जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाकुंभ के पहले संगमनगरी प्रयागराज पहुंचे। यहां उन्होंने कल शनिवार को जूना अखाड़े के पेशवाई (अब छावनी प्रवेश) में शामिल हुए। उनकी अगुवाई में जूना अखाड़ा व किन्नर अखाड़ा के साधु संत महाकुंभ मेला क्षेत्र में प्रवेश किए। ‘दैनिक भास्कर’ की अवधेशानंद गिरि से विशेष बातचीत हुई। उन्होंने महाकुंभ की महत्ता और महिमा भी बताई। उन्होंने कहा, “प्रयाग का महाकुंभ और संगम का यह तट एक ऐसा पवित्र स्थल है जहां यहां भारत की आध्यात्मिकता, धार्मिकता, सांस्कृतिक मूल्य और हमारी सारी संवदेनाएं एक साथ जागृत होती हैं। उन्होंने कहा यह महाकुंभ भारतीय संस्कृति का उच्चतम प्रतिमान है। “किसी एक का नहीं.. प्रत्येक व्यक्ति के लिए सनातन” महाकुंभ और सनातन से जुड़े सवालों पर उन्होंने कहा ये (महाकुंभ) एकता का पर्व है, समन्वय का पर्व है। यहां हमारी दिव्यंताओं को और उत्कृष्टताओं को उजागर होते हुए देख सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम पूरे विश्व को परिवार मानते हैं। हम प्रत्येक प्राणी के मांगल्य, निरामय, उसके स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। हम किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं जीते.. जिस तरह से वृक्ष के फल सभी के लिए हैं, जैसे सूर्य की किरणें सभी के लिए हैं और जल सबके लिए है वैसे ही सनातन सबके लिए है, हम उसके लिए प्रार्थना करने आए हैं.. विश्व कल्याण के लिए आए हैं, इसके लिए ही महत्वपूर्ण हैं महाकुंभ। उन्होंने कहा कि पूरे महाकुंभ अवधि तक हम यहीं पर संगम के तट पर रहेंगे।’ …तीन तस्वीरों में देखिए जूना अखाड़े की छावनी प्रवेश