Drishyamindia

हरियाणा में नेता विपक्ष की दौड़ में चौथा नाम जुड़ा:कादियान फ्रंटरनर बने; हुड्‌डा के अलावा अरोड़ा-चंद्रमोहन भी दावेदार, 24 नवंबर तक ऐलान संभव

Advertisement

हरियाणा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष के दौड़ में नया चेहरा शामिल हो गया है। पार्टी के सबसे अनुभवी नेताओं में शामिल रघुबीर कादियान (80) का नाम सामने आ रहा है। कांग्रेस हाईकमान पार्टी में चल रही गुटबाजी के बीच सीनियर और अनुभवी नेता पर दांव खेल सकती है। इसकी घोषणा 24 नवंबर तक हो सकती है। हालांकि इस दौड़ में पूर्व CM भूपेंद्र हुड्‌डा के अलावा गैर जाट चेहरे में थानेसर से विधायक अशोक अरोड़ा और पंचकूला से विधायक चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम भी चर्चा में है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर को आए थे। इसके बाद विधायकों की चंडीगढ़ में मीटिंग हुई और हाईकमान को अधिकार दे दिए। मगर, इस पर फैसला नहीं हो पाया। इसी बीच नेता प्रतिपक्ष के बगैर ही एक सत्र भी गुजर गया। पूर्व सीएम हुड्‌डा ने कहा था कि महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव की वजह से इस पर फैसला नहीं हुआ। अब चूंकि यहां चुनाव खत्म हो चुके हैं और 23 नवंबर को रिजल्ट भी आ जाएगा। उसके बाद इसका ऐलान हो सकता है। इससे पहले कांग्रेस प्रवक्ता रहे बालमुकुंद शर्मा ने भी दावा किया था कि भूपेंद्र हुड्‌डा इस बार नेता प्रतिपक्ष नहीं होंगे। मगर, हुड्‌डा अपने करीबी यानी डॉ. रघुबीर कादियान को आगे कर अपनी राजनीति को सेफ कर सकते हैं। ऐसा कर वह हरियाणा के नेताओं में एक मैसेज देने में भी कामयाब होंगे कि कांग्रेस उनके कहने से बाहर नहीं है। जिन 3 चेहरों के नाम, उनका दावा क्यों कमजोर पड़ा… 1. अशोक अरोड़ा: इनेलो की छाप, पहली बार कांग्रेस विधायक बने
अभी तक नेता प्रतिपक्ष के लिए केवल 2 नामों पर ही विचार चल रहा था। इसमें पहला नाम अशोक अरोड़ा और दूसरा नाम पूर्व सीएम चौधरी भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई का है। अशोक अरोड़ा को रेस में सबसे आगे बताया जा रहा था। मगर कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक हाईकमान उनके नाम पर सहमत नहीं है। सबसे बड़ा कारण है कि वह लंबे समय से चौटाला परिवार से जुड़े रहे हैं। वह 2019 में ही इनेलो छोड़कर कांग्रेस में आए थे, जब इनेलो में पूरी तरह बिखराव हो चुका था। वह कांग्रेस में आने के बाद पहली बार विधायक बने हैं। भाजपा में पंजाबी समाज से खुद मनोहर लाल खट्‌टर हैं और अरोड़ा मनोहर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। ऐसे में उनके नेता प्रतिपक्ष बनने से पार्टी को फायदा मिलना मुश्किल है। 2. चंद्रमोहन: BJP नेता के भाई, सैलजा के प्रति वफादार
चंद्रमोहन बिश्नोई के नाम पर भी चर्चा हुई। मगर हाईकमान को पक्ष और विपक्ष (निगेटिव) दोनों कारण बताए गए। चंद्रमोहन के निगेटिव पॉइंट ज्यादा हैं। वह पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे हैं, जो विधायक मैनेज करने के लिए जाने जाते थे। वहीं चंद्रमोहन के छोटे सगे भाई कुलदीप बिश्नोई भाजपा में हैं और बिश्नोई समाज के नेता भी हैं। हरियाणा में बिश्नोई समाज की भागीदारी अधिक नहीं है और कुछ सीटों पर ही उनका प्रभाव है। चंद्रमोहन को आगे करने से जाट समाज कांग्रेस से दूरी बना सकता है। वहीं हुड्‌डा भी चंद्रमोहन के नाम से अंदरखाते असहमत हैं। चंद्रमोहन चुनावों के दौरान खुलकर सांसद कुमारी सैलजा को सीएम बनाने की पैरवी वाले बयान दे चुके हैं। ऐसे में चंद्रमोहन को नेता प्रतिपक्ष बनाने से कांग्रेस हाईकमान पीछे हट सकता है। 3. भूपेंद्र हुड्‌डा: 3 हार का बोझ, लीडरशिप पर उठे सवाल
वहीं भूपेंद्र सिंह हु‌ड्डा का नाम भी रेस में बताया जा रहा है, मगर उनकी दावेदारी सबसे कम बताई जा रही है। इसका कारण है कि भूपेंद्र हुड्‌डा 2019 से 2024 तक नेता प्रतिपक्ष बन चुके। लगातार उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव लड़ रही मगर 3 चुनाव में लगातार हार मिली, जिसका बोझ भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर है। हुड्डा को साइड लाइन दिखाकर हाईकमान हरियाणा में मैसेज देना चाहेगा कि हरियाणा में हुड्‌डा ही कांग्रेस नहीं है। वहीं हुड्‌डा को आगे करने से कांग्रेस में गैर जाट नेताओं में फूट का डर भी है। इसके अलावा चुनाव में माहौल के बावजूद कांग्रेस की हार के लिए हुड्‌डा की लीडरशिप पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसलिए हुड्‌डा के नाम पर सहमति होनी भी मुश्किल लग रही है। 20 साल में पहली बार नेता प्रतिपक्ष चुनने में इतना लंबा समय
हरियाणा में 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम जारी हुए थे और 17 अक्टूबर को हरियाणा सरकार का गठन हुआ था। इतने दिन बीत जाने के बाद भी कांग्रेस विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है। 20 साल में ऐसा पहली बार हो रहा कि हरियाणा को नेता प्रतिपक्ष के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण पिछले 3 चुनाव में कांग्रेस को लगातार मिली हार है। 2009 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से पीछे रह गई थी। 2005, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव परिणाम के बाद करीब 15 दिन के अंदर नेता प्रतिपक्ष चुन लिए गए थे। नेता चुनने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने 18 अक्टूबर को 4 पर्यवेक्षक भेजे थे, लेकिन विधायक दल की बैठक में हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया गया। हार के बावजूद हुड्डा-सैलजा गुट में खींचतान बरकरार
2019 में विपक्ष का नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को बनाया गया था। हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में हुई हार के लिए हुड्डा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार भी भीतरघात और गुटबाजी को सबसे बड़ी वजह बता रहे हैं। ऐसे में सिरसा सांसद कुमारी सैलजा का गुट हुड्डा को फिर विपक्षी दल नेता बनाने का विरोध कर रहा है। इसे देख हुड्‌डा 31 विधायकों को इकट्‌ठा कर शक्ति प्रदर्शन भी कर चुके हैं। विधायकों की यह मीटिंग ऑब्जर्वरों की चंडीगढ़ मीटिंग से पहले हुई थी। हालांकि हुड्‌डा ने कहा था कि विधायक सिर्फ चुनाव में जीत के बाद मिलना चाहते थे, इसे किसी दूसरी बात से जोड़ना ठीक नहीं है।

​ 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

मध्य प्रदेश न्यूज़

यह भी पढ़े