उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में 23 साल पुराने ममता हत्याकांड में अदालत ने सपा नेता मुदित प्रताप सिंह और उनके भाई अरुण सिंह को दोषी करार देते हुए मात्र 7 साल की सजा सुनाई। यह फैसला न्याय प्रक्रिया की धीमी गति और राजनीति में अपराधीकरण के गहरे प्रभाव को उजागर करता है। दहेज के लिए ममता की हत्या करने और लाश गायब करने जैसे जघन्य अपराध में भी सपा नेता ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर लंबे समय तक मामले को लटकाए रखा। क्या 23 साल की प्रतीक्षा के बाद आया यह हल्का फैसला ममता और उसके परिवार को न्याय दिलाने के लिए पर्याप्त है? यह घटना न्यायपालिका और राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जहां अपराधियों को संरक्षण देने के लिए सत्ता का इस्तेमाल किया जाता है। पति, सास-ससुर, जेठ और देवर ने मिलकर की थी ममता की हत्या उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के अतरक्षेड़ी गांव में हुए ममता हत्याकांड में अदालत ने आखिरकार सपा नेता मुदित प्रताप सिंह और उनके बड़े भाई अरुण सिंह को दोषी करार देते हुए सात-सात साल की सजा सुनाई। इस केस में नामजद परिवार के अन्य तीन सदस्यों (सास, ससुर और पति) की पहले मौत हो चुकी थी। यह मामला 23 साल पुराना है। ममता की हत्या: दहेज की बलि चढ़ी एक मासूम जिंदगी ममता की शादी 29 जून 1999 को मुदित प्रताप सिंह के भाई संजय से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही ममता के ससुराल वालों ने दहेज की मांग शुरू कर दी। मायकेवालों ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन ससुराल पक्ष की लालच खत्म नहीं हुई। जब ममता के मायके वालों ने उनकी मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, तो उनका उत्पीड़न बढ़ने लगा। 17 जून 2001 को ससुराल में ममता की हत्या कर दी गई, और लाश को गायब कर दिया गया। ताकि मामले को दबाया जा सके। मायकेवालों ने जब ममता से संपर्क करने की कोशिश की और विफल रहे, तब उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। परिवार के अन्य तीन सदस्यों की मौत ममता के ससुराल पक्ष के तीन प्रमुख सदस्यों—सास श्यामा सिंह, ससुर तिलक सिंह, और पति संजय सिंह की पहले ही मौत हो चुकी है। यह मामला लंबे समय तक न्यायालय में चला, लेकिन परिवार के केवल बचे हुए दो सदस्य—मुदित और अरुण, जो दहेज हत्या में शामिल थे, अब दोषी पाए गए। मुदित प्रताप सिंह: राजनीति और अपराध का गठजोड़ मुदित प्रताप सिंह समाजवादी पार्टी का स्थानीय नेता है और राजनीतिक दबदबे का फायदा उठाकर लंबे समय तक जमानत पर बाहर रहा। उनकी पत्नी प्राची सिंह जिला पंचायत सदस्य हैं, जो उनकी राजनीतिक ताकत को और मजबूत बनाती थीं। मुदित के खिलाफ यह भी आरोप है कि उसने तीन साल पहले अपने भाई संजय की हत्या कर दी थी, ताकि परिवार की संपत्ति पर उसका अधिकार बन सके। राजनीति में अपराधियों की भूमिका पर सवाल यह घटना एक बार फिर राजनीति में अपराध के बढ़ते प्रभाव को उजागर करती है। सपा नेता मुदित ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल न केवल कानून से बचने के लिए किया, बल्कि मामले को लंबे समय तक लटकाए रखने में भी सफलता पाई। उनकी पत्नी प्राची सिंह का पंचायत सदस्य होना भी इस बात का प्रमाण है कि अपराधी सत्ता का इस्तेमाल किस तरह करते हैं। कोर्ट की धीमी प्रक्रिया पर सवाल: 23 साल बाद सिर्फ 7 साल की सजा बरेली के ममता हत्याकांड में 23 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सपा नेता मुदित प्रताप सिंह और उनके भाई अरुण सिंह को मात्र 7 साल की सजा सुनाई गई। यह फैसला देश की न्याय प्रणाली की धीमी प्रक्रिया और दहेज हत्या जैसे गंभीर अपराधों पर दी जाने वाली हल्की सजा पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। क्या इतनी लंबी प्रतीक्षा के बाद आया यह फैसला ममता को न्याय दिलाने में पर्याप्त है? यह घटना न्याय में देरी और उसकी कमजोरियों को उजागर करती है, जहां एक महिला की हत्या के बावजूद दोषियों को कड़ी सजा नहीं मिल पाई। राजनीति और अपराध: कानून की पकड़ से बचने की साजिश बरेली के चर्चित ममता हत्याकांड में सपा नेता मुदित प्रताप सिंह का नाम एक बार फिर राजनीति में अपराध के बढ़ते प्रभाव को सामने लाता है। 23 साल तक राजनीतिक रसूख और दबदबे का इस्तेमाल कर मुदित न केवल मामले को लटकाने में कामयाब रहा, बल्कि लंबे समय तक जमानत पर बाहर भी रहा। उनकी पत्नी प्राची सिंह जिला पंचायत सदस्य होने के कारण परिवार की राजनीतिक पकड़ और मजबूत रही। यह घटना साफ दिखाती है कि कैसे राजनीति में अपराधी अपनी ताकत का इस्तेमाल कानून को प्रभावित करने और न्याय से बचने के लिए करते हैं।
