मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कौन हारेगा कौन जीतेगा यह तो वोटों की गिनती बताएगी, फिलहाल राजनीतिक दलों को एक जीत गांव-गांव गली-गली खेत-खलिहान मेड़-मेड़ घूमने का परिणाम बंपर मतदान 65.35 प्रतिशत के रूप में सामने आया। गुनगुने मौसम में वोटों की गर्माहट ने जहां मेहनत मशक्कत सफल की हैं, वहीं दिल की धुकधुकी भी बढ़ा दी है।मतदाताओं की अति सक्रियता किसके पक्ष में जाएगी यह तय नहीं है। छह महीने से मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र को मथ रहे सत्तारूढ़ दल के नेता कितना मक्खन निकाल पाए, यह पता लगने में अभी 48 घंटे शेष हैं। आरोप-प्रत्यारोप के बीच मतदान हो चुका है। देर शाम समाजवादी पार्टी समर्थकों के विरुद्ध एक युवक को बर्बरतापूर्वक पीटने की शिकायत थाने पहुंची है। मामला मतदान के पूर्व की रात्रि का है। इस मारपीट की घटना के अतिरिक्त जुबानी जंग के अलावा और कोई घटना संज्ञान में नहीं आई है। विपक्ष की हताशा मतदान का प्रतिशत बढ़ने के साथ आरोपों की झड़ी के साथ सामने आने लगी। पिता-पुत्र ने यहां से दस चुनाव की वैतरणी पार की
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र को वामपंथी राजनीति बनाने वाले मित्रसेन यादव का दबदबा इस क्षेत्र में ऐसा कायम हुआ कि पिता-पुत्र ने यहां से दस चुनाव की वैतरणी पार की। जैसे ही यह सीट आरक्षित श्रेणी में आई सेन परिवार की राजनीति भी डगमगा गई। हालांकि बगल की बीकापुर सीट ने मित्रसेन की तो लाज बचा ली लेकिन उनके पुत्र वहां जड़े नहीं जमा सके। जबसे मित्रसेन के करीबी विधायक रामचंद्र यादव ने पाला बदला सेन परिवार का प्रभाव पंचायत चुनावों में भी घटने लगा। पीडीए और संविधान खतरे में है के नारे ने अवधेश प्रसाद को संसद पहुंचा दिया अजेय माने जाने वाले अवधेश प्रसाद ने अपनी पारंपरिक सीट सोहावल के बीकापुर में समाहित होने के बाद यहां भाग्य आजमाया तो सफलता से प्रारंभ किया। वह यहां भी दो बार जीते। पीडीए और संविधान खतरे में है के नारे ने विगत लोकसभा चुनाव में उनको संसद पहुंचा दिया और यह सीट रिक्त हो गई्। सपा ने बिना विलंब उनके पुत्र को यहां से प्रत्याशी घोषित कर भाजपा के तुरंत चुनौती पेश कर दी, हालांकि उप चुनाव में विलंब था। लोकसभा में हार के बाद यह उप चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया
अयोध्या जैसे मुद्दे को लेकर भाजपा की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीट फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र से हार से भाजपा की बड़ी किरकिरी हुई। यह उप चुनाव उसके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद भाजपा ने तत्काल यहां अपनी सक्रियता बढ़ा दी। स्वयं मुख्यमंत्री ने कमान संभाली तो अंत तक वह यहां डटे रहे। भाजपा ने कोई ऐसा राजनीतिक हथकंडा नहीं छोड़ा जिसे उसने प्रयोग ना किया हो। भाजपा के लिए सबसे अधिक चुनौती अवधेश प्रसाद की सवर्ण मतदाताओं में पकड़ रही
भाजपा के लिए सबसे अधिक चुनौती अवधेश प्रसाद की सवर्ण मतदाताओं में पकड़ रही। इस पकड़ की काट भाजपा ने अपने सवर्ण बाहुबली क्षत्रपों के रूप में निकाल ली। जो कसर थी वह सपा के पीडीए फार्मूले ने पूरी कर दी। अवधेश प्रसाद अपने शीर्ष पदाधिकारियों को इस मुद्दे पर शान्त नहीं रख सके। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लखनऊ से ही पीडीए की माला जपते रहे। किसके प्रयास कितने सफल रहे, और मिल्कीपुर की बागी प्रकृति कितनी बदली यह परिणाम तय करेगा।