इस संसद सत्र में ज़्यादा कामकाज नहीं हो पाया लेकिन संविधान पर चर्चा कई मायनों में दिलचस्प रही। नई सासंद प्रियंका गांधी ने पहली बार लोकसभा में भाषण दिया और बहुत हद तक वे अच्छा भी बोलीं। दूसरे दिन राहुल गांधी बोले लेकिन उनके भाषण में उतना नयापन नहीं था जितना प्रियंका के भाषण में था। बाक़ी कांग्रेसी नेता भी बोले लेकिन सभी ने मोदी सरकार पर संविधान को एक तरह से तहस नहस करने का आरोप ही लगाया। अब जिनके अपने घर शीशे के हों, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए लेकिन कांग्रेस और उसके नेताओं को समझाए कौन? जब चर्चा का जवाब देने का मौका आया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलने खड़े हुए। उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक की कई ग़लतियाँ गिना दीं जिन्हें कोई कांग्रेसी भी नकार नहीं सकता। वे 1952 में नेहरूजी द्वारा मुख्यमंत्रियों को लिखी गई चिट्ठी से शुरू हुए। फिर श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश पर लादी गई इमरजेंसी तक पहुँचे। उस इमरजेंसी तक जिसे याद करके लोग आज भी काँप जाते हैं। उन्होंने कांग्रेसियों से पूछा कि इमरजेंसी में आम नागरिक के सारे संवैधानिक क़ानून निरस्त करने वाले आप संविधान की रक्षा की बात किस मुँह से कर सकते हैं? मोदी यहीं नहीं रुके। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए शाहबानो मामले का भी ज़िक्र किया। दरअसल, शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को राजीव सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण की गरज से पलट दिया था। इस मामले को उठाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा जो लोग अपनी सरकारों के रहते सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान नहीं कर पाए, वे संविधान की रक्षा की बात कैसे कर सकते हैं? यही नहीं संवैधानिक अधिकार प्राप्त मनमोहन कैबिनेट के निर्णय को राहुल गांधी द्वारा सार्वजनिक तौर पर फाड दिए जाने की घटना भी उन्होंने याद दिलाई। और यह भी कि किसी संवैधानिक पद पर न होते हुए एक व्यक्ति कैबिनेट के निर्णय को फाड देता है और वह निर्णय सरकार फिर वापस ले लेती है, इससे बड़े आश्चर्य की बात क्या हो सकती है? प्रधानमंत्री ने एक और संवेदनशील मुद्दा उठाया जिसका कांग्रेस के पास कोई जवाब ही नहीं है। उन्होंने कहा- देश के संविधान की बात तो बहुत दूर की है, कांग्रेस तो खुद अपने संविधान का सम्मान भी नहीं कर पाती! दरअसल यह मामला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी से जुड़ा हुआ है। हुआ यूं था कि सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गई थीं और केसरी कुर्सी छोड़ नहीं रहे थे। कहते हैं- भाई लोगों ने पहले तो केसरी को बाथरूम में बंद कर दिया और बाद में दफ़्तर के बाहर फेंक दिया था। कुल मिलाकर कांग्रेस के ऐसे कई कारनामे हैं जिनका खुद उसके पास ही कोई जवाब नहीं है। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जब तक हमारे पास सटीक और तार्किक जवाब नहीं हो, दूसरों पर सवाल उठाने से परहेज़ करना चाहिए।