बेगूसराय में नवरात्र के 10 दिनों में मां के साधक विभिन्न तरीकों से पूजा-अर्चना कर भगवती को खुश करते हैं। नवरात्र के दौरान ही तंत्र-मंत्र साधक अपने साधना को सिद्ध करते हैं। वे कलश स्थापना की पूर्व रात्रि से ही अपनी साधना शुरू कर देते हैं और निशा पूजा की बेला में प्रसिद्ध भगवती स्थान में अपनी साधना को अंतिम रूप देकर सिद्धि तक पहुंचाते हैं। समय के बदलने के साथ आज लोग विज्ञान और डिजिटल युग में प्रवेश कर चुके हैं। इसके बावजूद तंत्र-मंत्र साधकों की कमी नहीं है। अभी भी तंत्र साधक श्मशान में साधना करते हैं और अपने गुरु को ध्यान में रखकर उस साधना को सिद्ध करते हैं। कहा जाता है कि जिनकी साधना सिद्ध हो जाती है वह मन वांछित इच्छा की पूर्ति कर लेते हैं। अब भले ही कम लेकिन इसके गुरु भी बहुत हैं। गुरु की चर्चा होने पर बहुरा मामा का नाम सामने आता है। बखरी की रहने वाली थी बहुरा मामा शिष्य बहुरा मामा और बहुरा ठकुराइन कहते हैं, तो कुछ लोग बहुरा डायन भी कहते हैं। बहुरा मामा वर्तमान में जिले के बखरी की रहने वाली थी। आधुनिक युग में भी तंत्र-मंत्र का आलम यह है कि इसमें गहरा विश्वास रखने वाले लोगों का बखरी के संबंध में ऐसी मान्यता है कि यहां कि बकरी और लकड़ी भी डायन हुआ करती थी। यह कड़ी बखरी की चर्चित बहुरा मामा नामक उस डायन को लेकर होती है, जो कभी तंत्र साधना की बदौलत पेड़ के सहारे हवा में उड़ा करती थी। प्रमुख कार्यक्षेत्र बखरी और बंगाल था। अपने तंत्र साधना के सहारे देश भर के तांत्रिकों को परास्त करने वाली बहुरा मामा का वो चौबटिया इनार (कुंआ) आज भी मौजूद है, जिससे होकर कभी चारों दिशा में जाने का रास्ते था। इसके सहारे बहुरा मामा सोने की नाव पर सवार होकर कुंआ से कमला के रास्ते अन्य जगहों पर जाया करती थी। डायन के रूप में चर्चित बहुरा मामा के संबध में कहा जाता है कि सामंतियों को खत्म करने के लिए उन्होंने तंत्र साधना की थी, जो बाद में इलाके की पहचान बन गई। बहुरा मामा को भगवान की तरह पूजते है लोग कहा जाता है कि उस जमाने में बहुरा मामा गुरुकुल चलाया करती थी जो देश भर में तंत्र साधकों का एक प्रमुख केन्द्र था, ऐसी ही कई मान्यताओं के बीच बखरी प्रसिद्व है। सैकड़ों पर पुरानी बहुरा मामा की कहानी बखरी ही नहीं आसपास के लोगों के जेहन में अभी भी रची बसी हुई है। बहुरा मामा को लोग भगवान की तरह पूजते हैं। बखरी गोढ़ियारी दुर्गा मंदिर के ठीक बगल में बहुरा मामा की प्रतिमा लगाई गई है। जहां लोग रोज पूजा,अर्चना करते हैं, मन्नत मांगते हैं और कहा जाता है कि सभी की मन्नत पूरी होती है। मन्नत पूरी हो जाने के बाद यहां लोग नवरात्र में नवमी और दशमी तिथि को साड़ी चढ़ाते हैं। मंदिर समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि इस दो दिन में यहां 10 हजार से भी अधिक साड़ी चढ़ाई जाती है, जिसका वितरण गरीबों के बीच किया जाता है। बहुरा मामा के तंत्र-मंत्र प्रक्रिया से सामान्य लोग काफी डरते भी थे। बहुरा मामा उस समय महिला