नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स (NCCOEEE) ने बिजली के निजीकरण के विरोध में 26 जून को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। हड़ताल को सफल बनाने के लिए अप्रैल और मई में देश के सभी प्रांतों में बड़े सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में पहले से जारी निजीकरण की प्रक्रिया के विरोध में मार्च माह में चार बड़ी रैलियां आयोजित की जाएंगी। इसके अलावा मई में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियनों की हड़ताल के दौरान भी बिजली कर्मचारी हड़ताल करेंगे। राष्ट्रीय सम्मेलन में लिया गया निर्णय नागपुर में आयोजित NCCOEEE के राष्ट्रीय सम्मेलन में इस हड़ताल की रूपरेखा तैयार की गई। इस सम्मेलन को आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे, सेक्रेटरी जनरल पी रत्नाकर राव, आल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज के मोहन शर्मा और कृष्णा भोयूर, इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रशांत चौधरी और सुभाष लांबा, ऑल इंडिया पावर मेंस फेडरेशन के समर सिन्हा, भारतीय किसान मोर्चा के बीजू कृष्णा तथा कामगार एकता मंच के गिरीश भावे ने संबोधित किया। इस सम्मेलन में देश के विभिन्न प्रांतों के बिजली कर्मचारियों के श्रम संघों और सेवा संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी सम्मिलित हुए। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर और उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ के प्रमुख महासचिव महेन्द्र राय ने उत्तर प्रदेश में चल रही निजीकरण प्रक्रिया और बिजली कर्मियों के आंदोलन की जानकारी दी। प्रस्ताव में बिजली के निजीकरण का विरोध NCCOEEE की आमसभा में पारित प्रस्ताव में चंडीगढ़ बिजली विभाग के निजीकरण को आपत्तिजनक बताया गया। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, राज्य में बिजली राजस्व का बकाया एक लाख 15 हजार करोड़ रुपए और घाटा एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए है। प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया कि यदि राजस्व की पूरी वसूली हो जाए तो उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगम लाभ में आ सकते हैं। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि टैरिफ बेस्ड प्रतिस्पर्धात्मक बिडिंग और असेट मोनेटाइजेशन के नाम पर ट्रांसमिशन सेक्टर का बड़े पैमाने पर निजीकरण किया जा रहा है। जिससे उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। निजीकरण से उपभोक्ताओं और कर्मचारियों पर दुष्प्रभाव आमसभा में पारित प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि बिजली का निजीकरण न केवल कर्मचारियों के लिए हानिकारक है बल्कि उपभोक्ताओं के लिए भी सबसे अधिक घातक है। निजी क्षेत्र में मुम्बई में घरेलू उपभोक्ताओं को 17-18 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली का टैरिफ देना पड़ रहा है जबकि किसानों को कोई सब्सिडी नहीं मिलती। यदि निजीकरण को नहीं रोका गया तो महंगी बिजली आम उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति को और अधिक कमजोर कर देगी। सरकार से निजीकरण वापस लेने की मांग आमसभा में पारित प्रस्ताव के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों से मांग की गई है कि बिजली का निजीकरण तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए। अन्यथा बिजली कर्मचारी पूरी एकजुटता के साथ राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने के लिए विवश होंगे।
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