नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) लखनऊ की आडिट रिपोर्ट ने बीएचयू में वर्षों से हो रही वित्तीय गड़बड़ियों की कलई खोल दी है। रिपोर्ट में अस्पताल के दवा खरीद से लेकर विश्वविद्यालय के मशीनों के बर्बादी तक पर चर्चा की है। विश्वविद्यालय में इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद हर कोई इसकी चर्चा कर रहा है और विश्वविद्यालय के कार्य शैली पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। एकल टेंडर से हुई मशीनों की अनियमित खरीद का मामला
कैग के रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बीएचयू में एकल टेंडर से मशीनों की खरीद हुई है। कैग रिपोर्ट के अनुसार, जीएफआर के नियम 162 (i) और (iii) के अनुसार खरीद में आपूर्तिकर्ता फर्मों की संख्या कम से कम तीन होनी चाहिए, ताकि आपूर्तिकर्ता फर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा हो और विभाग को इसका स्पष्ट लाभ मिल सके। जांच से पता चला कि विश्वविद्यालय ने निविदाएं आमंत्रित करके ई-खरीद पोर्टल के माध्यम से डीएसटी-एफआईएसटी योजना के तहत प्राणीशास्त्र विभाग के लिए “मल्टी इलेक्ट्रोड एरे सिस्टम” सितंबर 2020 खरीदा मेसर्स मार्सप सर्विस प्राइवेट लिमिटेड से 57.96 लाख रूपए की एकल बोली हुई और इसे स्वीकार कर लिया गया। इसके अलावा अधिक प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के लिए फिर से निविदा का सहारा लिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उसी एक टेंडर में ही कंपनी निर्धारित कर ली है।कैग ने रिपोर्ट में लिखा कि एकल निविदाओं से प्रतिस्पर्धी दरों का लाभ न लेकर अनियमितता बरती गई। जवाब में, विश्वविद्यालय ने अभी तक जवाब नहीं दिया है। केंद्रीय पुस्तकालय के लिए खरीदे गए थे 36 एसी
रिपोर्ट में सामने आया कि केंद्रीय पुस्तकालय के लिए विश्वविद्यालय की तरफ से खरीदे गए 36 एसी 10 साल बाद भी उपयोग में नहीं लाए जा सके। इसके लिए 70.45 लाख में इनकी आपूर्ति की थी। एसी चलाने के लिए बिजली लोड की जरूरत होती है। यह अलग उपकेंद्र के बाद ही संभव था। जो कि नहीं बन सका। इसलिए सभी एसी का यूज नहीं हुआ और रखे हुए खराब हो गए। कैग ने पूछा कि खरीद से पहले बिजली विभाग या इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग से मार्गदर्शन क्यों नहीं लिया गया।