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अंतरमन को छूकर विदा हुआ लिटरेरी फेस्टिवल:शब्द संवाद से विचारों का मंथन, अनुभवों ने दिखाया जिंदगी का सच

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तेजी से बदलते इस शहर के रचनात्मक और सकारात्मक पक्ष को मजबूती देने के लिए आयोजित दो दिवसीय लिटरेरी फेस्टिवल शहरवासियों के अंतरमन को छूकर विदा हो गया। दो दिनों तक शब्द संवाद से विचारों का मंथन हुआ। मंच के सामने बैठे युवाओं के साथ हर वय के लोगों ने इस मंथन से निकले नए विचारों को आत्मसात किया। अपने फील्ड में ऊंचाईयों को छू रही शख्सियतों ने अनुभव साझा किए। उन अनुभवों ने जिंदगी का सच दिखाया। लोगों ने यह जाना कि जीवन में दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए। जो वास्तविक है, उसपर पूरी मेहनत से आगे बढ़ना है।
साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के बीच लिटरेरी फेस्टिवल के इस मंच ने नवोदित प्रतिभाओं की रचनाओं ने लोगों को खूब आकर्षित किया। शास्त्रीय संगीत और कथक की प्रस्तुति ने मन मोह लिया। रात में कार्यक्रम खत्म हो गया था लेकिन माहौल ऐसा जमा था कि मानो लोग यहां से जाना नहीं चाहते हों। लिटरेरी फेस्टिवल का सातवां अध्याय एक नई कहानी लिखकर विदा हो गया। लेकिन अगले साल फिर मिलने के वादे के साथ। मकरंद देशपांडे की गहरी बातों ने बांधे रखा
मकरंद देशपांडे ने बड़ी बेबाकी से अपनी बातें रखीं। शुभेंद्र सत्यदेव के साथ गुफ्तगू में उन्होंने अपने जीवन को दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर दिया। एक सफल कलाकार अपनी निजी जिंदगी में तनावों से कितना बेफिक्र हो सकता है, यह उन्होंने बखूबी बताया। स्पष्ट शब्दों में कहा कि उन्हें नहीं पता कि उनका करियर क्या है। रात को जब सोते हैं तो यह कभी नहीं सोचते कि दिनभर क्या किया। क्रिकेट की ओर झुकाव था। सफलता भी मिल रही थी लेकिन उन्हें रिटायर होने वाला प्रोफेशन अपनाना ही नहीं था। उन्होंने बताया कि जीवन जीने में आपको कुछ नहीं करना बस जीवंतता रखनी है। सबकी बातों को जगह मिले तभी मीडिया की सार्थकता
मीडिया पर भरोसे की बात भी चली। वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल ने कुछ उदाहरणों से इसे समझाया। इमरजेंसी की बात की, जब स्टेट कंट्रोल मीडिया था। उस वक्त शाम 7 बजे बीबीसी की बुलेटिन सुनने का लोग इंतजार करते थे। क्योंकि वहां दूसरे पक्ष की बात भी सुनने को मिलती थी। उन्होंने कहा कि चाहे जितनी विपरीत स्थिति हो लेकिन दूसरे पक्ष को भी जगह देनी चाहिए। तभी मीडिया भरोसेमंद बनता है। वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन ने कहा कि भरोसा सदेव निश्छलता से बनता है। तटस्थ आवाज की आयु लंबी होती है। इस सत्र का संचालन आशीष श्रीवास्तव ने किया। गोरखपुर के चमकते सितारों से रूबरू हुआ शहर
लिटरेरी फेस्टिवल में एक सत्र ऐसा भी था, जिसमें यहां के लोग अपने शहर के चमकते सितारों से रूबरू हुए। रंगकर्मी अमित मौर्य, बीएसएफ के इंसपेक्टर अवधेश सिंह और उभरती टेनिस खिलाड़ी शगुन ने अपने अनुभव बताए। अमित पंचायत जैसी वेबसीरिज में काम कर चुके हैं। अवधेश सिंह के नाम 36 विश्व रिकार्ड हैं। शगुन ने कहा कि लगातार अभ्यास ही खेल को बेहतर बनाता है। कार्यक्रम के एक सत्र में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया गया। अंतिम सत्र ने झूमने पर किया मजबूर
लिटरेरी फेस्टिवल की विदाई काफी यादगार रही। दूसरे दिन अंतिम सत्र में पं. हरीश तिवारी की शास्त्रीय प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने शास्त्रीय राग पर जब अलाप व वितान लिया तो सभागार भावविभोर हो गया। उनके साथ तबले पर पंकज राय, हारमोनियम पर मनीष सिंह, वोकल सपोर्ट व स्वरमंडल में शशांक शुक्ल, तानपुरा पर दिवाकर चतुर्वेदी तथा सुबल सब्यसाची ने संगत किया। इसके बाद नृत्यांगना दीपमाला सचान ने अमीषा तिवारी, अनुपम श्रीवास्तव और रौनी सिंह के साथ कथक की प्रस्तुति दे दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

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