कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका और द सेंट्रम के तत्वाधान में प्रख्यात कलाकार अवधेश मिश्र की चयनित चित्र श्रृंखलाओं की एकल प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह ने दीप प्रज्ज्वलित कर प्रदर्शनी का शुभारंभ किया। कहा कि “अवधेश मिश्र के चित्र सुखद अनुभूतियों के संगीत से मन को भिगोते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि अवधेश मिश्र की कला यात्रा को वर्षों से देखने का अवसर मिला है। उनके चित्रों में भारतीय संस्कृति की मिठास और संवेदनाओं की गहराई नजर आती है। उनकी चित्रकला न केवल हमारी परंपराओं से जोड़ती है, बल्कि अपनी विशिष्ट शैली, रंग संयोजन और विषयवस्तु के कारण मानस पटल पर स्थायी छाप छोड़ती है। वास्तुशास्त्र के अनुकूल हैं अवधेश मिश्र के चित्र : अविनाश घई प्रदर्शनी के विशिष्ट अतिथि प्रख्यात वास्तुविद अविनाश घई ने कहा कि जिस वातावरण में हम रहते हैं वहां की तरंगें हमारे मन और जीवन को प्रभावित करती हैं। सुख, समृद्धि और मानसिक शांति के लिए ऐसे चित्रों का होना जरूरी है जो सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करें। “अवधेश मिश्र के चित्रों में रंगों का संतुलन और सौंदर्यशास्त्र वास्तुशास्त्र के अनुरूप है जो जीवन में समरसता और आनंद का संचार करता है। बिजूका” से मिली कला को पहचान प्रदर्शनी की क्यूरेटर डॉ. लीना मिश्र ने अवधेश मिश्र के कला सफर पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका बचपन अयोध्या के मठा गांव में बीता। वहीं के खेतों में खड़ा “बिजूका” (काक भगौड़ा) उनके बचपन का अभिन्न हिस्सा बन गया। धीरे-धीरे यह बिजूका उनकी कला का केंद्रीय तत्व बन गया। आगे चलकर “विस्थापन,” “निसर्ग,” “बिजूका,” “स्कूल डेज़,” “लय” और “बिजूका रिटर्न्स” जैसी लोकप्रिय चित्र श्रृंखलाओं के रूप में उभरा। डॉ. लीना मिश्र ने बताया कि अवधेश मिश्र ने अयोध्या, लखनऊ, बनारस, बरेली और खैरागढ़ विश्वविद्यालयों से कला की उच्च शिक्षा प्राप्त की। भारतीय कला के संरक्षण व प्रलेखन के लिए “कला दीर्घा” अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने उत्तर प्रदेश की कला को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चित्रों में जीवंत हुई भारतीय संस्कृति की झलक अवधेश मिश्र की चित्रकला प्रदर्शनी “चौपाल” उनकी विभिन्न श्रृंखलाओं के चुनिंदा कार्यों का संगम है। इन चित्रों में गाँव, भारतीय संस्कृति, रीति-रिवाज, उत्सवधर्मिता, पारंपरिक जीवनशैली, लोक प्रतीक और बचपन की स्मृतियां देखने को मिलती हैं। उनके चित्रों में कागज की नाव, फिरकी, ढिबरी, लालटेन, पेट्रोमैक्स जैसी पुरानी वस्तुओं की झलक देखने को मिलता है। विवाह मंडप में केले के पत्तों और आम की पत्तियों से सजे मंगल द्वार हल्दी से रंगे लकड़ी के सुग्गे और रंग-बिरंगे झंडे खपरैल की छत पर कांव-कांव करते कौवे और छप्पर के नीचे भुने जा रहे आलू और शकरकंद चूल्हे पर बनते पकवान और चौपाल की बैठकें दिखती हैं। 10 मार्च तक चलेगी प्रदर्शनी प्रदर्शनी के समन्वयक डॉ. अनीता वर्मा और सुमित कुमार ने बताया कि यह प्रदर्शनी 10 मार्च 2025 तक कला प्रेमियों के लिए दोपहर 12:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक खुली रहेगी। इस अवसर पर द सेंट्रम के स्वामी सर्वेश गोयल, पायनियर स्कूल की प्रधानाचार्य शर्मिला सिंह, अजीत सिंह, डॉ. फौजदार, रंजू कुमारी, आकांक्षा त्रिपाठी, अवनीश भारती, मनदीप वर्मा, निधि चौबे, स्नेहा श्रीवास्तव, सपना यादव, अमित कुमार, सत्यम चौबे, सुप्रिया श्रीवास्तव, हिमांशु गुप्ता, शिवांश चौबे, प्रवाल, सुमित कश्यप सहित बड़ी संख्या में कला प्रेमी उपस्थित रहे।
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