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श्रीकृष्ण ने बेटे का अंग मांगा,आरा से काटने चले राजा:माता ने बचाया; मान्यता- एक प्रतिमा खुद प्रकट हुई, दूसरी युधिष्ठिर ने स्थापित की

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नवरात्रि का आज यानि सोमवार को पांचवां दिन है। बिहार के देवी मंदिरों के दर्शन की सीरीज में आज आपको दर्शन करवाते हैं आरण्य देवी के। राजधानी पटना से 55 किमी दूर आरा के आरण्य देवी मंदिर की मान्यता एक साथ शक्तिपीठ और सिद्धपीठ के तौर पर है। मान्यता है कि यहां माता सती की बाईं जांघ का ऊपरी हिस्सा गिरा था। मंदिर में काले पत्थर की महालक्ष्मी की प्रतिमा है, जो खुद से प्रकट हुई हैं। महालक्ष्मी की प्रतिमा के साथ ही महासरस्वती की बड़ी प्रतिमा भी स्थापित की गई है। कहा यह भी जाता है कि माता ने राजा युधिष्ठिर को स्वप्न में कहा था कि यहां मेरी बहन की भी स्थापना करो। इसके बाद महाभारत काल में राजा युधिष्ठिर ने दूसरी मूर्ति की स्थापना की। आरण्य देवी मंदिर की मान्यता भगवान राम और कृष्ण से भी जुड़ी है। इन्हीं के नाम पर शहर को आरा कहा जाता है। आरण्य देवी मंदिर में आम दिनों में तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते ही हैं, नवरात्र में भी भारी भीड़ होती है। आगे पढ़िए आरण्य देवी मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां और यह भी कि अब इस मंदिर का डेवलपमेंट कैसे किया जा रहा है। यह नवरात्र पर हमारी स्पेशल स्टोरी का पार्ट- 5 है। सबसे पहले जानिए, पुराणों में क्यों है आरा शहर का नाम तंत्र चूड़ामणि पुस्तक के अनुसार आरा को शोध संगम क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। शोध संगम स्थान का नाम त्रिपुर रहस्य और मत्स्य पुराण में भी मां के 108 शक्तिपीठों के तौर पर है। शोध संगम स्थान वहां था, जहां गंगा और सोन का संगम है। किनारे पर आरण्य वन है। आज भी भोजपुर में आरा शहर से 10 किलोमीटर पूरब कोईलवर प्रखंड के बिन्दगांवा के पास गंगा और सोन का संगम होता है। अब मान्यताएं… सबसे प्रमुख मान्यता भगवान शंकर के तांडव के बाद माता सती की बाईं जांघ के ऊपरी हिस्से के गिरना का है। यह भी मान्यता है कि जब ताड़का वध के बाद भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ सीता स्वयंवर में भाग लेने मिथिला जा रहे थे, तब आरा से गुजरते वक्त इस मंदिर में पूजा की थी। कहा जाता है कि 13 साल के वनवास के दौरान पांडवों ने यहां देवी की पूजा की थी। जब पांडव यहां रात्रि विश्राम कर रहे थे तब धर्मराज युधिष्ठिर को माता ने सपने के माध्यम से बताया कि हमारी एक बहन की यहां पर स्थापना करो। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साथ इस क्षेत्र के राजा मोरध्वज की भक्ति की परीक्षा लेने यहां आए थे। उन्होंने अपने सिंह के भोजन के लिए राजा के बेटे के शरीर के दाहिने हिस्से की मांग थी। राजा और रानी ने बिना देर किए अपने बेटे को आरा (लकड़ी काटने का औजार) से काटना चाहा। उसी समय देवी ने प्रकट होकर उन्हें रोका और वरदान दिया। इस वजह से भी इलाके को आरा के तौर पर जाना जाता है। युधिष्ठिर ने की थी महासरस्वती की स्थापना मंदिर के महंत मनोज बाबा बताते हैं कि यहां मां की दो प्रतिमाएं हैं। छोटी प्रतिमा मां शक्ति का स्वरुप मानी जाती है, जो सती वध के बाद खुद से उत्पन्न हुई। द्वापर में जब पांडव यहां अज्ञातवास के लिए आए तो रात में ठहरे थे। यहीं धर्मराज युधिष्ठिर को माता ने स्वप्न में कहा कि मेरी बहन की भी स्थापना की जाए। दूसरी बड़ी मूर्ति उन्हीं के द्वारा स्थापित महासरस्वती की है। अब मंदिर के बारे में कुछ बातें मंदिर कैंपस में हनुमान, शंकर की मूर्ति के साथ राम दरबार भी स्थापित हैं। इस मंदिर को किला की देवी के नाम से भी जानते हैं। मंदिर में लोग अपनी मन्नत पूरी होने तक घी के बड़े-बड़े दीए जलाते हैं। मन्नत पूरी होने के बाद माता का श्रृंगार भी करवाते हैं। वैसे तो साल भर इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के समय देश भर से भारी संख्या में भक्त दर्शन को आते हैं। 