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महाकुंभ से लौटीं महिलाएं रात को सो नहीं पातीं:सास की बॉडी के पास 2 घंटे बेसुध पड़ी रही बहू, लाशों के बीच फंसी थी जेठानी

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मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी को प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ में बिहार के 15 लोगों की मौत हो गई। हालांकि, UP सरकार ने 30 लोगों के मरने और 60 लोगों के घायल होने का दावा किया है। मरने वालों में पटना से सटे मनेर की सिया देवी भी थीं। वह अपने गांव जीरखान टोले की 14 महिलाओं के साथ महाकुंभ नहाने गईं थी, मगर लौट नहीं पाईं। जो महिलाएं लौट कर आई हैं, उनके चेहरे पर अभी भी मौत का खौफ साफ दिख रहा है। प्रयाग में मरने वाले लोगों में एक सिया देवी के घर दैनिक भास्कर पहुंचा। उनकी बहू और कुंभ से लौटीं दो श्रद्धालुओं से बात की और वहां के हालात को जाना। सिया देवी की बहू रिंकू की जुबानी पढ़िए कहानी सिया देवी बहू के साथ कुंभ नहाने गईं थी। बहू रिंकू को भगदड़ और आंख के सामने हुई मौतों का इस कदर सदमा लगा है कि वो बोलते-बोलते चुप हो जा रही हैं। उनके घर पर फिलहाल तेरहवीं की तैयारी चल रही है। बिना प्लास्टर-पेंट का घर बता रहा है कि आर्थिक हालत बहुत बेहतर नहीं है। काफी प्रयास के बाद रिंकू हमसे (भास्कर) से बात करने को तैयार हुईं। उन्होंने बताया, ‘हम लोग दोपहर एक बजे से रात 11 बजे तक पैदल चले। वहां माइक में अनाउंस हो रहा था कि 12 बजे रात से नहान होगा। हम लोग चलते चले गए। संगम के पास पहुंचने ही वाले थे कि सामने से लोग आने लगे। हल्ला नहीं हुआ, लेकिन लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। हम सब लोग एक-दूसरे का आंचल पकड़े थे। हमारे बीच के लोग भी गिर गए। सब एक-दूसरे पर गिरकर दबने लगे।’ बॉडी के साथ दो घंटे तक बैठी रही रिंकू ने बताया, ‘मैं दो औरतों के ऊपर गिर गई थी। जेठानी चिल्ला रही थीं। हमको कुछ सूझ नहीं रहा था। इतने में दो भइया (लोग) दिखे। हमने उनका पैर पकड़ लिया। बोली- बचा दीजिए। उन्होंने हमको निकाला। शरीर पर कपड़ा नहीं था। साड़ी खुल गई थी। बगल में जेठानी गिरी थीं। सास मुंह के बल पड़ी थीं। चेक किया तो सांस नहीं आ रही थी।’ ‘तकरीबन दो घंटे तक सास की बॉडी के साथ बैठी रहीं। साथ के सभी लोग बिछड़ गए थे। हमने सोचा अगर यहां से गईं तो सास की बॉडी भी नहीं मिलेगी।’ दो लोग देवता बनकर आए थे ‘दो घंटे तक भइया लोग को गोहरा (निवेदन) कर रहे थे कि कैसे भी करके हमको यहां से निकाल दो। फिर एंबुलेंस आई और हम लोगों को वहां से अस्पताल लेकर गई। हम भइया लोगों के साथ ही रहे। वो लोग देवता बनकर आए थे। नहीं होते तो मर ही जाते।’ हमने रिंकू देवी की मदद करने वाले अभिषेक से भी बात की। अभिषेक बनारस के एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट में नौकरी करते हैं और दोस्तों के साथ कुंभ नहाने गए थे। वो बताते हैं… हम लोग भूखे-प्यासे रात के 12 बजे गंगा स्नान करके निकले। कपड़ा बदला और संगम से 100 मीटर दूर दूसरी दिशा में बढ़े। लोग जिस रास्ते से निकल रहे थे उसी पर भीड़ लौट रही थी। सामने से भीड़ बढ़ती जा रही थी, मगर नहा कर लौटने वालों के लिए वापस जाने की जगह नहीं थी। इतने में मेरे सामने लोग गिरने लगे। ना शोर मचा और ना ही कोई हलचल। बस लोग बेहोश होने लगे। इतने में एक महिला ने मेरा पांव पकड़कर चीखने लगी। फिर मैंने उन्हें खींचकर बाहर निकाला। फिर कई और महिलाओं को किनारे करने में लग गया। अभिषेक बताते हैं, ‘उस दिन का मंजर याद करते नहीं बनता। तकरीबन दो घंटे बाद एंबुलेंस आई और रिंकू देवी की सास की बॉडी हॉस्पिटल गई।’ बॉडी के साथ जाने नहीं दे रही थी पुलिस रिंकू का आरोप है कि पुलिस उन्हें सास के मृत शरीर के साथ भी नहीं जाने दे रही थी। वह बताती हैं, ‘सास को एंबुलेंस में रखा जा रहा था तो हम भी चढ़ने लगे। पुलिस बोली कि तुम कहां जाओगी, निकलो यहां से। लेकिन हम जबरदस्ती गए। फिर हॉस्पिटल ले जाकर हमको गेट पर उतार दिया। 