हरियाणा की पराजय से कांग्रेस कितना और क्या सबक सीखेगी, यह तो कांग्रेस ही जाने, लेकिन सिर पर खड़े महाराष्ट्र चुनाव में उसकी स्थिति अब उतनी मज़बूत नहीं होगी जितनी लोकसभा चुनाव के बाद मानी जा रही थी। शिवसेना (उद्धव) ने तो यहाँ तक कह दिया है कि जीती हुई बाज़ी कैसे हारी जाती है, यह कांग्रेस से सीखना चाहिए। शिवसेना का कहना है कि महाराष्ट्र में भी कांग्रेस अकेले लड़ना चाह रही हो तो पहले से बता दे ताकि हम अपनी तैयारियाँ अपने स्तर पर कर सकें। इस बयान का सीधा सा मतलब यह है कि महाराष्ट्र चुनाव में सीटों की जितनी हिस्सेदारी कांग्रेस माँग रही थी, उतनी अब उसे नहीं मिलने वाली है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा चुनाव के परिणामों से पहले कुछ बैठकों में कांग्रेस महाराष्ट्र में सर्वाधिक सीटें माँग रही थी। यानी शिवसेना (उद्धव) और शरद पवार की पार्टी से भी ज़्यादा। लगता है अब कांग्रेस की वह बढ़त पिछड़ जाएगी। केवल शिवसेना ही नही, इंडिया गठबंधन में शामिल ज़्यादातर दलों ने कांग्रेस के सामने सलाहों का अम्बार लगा दिया है। कोई कह रहा है कि नेतृत्व की कमजोरी के कारण हरियाणा के कांग्रेसी नेता अपने- अपने दम्भ में चूर रहे जिसका ख़ामियाज़ा पार्टी को भुगतना पड़ा। इसके उलट भाजपा का प्रबंधन ज़्यादा अच्छा था, इसलिए वह हार को जीत में बदलने में कामयाब हो गई। आप पार्टी का कहना है कि कांग्रेस ने अति आत्म विश्वास में लगभग जीता हुआ हरियाणा खो दिया। ये बात अलग है कि चार-पाँच सीटों पर कांग्रेस आप पार्टी के कारण ही हारी है। कश्मीर के संभावित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कांग्रेस को सलाह दे डाली है। उन्होंने कहा है कि हरियाणा की हार का सही और गहराई से विश्लेषण करके ग़लतियाँ नहीं सुधारी गईं तो कांग्रेस को आगे भी नुक़सान हो सकता है। सलाह देने में तृणमूल कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। उसका कहना है कि कांग्रेस अहंकार के कारण हारी है। क्षेत्रीय दलों को हीन दृष्टि से देखना उसकी आदत है। यही वजह है कि वह जब-तब जीती हुई बाज़ी हार जाती है। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में बना उत्साहजनक वातावरण हरियाणा की हार के बाद एक बार फिर से डिरेल हो जाएगा। कार्यकर्ताओं में उत्साह जब तक आएगा, तब तक महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव आ जाएँगे। इन राज्यों में कांग्रेस का क्या परफ़ॉर्मेंस रहेगा, भविष्य ही बताएगा।