108 फीट ऊंचा, 5 मंजिला बन रहा है नया भवन इस भव्य मंदिर का जीर्णोद्धार मां आरण्य देवी मंदिर विकास ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। इसमें 8 से 10 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। नया मंदिर 108 फीट ऊंचा और 5 मंजिला बनेगा जिसमें लिफ्ट जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी। देसी-विदेशी फूलों से होगा श्रृंगार और सजावट ट्रस्ट के मीडिया प्रबंधक कृष्ण कुमार ने बताया कि ‘इस साल नवरात्र में षष्ठी की रात देश-विदेश के फूलों से माता की सजावट एवं श्रृंगार किया जाएगा। 8 से 10 किस्म के फूलों से बनी खुशबूदार माला पहनाई जाएगी। इन्हें कोलकाता से आए कारीगर बनाएंगे। मंदिर परिसर में फिलहाल बैरिकेडिंग की जा रही है। सप्तमी के दिन दर्शन के लिए आनेवाले भक्त भैरो बाबा की गली से प्रवेश करेंगे। दर्शन के बाद वो मुख्य द्वार से बाहर निकलेंगे।’ नवरात्रि‍ का आज पांचवां दिन, स्‍कंदमाता की होती है पूजा नवरात्रि के 5वें दिन स्‍कंदमाता की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का पांचवां रूप स्‍कंदमाता कहलाता है। प्रेम और ममता की मूर्ति स्‍कंदमाता की पूजा करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होता है। मां आपने बच्‍चों को दीर्घायु की कामना करती हैं। आगे पढ़िए नवरात्र पर हमारी स्पेशल स्टोरी का पार्ट-4 और 3 चंडिका शक्तिपीठ में मां की आंख की होती है पूजा:कर्ण जिस खौलती कड़ाई में कूदे वो आज भी मौजूद, जानिए विक्रमादित्य और सोने की कहानी मुंगेर के चंडिका शक्तिपीठ की कहानी अनंत काल से जुड़ी है। मान्यता है कि माता सती की बाईं आंख इसी जगह गिरी थी। इसलिए मंदिर में माता की आंख की पूजा होती है। मंदिर के प्रधान पुजारी नंदन बाबा और पवन बाबा बताते हैं कि ‘यहां के काजल, पानी और फूल का बड़ा महत्व है। काजल से आंख की रोशनी बढ़ती है। पानी शरीर में लगाने से चेचक जैसी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। साथ ही मंदिर में चढ़ने वाले अड़हुल के फूल से निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है।’ महाभारत काल से भी इस शक्तिपीठ की कहानी जुड़ी है। पूरी खबर पढ़ें पटजिरवा मंदिर, जहां गिरे मां सती के पैर के हिस्से:ससुराल जाते वक्त यहां रुकी थी मां सीता की डोली, जानिए नर-मादा पीपल का रहस्य बेतिया के पटजिरवा सिद्धपीठ का महत्व गुवाहाटी के कामाख्या और बिहार के बड़ी पटन देवी, थावे, तारापीठ जैसे प्रसिद्ध सिद्धपीठों की तरह ही है। इसका इतिहास सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा है। मान्यता है कि सतयुग में माता सती ने जलते कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के 51 खंड किए। जहां-जहां ये अंग गिरे सभी जगहें शक्तिपीठ के रूप में जानी जाती हैं। कहा जाता है कि यहां माता सती के पैर के कुछ हिस्से गिरे थे। बाद में वहां नर-मादा दो पीपल के पेड़ उपजे, जो शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप के रूप में यहां विराजमान हैं। इसके बाद इस जगह का नाम पैरगिरवा पड़ा। पूरी रिपोर्ट पढ़िए

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