5 घंटे अस्पताल के गेट पर बैठे रहे। फिर भइया लोग को कहे कि किसी तरह बॉडी दिलवा दीजिए। फिर पुलिस और डॉक्टर आए और हमसे 7 जगह साइन लिया और 15,000 रुपए कैश दिया। फिर दोपहर में एंबुलेंस से घर भेज दिया।’ रिंकू के पास सबूत के नाम पर एक पर्ची है, जिस पर केंद्रीय चिकित्सालय सेक्टर-2, महाकुंभ प्रयागराज 2025 दर्ज है। पर्ची पर ना ही मृतक का नाम लिखा है और ना ही कोई अन्य डिटेल है। जांच कॉलम के आगे लिखा है। -Brought dead (मरा हुआ लाया गया।) प्रयाग से जिंदा लौटी चंदा ने भास्कर को बताया सिया देवी के घर के ठीक पीछे चंदा कुमारी का घर है। रिश्ते में रिंकू और चंदा देवरानी-जेठानी हैं। इनके परिवार की दो और महिलाएं कुंभ गईं थीं। लगभग एक ही परिवार की ये महिलाएं जब कहानी बताती हैं तो हर दूसरी बात में अपने बाल-बच्चा का जिक्र करती हैं। इनका कहना है कि दोबारा कुंभ नहीं जाएंगी। चंदा भी भगदड़ में गिरे लोगों के बीच पड़ी थीं। वो बताती हैं, ‘हमारे नीचे 4 और ऊपर दो लोग मरे पड़े थे। उनका सिर्फ सिर बाहर था, पूरा शरीर दबा हुआ था।’ चंदा बतातीं हैं, ‘हम जतांए (दबे हुए) थे और चिल्ला रहे थे। हमारी सांस रुक रही थी। हिम्मत करके पड़ी रही। आधा घंटे से ज्यादा हो गया, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था। लोग दौड़ रहे थे, भाग रहे थे। मगर कोई उठा नहीं रहा था। इतने में रिंकू की नजर हम पर पड़ी। उसने पैर खींच कर निकाला। हमारा दूसरा पैर अभी दबा ही हुआ था कि रिंकू को उसकी सास दिख गईं। वो मुंह के बल बालू में गिरी थीं। मैं 4 लोगों के ऊपर थी तो बच गई। सबसे नीचे दबी होती तो मर ही जाती।’ देवरानी रिंकू ने पहले अपने सास को निकाला, फिर मुझे खींच कर निकाला। तभी देवता बनकर दो भइया लोग आए। उन्होंने बताया, ‘यहां से बोला गया था कि बस फ्री है। ट्रेन फ्री है। बहुत व्यवस्था है। लंगर है। गांव भर के लोग गए थे तो हम भी चले गए। वहां हमको कोई सुविधा नहीं मिली। 25 किलोमीटर पैदल चल कर वहां पहुंचे और बिना नहाए जान बचाकर कैसे भी लौटे हैं। दोबारा नहीं जाएंगे।’ ‘हमारी सास नहीं मरी होतीं तो हमलोगों का लौटना मुश्किल था। सारा सामान-पैसा- बैग सबकुछ भूल गया। दो दिन भूखे रहना पड़ा। हमारी एक और चचेरी सास गई थीं, वो पांच दिन बाद लौटी हैं।’ लौटकर आने वाली दूसरी श्रद्धालु भगवनिया की कहानी… 65 साल की भगवनिया मानेरे की ही रहने वालीं हैं। 3 बहनों के साथ कुंभ गईं थी, मगर लौट कर आने के बाद उस दिन को याद नहीं करना चाहती हैं। उनका सीना काला पड़ गया है और वो बोलते वक्त कांपने लगती हैं। दोनों वक्त डॉक्टर आता है, ड्रेसिंग करता है। उन्होंने बताया, ‘शाम 5 बजे हम तीनों ट्रेन से उतरे और पैदल चलने लगे। घाट पर पहुंचे तो फिर अचानक भीड़ रुक गई। सब लोग दबने लगे। इसी में से एक व्यक्ति मेरा झोला खींचने लगा। हम चिल्लाये कि छोड़ दो- ऐसा मत करो। लेकिन वो नहीं माना। उनमें से एक ने मेरी छाती पर मुक्का मार दिया तो हम गिरकर बेहोश हो गए।’ ‘होश आया तो बगल में एक महिला अपने 5 साल के बेटे के साथ बैठी थी। शरीर पर एक शॉल थी, साड़ी खुल चुकी थी।’ होश में आने पर उस औरत ने मेरा चेहरा पोछा। पानी पिलाया। पीठ सहलाती रही। हमको उसने बताया कि पुलिस वाला मरा समझ कर फेंकने जा रहा था। कह रहा था कि सांस नहीं चल रही है। लाशों की तरफ फेंक दो। हमने आपको करवट बदलते देखा तो पुलिस वाले को डांटा। तब वह माना। उन्होंने बताया, ‘हमने महिला से हाथ जोड़कर कहा कि घर पहुंचा दो। वो खुद इतना परेशान थी लेकिन हमको उसने निकाला। पूरा दिन जैसे-तैसे पैदल चले। उसने शाम में एक आदमी की गाड़ी में बैठा दिया। वो भइया सिपारा (पटना के मानेर से 55 किलोमीटर दूर) ही आ रहे थे। सुबह 4 बजे उन्होंने हमको मनेर स्टैंड पर उतारा। वहां से घर आ सके।’

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