औरंगाबाद में मिट्टी से जुड़े कारीगर (कुम्हार) , दीपावली और छठ सहित अन्य पर्व को लेकर दीया, ढकना सहित बच्चों के खिलौना बनाने में जुट गए हैं। कुम्हार मिथलेश प्रजापत ने बताया कि चाइनीज लाइटिंग की वजह से मिट्टी से बने दीया की बिक्री में कमी आई है। इस कारण ये परेशान है। कुम्हार ने कहा कि दीया की बिक्री में कमी आने के कारण पहले की अपेक्षा हम लोगों ने दीया और मिट्टी का खिलौना का निर्माण अब 50 प्रतिशत तक कम कर दिया है। आज से कुछ साल पहले तक लोग घर तक पहुंच जाते थे, दीया लेने के लिए। लेकिन, अब वैसा नहीं होता है। बजार में 60 रूपए में मिल रहे हैं 100 दीया भदानी प्रजापत ने बताया कि मार्केट में ₹60 में छोटा दिया 100 पीस दिया जा रहा है। इससे बड़े दीयों की अलग-अलग मूल्य मार्केट में है। इन्होंने बताया कि पहले की अपेक्षा पर्व त्योहार में दीया और मिट्टी से बने समान का कम बिक्री हो रहा है। जिसके चलते इस काम को समय-समय पर बंद कर मजदूरी का काम करने जाना पड़ता है। चाइनीज लाइटिंग आंख को करती है प्रभावित शिक्षक राहुल प्रजापत ने बताया कि पर्व त्योहार में दीया जलाना पुरानी परंपरा है। दीपावली में अपने अपने घर, प्रतिष्ठान, कार्यालय और अन्य जगहों पर घी व तेल के दीया जलाने से सकारात्मक माहौल का निर्माण होता है और स्वच्छ वातावरण का निर्माण होने के साथ-साथ बरसात के समय या फिर आस पास उत्पन्न कीटाणु दीया की रोशनी में जल जाते है। चाइनीज लाइटिंग में प्रकाश अति अधिक होता है। जिसके कारण चाइनीज कंपनी के लाइटिंग से निकलने वाली रोशनी लोगों के आंखों को प्रभावित करती है। राहुल प्रजापत ने लोगों से आग्रह किया कि इस दीपावली में लोकल सामान के साथ-साथ मिट्टी का दीया अधिक उपयोग करें, ताकि आप स्वच्छ वातावरण में रहने के साथ मिट्टी के कारीगर ( कुम्हार) को रोजगार का अवसर मिले।
