लखीमपुर खीरी में इंडो-नेपाल बॉर्डर पर स्थित विश्व प्रसिद्ध दुधवा नेशनल पार्क के जंगलों में गैंडों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। गैंडों की संख्या अब चार से बढ़कर 46 हो गई है। अब दुधवा के जंगल में ये गैंडे सौर ऊर्जा चालित बाड़ से बाहर निकलकर स्वतंत्र रूप से विचरण करेंगे। यह ऐतिहासिक क्षण 40 साल के लंबे इंतजार के बाद देखने को मिलेगा। दुधवा में गैंडा पुनर्वासन योजना की शुरुआत 1984 में हुई थी। करीब 200 साल पहले तराई क्षेत्र से लुप्त हो चुके गैंडों को असम से लाकर दुधवा के सोनारीपुर रेंज में बसाया गया। चार दशकों में यह पहल सफल रही और गैंडों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। तीन मादा और एक नर गैंडे को मिलेगी आजादी
29 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच तीन मादा और एक नर गैंडे को जंगल में आजाद छोड़ा जाएगा। इसके लिए कुल 15 गैंडों को चिह्नित किया गया है, जिनमें से चार गैंडों को पकड़कर रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। ट्रैंक्युलाइजेशन के बाद रेडियो कॉलरिंग से उनकी गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जाएगी। देखें तस्वीरें… असम के विशेषज्ञ करेंगे निगरानी
गैंडों को आजादी देने की प्रक्रिया असम से आए गैंडा विशेषज्ञों की निगरानी में पूरी होगी। गुवाहाटी के मशहूर पशु चिकित्सक और विशेषज्ञ समिति, जिसमें डॉ. केके शर्मा, डॉ. विजाए गगोई और डॉ. खनिन चांगमई शामिल हैं, इस कार्य में मुख्य भूमिका निभाएंगे। गैंडों की आजादी के लिए बनीं 13 विशेष समितियां
गैंडों को जंगल में मुक्त करने के लिए कुल 13 समितियां बनाई गई हैं। ये समितियां चिन्हीकरण, ट्रैंक्युलाइजेशन, लॉजिस्टिक सपोर्ट, राइनो कैप्चर टीम, डार्ट टीम, पशु चिकित्सा और रेडियो कॉलरिंग का कार्य संभालेंगी। दुधवा टाइगर रिजर्व के एफडी ललित कुमार वर्मा ने बताया कि सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। गैंडों को स्वतंत्र होते देखना दुधवा के लिए एक ऐतिहासिक और गर्व का क्षण होगा।