लखनऊ विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में चल रहे चार दिवसीय विशेष व्याख्यान श्रृंखला के दूसरे दिन एक महत्वपूर्ण सत्र का आयोजन हुआ। विभाग की अध्यक्षा डॉ. रजनी श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ ।इस कार्यक्रम में प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस प्रो. राकेश चंद्रा ने विश्लेषणात्मक व्यवहारवाद पर गहन व्याख्यान दिया। प्रो. चंद्रा ने अपने व्याख्यान में रसेल के वर्णन सिद्धांत से शुरुआत की। उन्होंने बताया कि दर्शन में उत्पन्न अधिकांश समस्याएं भाषा की भ्रामकता से जुड़ी हैं, जिन्हें उचित भाषा के प्रयोग से सुलझाया जा सकता है। उन्होंने माइंड, बॉडी और व्यक्तित्व के विचारों को विश्लेषणात्मक व्यवहार से जोड़कर समझाया। पहली सैद्धांतिक और दूसरी को प्रयोगात्मक माना गया व्याख्यान में गिलबर्ट राइल के विचारों पर विशेष जोर दिया गया। राइल ने ‘knowing that’ और ‘knowing how’ की अवधारणाओं के बीच महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट किया, जहां पहली को सैद्धांतिक और दूसरी को प्रयोगात्मक माना गया। प्रो. चंद्रा ने राइल के ‘मशीन में प्रेत’ सिद्धांत की व्याख्या करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने डेकार्ट के माइंड-बॉडी संबंध को एक कोटि भ्रम के रूप में प्रस्तुत किया। शोध छात्र अनुज मिश्रा द्वारा रिपोर्ट तैयार किया गया कार्यक्रम में विभाग के स्नातक, परास्नातक और शोध छात्रों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। शोध छात्र अनुज मिश्रा द्वारा कार्यक्रम की रिपोर्ट तैयार की गई। डॉ. रजनी श्रीवास्तव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ दूसरे दिन का सत्र संपन्न हुआ।