तबले को दुनिया भर में पहचान और मान-सम्मान देने का काम महान तबला वादक जाकिर हुसैन ने किया था। सोमवार को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। वह अभी 73 वर्ष के ही थे। जाकिर हुसैन मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे थे। जाकिर हुसैन के दुनिया को अलविदा कहने के बाद संगीत जगत में शोक की लहर है। वही धर्म की नगरी काशी में संगीत से जुड़े कलाकारों ने श्रद्धांजलि दी और उनको याद किया। संकटमोचन संगीत समारोह में गाने की इच्छा रही अधुरी जाकिर हुसैन के करीबी बताते हैं कि उनका वाराणसी से भी काफी ज्यादा लगाव था। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वह संकट मोचन संगीत समारोह में भी अपनी अर्जी लगाए। इसके लिए उन्होंने 97वें महोत्सव में अपनी अर्जी भी भेजी थी लेकिन वही समझ में शामिल नहीं हो सके। संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र बताते हैं श्रीसंकट मोचन फाउंडेशन द्वारा 1993 में ध्रुपद तीर्थ तुलसी घाट पर हुए काशी उत्सव में जाकिर हुसैन ने अपने पिता उस्ताद अललारखा के साथ यादगार वादन किया था। संभवत: बनारस में वह उनकी आखिरी प्रस्तुति रही। पिता-पुत्र के साथ उस कार्यक्रम में सारंगी पर सुल्तान खान ने संगत की थी। किशन महाराज के यहां जमीन पर बैठते थे ‘उस्ताद’ उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष और पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य ने दुख व्यक्त किया। राजेश्वर आचार्य ने कहा – दुखद सूचना से आघात लगा कि महान तबला वादक और परम्परा के साथ देश को वैश्विक ख्याति दिलाने वाला और महान कलाकार अब हमारे बीच नहीं रहा। उन्होंने कहा, उस्ताद के घर उस्ताद पैदा हुआ और वैश्विक ख्याति के बाद भी वह बड़ों के प्रति शीलवान थे। सांस्कृतिक नगरी बनारस में तो उनके आचरण ने सारे कलाकारों को मुग्ध कर दिया था। जाकिर हुसैन के सरल और जमीन से जुड़े व्यवहार के बारे में बात करते हुए राजेश्वर आचार्य ने बताया अगर पं. गुदई महाराज कार्यक्रम देने जा रहे हैं तो उनका तबला उठाकर जाकिर हुसैन साथ-साथ चलते थे। यही नहीं पंडित किशन महाराज के यहां घर पर वह कभी भी उनकी बराबरी या कुर्सी पर नहीं बैठते थे। वह अक्सर नीचे उनके चरण के पास बैठते थे। आइए अब जानते हैं काशी के अन्य कलाकारों ने क्या कहा