‘आज से करीब 59 साल पहले गांव में तो मट्ठे का चलन बहुत था, लेकिन शहर में नहीं था। जीविका का कोई साधन नहीं था। इसलिए पिताजी ने सोचा कि चलो मट्ठा बेचते हैं। लेकिन, यह मट्ठा गांव में कोई क्यों खरीदेगा? यह सोचकर शहर में एक छोटी-सी दुकान ली और वहां पर मट्ठा बेचना शुरू किया। आज इस दुकान को लोग अमृत मट्ठा वाले के नाम से जानते हैं।’ ऐसा कहना है गोविंद मिश्रा का। कानपुर के अशोक नगर एरिया में मोतीझील चौराहे के पास उनकी दुकान है। इसका नाम है- अमृत मट्ठा। इस दुकान को मिश्रा फैमिली की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है। 1965 में पिताजी ने खोली थी दुकान
गोविंद मिश्रा ने बताया- हम लोग मूल रूप से पाली गांव के रहने वाले हैं। 1965 में पिता स्वर्गीय पंडित सूरज प्रसाद ने अपनी जीविका के लिए मट्ठा बेचने का काम अशोकनगर आकर शुरू किया था। शुद्ध मट्ठा देना ही उनका मकसद था। इस क्वालिटी को आज भी हम लोगों ने मेंटेन करके रखा है। मट्ठा लोगों के लिए अमृत का काम करता है। इसलिए पिताजी ने इसका नाम अमृत मट्ठा वाला रखा था। गांव में तो हर घर में मट्ठा हुआ करता था, लेकिन शहर वालों को यह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता था। इसलिए शहर में आकर दुकान खोली थी। 1998 में पिता की मौत के बाद इस दुकान को मैंने संभालना शुरू किया था। आज मेरा बेटा अत्रेय मिश्रा इसको संभाल रहा है। क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया
गोविंद मिश्रा ने बताया- जब पिता ने दुकान खोली तो उनका एक ही मकसद था कि शहर वालों को भी शुद्ध मट्ठा मिल सके। इसको ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने भी क्वालिटी से आज तक कोई समझौता नहीं किया। पहले केवल मट्ठा बेचा करते थे। इसके बाद ब्रेड-मक्खन की शुरुआत की। आज हमारी दुकान में 6 प्रकार के बन मक्खन और तीन प्रकार के ब्रेड मक्खन बिकते हैं। ब्रेड मक्खन लोगों को बहुत पसंद आता है। कई क्वालिटी का है बन मक्खन
मट्ठे से निकलने वाले नेनु को मक्खन कहां जाता है। इसको हम अलग-अलग तरह के ब्रेड में लगाकर लोगों को देते हैं। मिल्क ब्रेड, प्लेन ब्रेड, मल्टीग्रेन ब्रेड में। इसके अलावा अगर बन की बात करें तो प्लेन बन, बादाम बन, मसाला बन, मल्टीग्रेन बन, पाइनएप्पल बन, स्वीट बन में मक्खन को लगाकर इसे ग्राहकों को दिया जाता है। स्पेशल मथानी से मथा जाता है दूध
गोविंद मिश्रा ने बताया- पुराने जमाने में कुटकी की लकड़ी बच्चों को घिसकर दी जाती थी। इससे लिवर मजबूत होता था। उसी कुटकी की लकड़ी से स्पेशल मथानी बनाई जाती है। उस मथानी से दूध को घंटों मथा जाता हैं। इससे मथने से मट्ठे में और ताकत आ जाती है। इसीलिए जो मट्ठा हमारी दुकान में मिलता है, वह लोगों के लिए रामबाण साबित होता है। 8 स्टेप में तैयार होता है मट्ठा रोहित शुक्ला बोले- यहां का मट्ठा पीते 14 साल हो गए
एक ग्राहक रोहित शुक्ला ने बताया कि पिछले 14-15 सालों से इस दुकान में मट्ठा पीने के लिए आ रहे हैं। यहां के जैसा मट्ठा किसी और दुकान में नहीं मिलता। इस मट्ठे का एक अलग ही स्वाद और शुद्धता रहती है। हफ्ते में दो-तीन बार यहां आना होता है। विनय अवस्थी बोले- यहां के मट्ठे जैसा स्वाद कही नहीं
विनय अवस्थी ने बताया कि जब भी यहां से गुजरता हूं तो अमृत वाला मट्ठा जरूर पीता हूं। इसको पीने के बाद शरीर में जो ताजगी आती है, वह किसी और में नहीं। यहां के मट्ठे का रंग ही एकदम देसी होता है। एक अन्य ग्राहक महेंद्र शुक्ला ने कहा- पिछले 15 सालों से इस दुकान में मट्ठा पीने के लिए आ रहा हूं। महीने में 8-10 बार तो यहां आना होता ही है। शुद्ध मट्ठा और वह भी मिट्टी के कुल्हड़ में मिले तो उसका स्वाद ही अलग हो जाता है। ————————————————- जायका सीरीज की यह स्टोरी भी पढ़ें मोतीमहल की इमरती-रबड़ी का गजब स्वाद, लखनऊ के पुराने जायकों में फेमस; रजा मुराद और जिम्मी शेरगिल भी दीवाने यूपी का राजधानी लखनऊ….जो स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए देशभर में मशहूर है। शहर में ऐसी कई पुरानी दुकानें है, जहां का स्वाद लखनऊ वालों के साथ ही पर्यटकों को भी खासा पसंद आता है। हजरतगंज स्थित मोतीमहल स्वीट्स, जहां की मिठाई और फालूदा सालों से लोगों की जुबान पर है। पढ़ें पूरी स्टोरी…