी भुखमरी के कगार पर पहुंच गए है। क्या होगा मुख्यमंत्री के आदेश का हाल ही में मुख्यमंत्री ने संविदा कर्मियों, दैनिक वेतन भोगियों और डेली बेसिस कर्मचारियों को दिवाली से पहले हर हाल में वेतन देने का आदेश जारी किया है। बावजूद इसके 15 माह से बिना वेतन काम कर रहे इन कर्मचारियों का कोई पुरसाहाल नहीं है। रजनी सिंह ने कहा कि क्या मुख्यमंत्री का आदेश हम लोगों पर लागू नहीं होता या हम उत्तर प्रदेश के नागरिक नहीं हैं। भुखमरी के कगार पर परिवार संघ की उपाध्यक्ष रीता यादव यादव और संगीता प्रसाद ने बताया कि परिवार के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है। लिपिकों की स्थिति तो और अधिक खराब है। आए दिन पैसे को लेकर उनके घर में अशांति फैल रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि मानदेय भुगतान आदेश दें जिससे उनके घरों में भी दिवाली का त्योहार उत्साह से मनाया जा सके। 23210 रुपए मिलता है लिपिकों को मानदेय बाल विकास और पुष्टाहार विभाग में मुख्य सेविकाओं का मानदेय 25,640 रुपए और लिपिकों को 23,210 रुपए मिलता है। इतने कम पैसे में परिवार का जीवन यापन मुश्किल है। इसके बाद भी 15 माह से मानदेय नहीं दिया गया है।
