पांच साल बाद झारखंड में नगर निकाय चुनाव संभव हो सकता है। चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में हुई लगातार सुनवाई के बाद रास्ता साफ नजर आता दिख रहा है। राज्य में अप्रैल-मई में यह चुनाव हो सकता है। राज्य में जिस वोटर लिस्ट से नवंबर 2024 में विधानसभा चुनाव हुआ था, उसी मतदाता सूची से नगर निकाय चुनाव होगा। अगस्त 2024 में तैयार इस मतदाता सूची के आधार पर ही निकायों के वार्ड का विखंडन भी होगा। भारत निर्वाचन आयोग ने यह मतदाता सूची राज्य निर्वाचन आयोग को सौंप दी है। भारत निर्वाचन आयोग ने शपथ पत्र के माध्यम से हाईकोर्ट को यह जानकारी दी। जस्टिस आनंद सेन की कोर्ट ने नगर निकाय चुनाव कराने को लेकर दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई 12 सप्ताह बाद निर्धारित की है। सुनवाई में क्या कुछ हुआ इससे पहले राज्य निर्वाचन आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि अपडेटेड मतदाता सूची एक जनवरी 2025 की तिथि को मानकर जारी की गई है। लेकिन भारत निर्वाचन आयोग ने अगस्त 2024 में जारी मतदाता सूची दी है। इस पर भारत निर्वाचन आयोग की ओर से कहा कि इसी मतदाता सूची पर विधानसभा चुनाव हुआ था। इसलिए इस सूची के आधार पर चुनाव कराया जा सकता है। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह इस सूची से चुनाव कराने को तैयार है। इसी वोटर लिस्ट के आधार पर वार्डों का विखंडन करते हुए चुनाव की तैयारी की जाएगी। याचिकाकर्ता पूर्व पार्षद रोशनी खलखो की ओर से अधिवक्ता विनोद सिंह ने पैरवी की। गौरतलब है कि 14 निकायों में 2020 से चुनाव नहीं हुए हैं। वहीं कई निकायों में अप्रैल 2022 से चुनाव लंबित है। अप्रैल-मई में निकाय चुनाव संभव झारखंड में नगर निकाय चुनाव अप्रैल या मई में हो सकता है। चुनाव के मामले में 16 जनवरी को मुख्य सचिव हाईकोर्ट में पेश हुई थीं। उन्होंने राज्य सरकार की ओर से निकाय चुनाव कराने के लिए चार महीने का समय मांगा था। कोर्ट ने इसकी मंजूरी देते हुए निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए चुनाव कराने का निर्देश दिया था। इस आधार पर अप्रैल या मई में चुनाव होने की उम्मीद है। फिलहाल ओबीसी को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट सर्वे चल रहा है। हाईकोर्ट ने 4 जनवरी को 3 हफ्ते में चुनाव प्रक्रिया शुरू करने को कहा था हाईकोर्ट ने पिछले साल 4 जनवरी को सरकार को तीन सप्ताह में चुनाव प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि समय पर चुनाव न कराना और चुनाव रोकना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खत्म करने जैसा है। यह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। ट्रिपल टेस्ट की आड़ में समय पर चुनाव न कराना उचित नहीं है। इसके बाद सरकार ने एकल पीठ के आदेश को खंडपीठ में चुनौती देते हुए ट्रिपल टेस्ट के बाद ही चुनाव कराने की अनुमति देने का आग्रह किया था। लेकिन खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को सही बताते हुए सरकार की याचिका खारिज कर दी थी।
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