श्री राम जन्मभूमि परिसर के मध्य में अंगद टीला और नल-नील टीला के सौंदर्यीकरण का काम भी शुरू हो चुका है। यह सौंदर्यीकरण का काम विशेष थीम पर किया जा रहा है। इन दोनों टीलों का सौंदर्यीकरण करा रही संस्था जीएमआर के विशेषज्ञों की ओर से निर्धारित थीम की डिजाइन के अनुसार अंगद टीला पर उनके विशालकाय चरण की छाप होगा, जिसे तैयार किया जा रहा है। अंगद जी अविचल पांव ही उनकी विशेषता है। घटना को आसानी से समझ सके। रामायण के अनुसार राजदूत के रूप में रावण के दरबार में पहुंचकर अंगद ने लंकेश रावण को समझाने की कोशिश किया था। फिर भी मदांध रावण अड़ा रहा, तो अंगद ने उसके मद को चूर करने के लिए अपना पैर इस शर्त के साथ जमा दिया कि यदि उनके पांव को कोई उठा देगा तो वह माता सीता को हार जाएंगे और भगवान राम भी वापस लौट जाएंगे। पुजारी संतोष दास बातते है कि राम चरित्र मानस में इसका उल्लेख संत तुलसीदास ने कहा है ‘जौ मम चरन सकसि सठ टारी, फिरहिं रामु, सीता मैं हारी, सुनहु सुभट सब कह दससीसा पद गहि धनरि पछारहु कीसा…’। अंगद टीला पर अंकित होगी 14 दुर्गुणों की चौपाई खास बात है कि श्रीराम चरित मानस की यह चौपाई भी अंगद टीला पर अंकित की जाएगी। इसके साथ अंगद की ओर से रावण को बताए गए 14 दुर्गुणों की चौपाई भी अंकित की जाएगी। भक्तों को पानी में तैरते पत्थर भी देखने को मिलेंगे नल-नील टीला को भी विशेष रूप से तैयार किया जा रहा है। श्रद्धालुओं को यहां रामायण कालीन पत्थर पानी में तैरते देखने को मिलेगा। पुजारी के अनुसार “रामादल में नल-नील की भूमिका सिविल इंजीनियर की तरह थी। उनकी यह प्रतिभा लंका प्रवेश के लिए बनाए सेतु में सर्वोपरी थी। उनके बनाएं सेतु आज भी सेतुबंध रामेश्वरम के रूप में प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण नल-नील की ही देखरेख में किया गया। श्रीराम चरित मानस में वर्णित है कि ‘सैल बिस्वाल आनि कपि देहीं, कंदुक इव नल-नील, देखि सेतु अति सुंदर रचना, बिहसि कृपानिधि बोले बचना…’। बताया गया कि सेतु निर्माण में भगवान राम का प्रताप तो था ही लेकिन इसके साथ तकनीक के प्रयोग का श्रेय उन्हें दिया जाता है। नल-नील के इस विशेषता से जामवंत पहले से परिचित थे। इसी थीम पर राममंदिर परिसर में नल–नील टीले को विकासित किया जा रहा है, ताकि यहां आने वाले श्रद्धालु यह के दृश्य देखकर त्रेता युग की कल्पना कर सके।