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मोबाइल एडिक्शन से युवाओं पर टाल मटोल की आदत हावी:स्पेशल थेरेपी से 21 दिन में मिल रही राहत, LU के शोध में खुलासा

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युवाओं की बड़ी आबादी टालमटोल की जद में है। रिसर्च बेस सर्वेक्षण से ये सामने आया है कि मोबाइल फोन का एडिक्शन, फिजिकल एक्टिविटी में कमी, पोस्ट कोविड के असर के चलते स्टूडेंट्स में टालमटोल की आदत बढ़ी है। हुरु और बाल्किस के 2017 में हुए शोध से पता चलता है कि 92% भारतीय छात्र टालमटोल करते हैं, और उनमें से 62% अक्सर ऐसा करते हैं जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में हुए शोध में ये पाया कि कॉग्निटिव बेहवीयरल थेरेपी (CBT) के 21 दिनों के सेशन से टालमटोल से निजात पाया जा सकता है। 200 स्टूडेंट्स पर हुआ शोध
लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की रिसर्च स्टूडेंट जया मिश्रा के रिसर्च में 200 छात्रों को शामिल किया गया। टालमटोल की समस्या से पीड़ित 23 छात्रों को यह थेरेपी दी गई। इससे उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आया। इसकी पुष्टि उनके अभिभावकों द्वारा भी किया गया। समस्या से जूझ रहे हर उम्र के लोग
मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष और शोध निर्देशक डॉ. अर्चना शुक्ला के मुताबिक, टाल- मटोल की आदत खुद को नुकसान पहुंचाती है। भारत में यह सभी आयु समूहों में पाया जाता है। इससे सबसे अधिक प्रभावित होने वाला समूह युवाओं का है। पॉजिटिव सोच से टाल मटोल की आदत को किया काबू
प्रो.अर्चना ने बताया कि CBT के सेशन में टालमटोल और तर्कहीन विश्वासों में स्टूडेंट्स के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदलने का प्रयास किया गया। इसमें उन्हें खुद को पुरस्कार देने, काम के लिए समय निर्धारित करने, कार्य की ग्रेडिंग करने, प्राइम टाइम और प्राइम लोकेशन पहचानने जैसे कार्य दिए गए। इसे उन्होंने बड़ी ही आसानी से खुद पर लागू किया। 21 दिनों के सत्र में रोजाना 50 मिनट उन्हें ये काम दिए गए। अगर ऐसे लक्षण दिखें तो मनोवैज्ञानिक की लें सलाह
टालमटोल के व्यवहार से पीड़ित लोगों को तत्काल मनोवैज्ञानिक से संपर्क करना चाहिए। इससे समय रहते उनके व्यवहार और आदतों में परिवर्तन लाने का काम किया जा सकता है।

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