मिर्जापुर जिले की ऐतिहासिक धरोहर ओझला पुल को सजाने-संवारने की तैयारी शुरू हो गई है। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष श्याम सुंदर केशरी की अगुवाई में इस पुल को पर्यटन केंद्र में तब्दील करने की योजना बनाई गई है। उन्होंने बताया कि पुल के नीचे से बहने वाली नदी में चैक डैम बनाकर मोटर बोट चलाया जाएगा। दशकों से उपेक्षा के चलते जर्जर हो रहे पुल के मरम्मत का कार्य किया जा रहा है। उसके कमरों में दुकानें खुलेगी। जबकि छत से मनोहारी दृश्य देखने को मिलेगा। सड़क के नीचे बने हाल में मनोहारी धरोहरों के चित्रों के साथ सजा म्युजियम जिले की गौरव गाथा बताएगा। एक दिन की आमदनी से बना हैं पुल विंध्याचल जाने वाले मार्ग पर भक्तों की सुविधा के लिए एक दिन की रुई के आमदनी से नगर के व्यापारी महंथ परशुराम गिरी ने नदी पर चार मंजिला पुल का निर्माण 1850 में कराया था। पुल के कमरों को इस कदर बनाया गया है कि बिना बिजली कनेक्शन के ही हर कमरा रोशनी और हवादार हैं। देश में पुल तो बहुत है पर नदी पर बना चार मंजिला पुल केवल उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में हैं। मेला स्थल की जमीनों पर भू माफियाओं का कब्जा ओझला पुल पर लगने वाला मेला समय के साथ अब केवल किस्सा कहानी बन गया है। जहा पहले नौका दौड़, तैराकी प्रतियोगिता, कुश्ती दंगल होता था। मेले के दौरान नदी में लोटा फेंका जाता था। जिसे पानी की गहराई से ढूंढ कर लाने वाला श्रेष्ठ गोताखोर कहा जाता था। विजेताओं को पुरस्कार देने के साथ ही सम्मानित किया जाता था। ओझला नदी पर लगने वाले मेले पर विराम लगने के साथ ही उसके किनारे पड़ी खाली जमीनों पर कब्जा करने की होड़ मची है। पुल की सुधि लिए जाने से अब लोगों को उम्मीद है कि जिला प्रशासन की सजगता से सरकारी जमीन पर किए गए अतिक्रमण को हटाया जाएगा। ओझला का पुल एक बार फिर अपने धरोहरों की गाथा बतायेगा। पुल के साथ राहगीरों के लिए था मुफ्त का सराय चार मंजिला बने पुल की खासियत यह है कि इसके अगल -बगल के साथ ही उपरी तल व पुल के नीचे मुसाफिरों के लिए ठहरने के लिए विशाल कमरे बनाया गया है। पुल का निर्माण उत्कृष्ट कलाकृति के कारण अपने आप में बेमिशाल है। सैकड़ों साल से जनसेवा करते हुए पुल आज भी खड़ा है। चार कोण पर बने इसके गुम्बद पुल को बैलेंस करते है। चार मंजिला सराय के छत से गुजरने वाली सड़क अपनी गाथा कहती हुई दिखाई पड़ती हैं।
भारतीय व्यापारी ने बनवाया पुल देश पर ब्रितानी हुकूमत का साम्राज्य था, अंग्रेज भारतीय जनता की उपेक्षा कर केवल अपने साम्राज्य व व्यापार के विस्तार में लगे थे। उस दौरान केवल जल मार्ग से यातायात की व्यवस्था थी। सौदा तय होने पर आने वाले सामानों को घोडा गाड़ी व ऊंट के माध्यम से भेजा जाता था। गंगा नदी के किनारे कोलकाता व मुम्बई के बीच बसा जिला रुई, लाह एवं चपड़ा का विशाल मण्डी था। सात समुन्द्र पार से आये विदेशी आक्रान्ता देश को लुटने में जब मशगुल थे। उस दौरान भारतीय व्यापारी परशुराम गिरी ने रुई की एक दिन के आमदनी से बेजोड़ पुल का निर्माण कराकर नागरिको को सहूलियत दी थी। जो आज सेवा प्रदान कर रहा हैं।
जिले की धरोहर को पुनर्जीवित करने की उम्मीद मंडलीय पर्यटन सलाहकार समिति के सदस्य़ रहे सलिल पाण्डेय ने पुल के जीर्णोद्धार पर प्रसन्नता जताया। कहा कि वह एक पुल ही नहीं जिले के साथ ही देश की धरोहर हैं।