दुर्गा पूजा में सप्तमी को पट खुलने के बाद सभी भक्त मां के दर्शन करने में लग जाते हैं। पटना के कई पूजा पंडालों में मूर्ति नहीं, बल्कि साक्षात लड़कियां देवी बनकर दर्शन देती हैं। उनका पूरा साज श्रृंगार देवी की तरह रहता है। तीन दिन तक लगातार करीब 10 घंटे एक ही आसन में रहती हैं। शरीर में किसी तरह का हलचल नहीं दिखता है। इन्हें चैतन्य देवी बोला जाता है। माता के दर्शन के दौरान चैतन्य देवी को देखकर भक्तों को पता ही नहीं चलता है कि देवियों के इस रूप में मूर्ति नहीं लड़कियां हैं। भास्कर की इस रिपोर्ट में पढ़िए पटना के डाकबंगला, कंकड़बाग, पटना सिटी में चैतन्य देवी बनने से पहले क्या तैयारी करनी पड़ती हैं। इसके लिए चयन कैसे होता है। कोई लड़की कैसे चैतन्य देवी बन सकती है… पंडालों में मां दुर्गा के नौ रूपों में नौ चैतन्य देवी होती हैं। कहीं दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती को भी बिठाया जाता है। इसके साथ कार्तिक और गणेश भी लोगों को दर्शन देते हैं। चैतन्य देवी बनने वाली लड़कियां पूरे जीवन सात्विक भोजन करने का संकल्प लेती हैं। यह जरूरी है कि वो कुंवारी/ कुंवारा और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले होने चाहिए। ये देवियां प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की छात्राएं होती हैं, जिन्हें कई वर्षों से एकाग्रता की शिक्षा दी जाती है। आजीवन सात्विक खाना खाने का लेती हैं संकल्प पटना केंद्र में ब्रह्माकुमारी संस्थान की निदेशिका संगीता ने कहा कि ‘यहां राजयोग मेडिटेशन सिखाया जाता है। जो भी बच्चियां देवी बनती हैं, उनमें यह देखा जाता है कि वह दिव्यता, पवित्रता को अच्छे से फॉलो करती हो। इसके साथ ही वह दिव्य गुण जैसे- मधुरता, नम्रता, सहनशीलता को धारण किए हो। इसमें से सबसे महत्वपूर्ण सात्विकता को अपनाना है।’ 18 से 25 साल के उम्र के बीच की लड़कियों का होता है चयन उन्होंने आगे कहा कि ‘यह बच्चियां 18 से 25 साल के उम्र के बीच की होती हैं, जो देवी के रूप में बैठती हैं। यह बच्चियां हर दिन राज योग का अभ्यास करती हैं तो एक तरह से वो परमात्मा की शक्ति ले रही हैं। वह इन्हीं संकल्पों से बैठती हैं कि वह देवी हैं। सभी भक्त उनके दर्शन करने आए हैं। इसलिए हमें उन्हें शांति और शक्ति का दान देना हैं। अध्यात्म को अपने जीवन में उतारने का देते संदेश निदेशिका ने कहा कि ‘राजयोग मेडिटेशन से देवत्व को प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती है। इसे शुरू करने का उद्देश्य यही था कि इसके बारे में आम लोगों को भी पता चले और वो भी इसे अपने जीवन में धारण करे। वो भी अध्यात्म को अपने जीवन में उतारें।’ 44 साल पहले हुई थी शुरुआत इसकी शुरुआत पटना में 1980 से हुई थी। सबसे पहले कदमकुआं के पास चैतन्य देवियों को बैठाया गया था और अब धीरे-धीरे यह अन्य स्थानों पर भी बैठाया जाने लगा। वर्तमान में शेखपुरा, महेंद्रू, राजा बाजार, सिपारा, चौक, डाकबंगला, दानापुर, खगौल, संपतचक और कंकड़बाग में बैठाया जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को देवी दर्शन देने के लिए चैतन्य देवियां बैठती हैं। लगातार 10 घंटे तक बैठती हैं लोगों को देवी के रूप में दर्शन देने के लिए रोज शाम 6 से सुबह 4 बजे तक चैतन्य देवियां बैठती हैं। इस दौरान उन्हें लिक्विड फूड दिया जाता है, जैसे नारियल पानी या जूस। भरपेट भोजन करने के बाद नींद आने लगेगी, इसलिए उससे बचा जाता है। परमात्मा से शक्ति लेते हैं और लोगों को देते हैं करीब 10 साल से चैतन्य देवी बन रही स्नेहा ने कहा कि ‘वह एकाग्रता के लिए बचपन से ही मेडिटेशन करती आ रही है। उन्होंने कहा कि मेडिटेशन से हमारा दिमाग कॉन्सन्ट्रेट होता है और सहनशीलता बढ़ जाती है। चैतन्य देवी बनना हमारा भगवान के प्रति एक सेवा है क्योंकि उस समय हम अपने मन में अच्छे व्यवहार, अच्छे विचार रखते हैं और उसे दूसरों को देते हैं।’ अपने अंदर होता है परमात्मा का एहसास पिछले 12 साल से मेडिटेशन करने के बाद चैतन्य देवी बनते आ रही गुड़िया ने कहा कि ‘जब मैं एक देवी बनकर पूजा पंडाल में बैठी हूं, तो मैं अपने आप को भूल जाती हूं। मुझे पूरी तरह से अपने अंदर परमात्मा का एहसास होता है। लगातार 10 घंटे बैठने के बाद भी कोई थकावट महसूस नहीं होती है। ऐसा कहा जाता है कि भीड़ भी उसी के पीछे लगती है, जो दुनिया से हटकर कोई चीज करता है।’ भगवान गणेश के रूप को भी पंडालों में बिठाया जाता है चैतन्य देवियों के अलावा गणेश और कार्तिकेय के स्वरूप के लिए लड़कों को भी देवता बनाकर पंडालों में बैठाया जाता है। 7 साल से भगवान गणेश के रूप में पंडाल में बैठ रहे राहुल कुमार ने कहा कि ‘जब मैं देवता बनता हूं तो मुझे यह समझ आता है कि उन देवताओं में आखिर ऐसी क्या शक्तियां होती हैं, जिसके कारण आज उन्हें पूजा जाता है।’ एकाग्रता के लिए एक पॉइंट का लगाती हैं ध्यान यह चैतन्य कन्याएं अपनी एकाग्रता के लिए एक पॉइंट का ध्यान लगाती हैं। स्नेहा ने कहा कि ‘हम सभी अपने आप को एक शरीर नहीं बल्कि आत्मा मानते हैं, और यही आत्मा, परमात्मा से जाकर जुड़ती है। हम अपने आप को एक पॉइंट के रूप में मानते हैं। हमारा परमात्मा भी एक निराकार शक्ति है। वह सुप्रीम पावर है, जिसे शिव कहा जाता है। शिव मतलब शून्य, कल्याणकारी, पवित्र शक्ति है। हम एकाग्रता के लिए मेडिटेशन करते समय उसी पॉइंट को याद करते हैं। यह पॉइंट ऑफ लाइट एक ज्योति स्वरूप होता है।’
