बदलते लाइफ स्टाइल, खानपान से कम उम्र में युवा डायबिटीज की गिरफ्त में आ रहे हैं। इसकी वजह से ही युवाओं में ग्लूकोमा की समस्या भी पैदा हो रही है। लोहिया संस्थान की OPD में रोजाना ग्लूकोमा के 8 से 10 मरीज पहुंच रहे हैं। इनमें से आधे मरीज डायबिटीज के होते हैं। ये जानकारी लोहिया संस्थान के नेत्र विज्ञान विभाग की फैकल्टी डॉ.शिखा अग्रवाल ने साझा की। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग व्यक्ति दिवस (आईडीपीडी) के मौके पर लोहिया संस्थान के नेत्र विज्ञान विभाग की ओर से सीएमई का आयोजन हुआ। करोड़ों लोग जूझ रहे समस्या से निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि भारत में 13.7 करोड़ से अधिक लोग निकट दृष्टिबाधित हैं, जबकि 7.9 करोड़ लोग दृष्टिबाधित हैं। कम दृष्टि दोष किसी भी उम्र में हो सकता है। कम दृष्टि वाले लोगों को पूरी तरह से दिखने की समस्या नहीं होती है, इसलिए उन्हें बची हुई दृष्टि का सर्वोत्तम उपयोग करने में मदद करना अहम है। निदेशक ने नेत्र विभाग में नई मशीनें को बढ़ाने के लिए की दिशा में काम करने का भरोसा जताया। ऐसे मिलेगी राहत डॉ. शिखा ने बताया कि लोहिया में लेटेस्ट तकनीकी से जांच की जाती है। जिन मरीजों की रोशनी जा चुकी है। उनको मैग्नीफाई ग्लासेस लगाया जाता है। साथ ही जीवनयापन के लिए लाठी लेकर चलना, ब्रेल लिपि, कलर पहचानना भी सिखाया जाता है। जो लोग पेपर नहीं पढ़ सकते, बॉथरूम जाने में दिक्कत है। ऐसे लोगों को नई तकनीकी की डिवाइस लगाई जाती है, जिससे उनको अपने कुछ काम करने में आसानी होती है। यह डिवाइस करीब 40 हजार रुपए से शुरू होती है। भारत में कम दृष्टि के मुख्य कारण ग्लूकोमा, उम्र से संबंधित धब्बेदार और वयस्कों में मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी हैं। बच्चों में कॉर्टिकल दृष्टि हानि, एम्ब्लियोपिया, समय से पहले रेटिनोपैथी और रेटिनल विकार मुख्य हैं।