सशक्तिकरण की मिसाल थी। महिलाओं पर अत्याचार करने वाले पर तंत्र मंत्र का टोटका करती थी। बच्चों को पहनाया जाता है टोटका बहुरा मामा के तंत्र-मंत्र के टोटका का इस इलाके में आज भी इतना असर है कि नवरात्र आते ही लोग अपने बच्चों को काले कपड़े में पीला सरसों, हींग, अजवाइन, सूई का टुकड़ा और लहसुन आदि सिलचर गले या कमर में पहना देते हैं। जिससे पर बुरी शक्तियों का असर नहीं हो। अष्टमी के दिन बच्चों के शरीर से टोटो माला नाम के इस चीज को हटाकर चौराहे पर फेंक दिया जाता है। कौशल किशोर क्रांति बताते हैं कि ऐसी ही कई मान्यताओं के बीच बखरी प्रसिद्ध है। बहुरा मामा अपना जप, योग और यज्ञादि कार्य प्रसिद्ध ठूठी पाकड़ के तले करती थी। वह पाकड़ बहुरा मामा के इच्छानुसार वाहन और अन्य सिद्धि करने वाला था। ठूठी पाकड़ थोड़ी दूर पर ही चौघटिया इनार का विशाल जलागार था। ममतामयी मां एवं कर्मपक्ष पर दृढ़ रहने वाली साधिकाओं की गुरूआइन बहुरा आदिशक्ति दुर्गा की परम आराधिका, शाबर मंत्र सिद्ध प्रख्यात साधिका थी। उन्हीं के समय से बखरी चर्चित साधना स्थली है। स्थानीय निवासी और बहुरा मामा पर शोध करने वाले प्रोफेसर रविन्द्र राकेश कहते हैं कि इनका काल 5वीं या 6वीं शताब्दी में रहा होगा। बहुरा आदि शक्ति दुर्गा की परम शाबर मंत्र सिद्ध प्रख्यात साधिका थी। कई स्त्रियों ने अपने परिजनों-स्वजनों को त्याग कर या खोकर ही उनसे मंत्र सिद्धि प्राप्त की थी। उन्हें अपनी सिद्धि के लिए कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता था। बहुरा की शिष्याएं अपनी गुरुआइन के परिजनों पर भी मंत्र प्रहार से बाज नहीं आती थी। सांप में बदल गई थी बारातियों की लाठियां बहुरा को भी अपनी शिष्याओं की सिद्धि पर नाज था। ऐसे में उनकी कन्या अमरावती के विवाह की बारी आती है तो अपने दिए गए वचन के अनुसार भड़ौदा के विशंभर को याद दिलाती है। वह 700 बारातियों के साथ कमला नदी के जल मार्ग से बखरी पहुंचता है और दूल्हा दयाल का विवाह अमरावती से होता है। लेकिन बहुरा की शिष्या को यह पसंद नहीं था। उसने अपने मंत्र बल का प्रयोग कर उसने भी कई बाधाएं उत्पन्न कर दी। कहा जाता है कि बारातियों की लाठियां सांप में बदल गई थी। बहुरा अपना जप, योग और यज्ञ आदि सभी साधना ठूठी पाकड़ के नीचे करती थी। वह पाकड़ बहुरा की इच्छानुसार वाहन और अन्य कामना सिद्ध का कार्य करने वाला था। ठूठी पाकड़ के पास ही चौघटिया कुंआ का विशाल जलागार था। इसके चारों घाट का पानी चार प्रकार के स्वाद वाला था और चारों ओर एक-एक सुरंग था। सोने की नाव पर चढ़कर बहुरा उसी रास्ते से कमला नदी तक जाती थी। उन्होंने कहा कि बहुरा की कथा सिर्फ तंत्र-मंत्र तक ही सीमित नहीं रहा, उसे अपना गुरु मानकर आज भी लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि करते हैं। बहुरा मामा और नटुआ दयाल का नाच आज सिर्फ बखरी और आसपास के जिला के ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में लोक नाच और नाटक के रूप में किए जाते हैं।
