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कामेश्वर चौपाल का निधन,राम मंदिर की रखी थी पहली ईंट:दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में ली आखिरी सांस; RSS ने प्रथम कारसेवक का दिया था दर्जा

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राम जन्मभूमि निर्माण के ट्रस्टी और बिहार के पूर्व MLC कामेश्वर चौपाल का 68 साल की उम्र में निधन हो गया है। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। परिजनों के अनुसार, गुरुवार देर रात अस्पताल में उनका निधन हुआ। पिछले कई दिनों से वो बीमार चल रहे थे। उन्हें किडनी की बीमारी थी। उनकी बेटी ने उन्हें किडनी डोनेट की थी, लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। कामेश्वर चौपाल ने ही राम मंदिर निर्माण के लिए रखी पहली ईंट रखी थी। आरएसएस ने उन्हें प्रथम कारसेवक का दर्जा भी दिया था। उनका पार्थिव शरीर पटना लाया जाएगा। सुपौल के मरौना प्रखंड स्थित उनके पैतृक गांव कमरैल में अंतिम संस्कार हो सकता है। राम मंदिर की पहली ईंट रखी थी राम मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट में बिहार से भाजपा नेता कामेश्वर चौपाल को शामिल किया गया था। कामेश्वर चौपाल ने ही 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखी थी। वो विश्व हिंदू परिषद में बिहार के सह संगठन मंत्री भी रहे थे। कामेश्वर चौपाल ने साल 1991 में रोसड़ा सुरक्षित लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए। इसके बाद 1995 में बेगूसराय के बखरी विधानसभा सीट से लड़े। यहां भी हार का सामना करना पड़ा। 2002 से 2014 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। फिर एक बार 2014 में उन्होंने सुपौल से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन फिर जीत नहीं मिली। एक साल पहले भास्कर ने राम मंदिर निर्माण को लेकर कामेश्वर चौपाल से बात की थी। पढ़िए उन्होंने राम मंदिर आंदोलन, बाबरी मस्जिद और भव्य मंदिर निर्माण पर क्या कुछ कहा था… राम मंदिर निर्माण में मोदी और योगी का योगदान कामेश्वर चौपाल राम मंदिर के निर्माण में सबसे अधिक योगदान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानते थे। उन्होंने कहा था कि ‘नरेंद्र मोदी ने टूटे हुए मन को जोड़ने का काम किया है। इसमें योगी और मोदी दोनों का ही अभूतपूर्ण योगदान है।’ ‘पहले भी सरकारें थीं, जो कहती थी कि राम हैं ही नहीं और राम काल्पनिक हैं, लेकिन मोदी और योगी ने सीना ठोक कर कहा कि राम परम ब्रह्म परमेश्वर हैं और भारत के राम, कृष्ण और शंकर महानायक हैं।’ 100 सालों से लोग कर रहे थे संघर्ष सुपौल के रहने वाले कामेश्वर चौपाल का कहना था कि ‘राम मंदिर बनने से पहले हमारे समय में कम से कम एक दशक तक आंदोलन चल चुका था। 100 सालों से लोग संघर्ष इस आशा और विश्वास के साथ कर रहे थे कि राम के जन्म भूमि पर आज नहीं तो कल भव्य और दिव्य मंदिर बनेगा। हम सत्य की लड़ाई लड़ रहे थे और पता था कि सत्य आज नहीं तो कल सामने आएगा।’ ‘इसलिए हमारे लोग दृढ़ संकल्पित थे कि उनके सामने राम मंदिर बनाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। हमारे मन में निष्ठा पूर्वक यह भाव था कि यदि राम जन्मभूमि सत्य हैं, तो उस पर राम मंदिर आज नहीं तो कल भव्य रूप में बनेगा और वो साकार हो गया।’ बाबर ने जान बुझकर रखा था मस्जिद का नाम बाबरी कामेश्वर चौपाल ने आगे कहा था कि, ‘बाबरी नाम लोग गलत शब्द का इस्तेमाल कर रहे है क्योंकि पूरे विश्व में किसी व्यक्ति के नाम पर आज तक मस्जिद नहीं हैं। मस्जिद तो अल्लाह के नाम पर बनाई जाते है। ये बाबर,औरंगजेब इन सब के नाम से कोई मस्जिद नहीं है। ये बाबरी मंदिर नाम इसलिए रख दिया गया था कि पूरे समाज को सेंटीमेंट में जोड़कर भड़काया जा सके। मस्जिद तो खुदा का होता है। यह सिद्ध करता है कि बाबर ने जान बूझकर उस स्थान पर गलत तरीके से मस्जिद बनवाई थी।’

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