भास्कर न्यूज|मधुबनी जिले की अगर बात करे तो तकरीबन 15 हजार हेक्टेयर मे किसानों की ओर से आलू की खेती की गई है। ऐसे में किसान को यह जानना जरूरी है कि आलू के पौधों में लगने वाला झुलसा रोग से इसे कैसे बचाया जाएक्योंकि आलू के पौधे में इस रोग का खतरा 10 जनवरी तक अधिक रहता है। ठंड के बढ़ने के साथ ही आलू की फसलों में झुलसा रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। फसल में झुलसा लगे इसके पूर्व ही उसका उपाय कर देना होगा। उक्त जानकरी देते हुए सहायक निदेशक उद्यान पदाधिकारी ने बताया कि मौसम का टेंपरेचर जब 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे होता है तब आलू की फसल में झुलसा रोग का खतरा बढ़ जाता है। दिसंबर महीना आलू की फसलों में झुलसा रोग लगने का सबसे प्रभावित महीना होता है। इसलिए इस महीने में किसानों को फसल को बचाने के लिए इस रोग का उपचार पहले ही कर लेना होता है। झुलसा से प्रभाव की पहचान खेत में आलू की फसल या डंठल गलने से होता है। ऐसा हो तो किसानों को सावधान हो जाना चाहिए। झुलसा की सबसे बड़ी क्षति यह होती है। जिस खेत की फसल में यह रोग लगता है उस प्लॉट की पूरी फसल को 24 घंटे में अपनी चपेट में ले लेता है। किसान उपचार करते रह जाते हैं लेकिन रोग लगने के बाद इसका पूर्ण उपचार नहीं हो पाता है और किसानों की मेहनत पर पानी फिर जाता है। ऐसे में किसान खेत के चारों कोने पर धुआं कर दें व खेतों की सिंचाई पहले करें। छिड़काव किया जाए तो फसल अच्छी होगी और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो जाएगी वहीं, कृषि वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान केद्र बसैठा के मंगलानंद झा ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए मैनकोजेप और कार्बेडाजिम को मिलाकर उसका घोल बनाया जाता है। उस घोल को एक लीटर में 2 ग्राम मिलाकर खेतों में छिड़काव किया जाता है। ऊंची भूमि वाले आलू की फसल में यदि नमी का अभाव हो तो क्यारियों में हल्की सिंचाई कर सूक्ष्म पोषक तत्व का घोल बनाकर 2 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में खेतों में छिड़काव किया जाए तो फसल अच्छी होगी और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होगी। गेहूं की अच्छी उपज के लिए सिंचाई के बाद चौथे या पांचवें दिन दानेदार यूरिया का छिड़काव करें। गेहूं की पहली सिंचाई के बाद यूरिया का करे छिड़काव तो फायदा होगा। बताया गया कि अच्छी पैदावार के लिए फसलों का उचित प्रबंधन सही समय पर करना बेहद जरूरी है। इससे किसानों को आगे अच्छी पैदावार का फायदा होगा।