लोक गायिका शारदा सिन्हा का 72 साल की उम्र में दिल्ली एम्स में निधन हो गया। बीते 11 दिनों से वो अस्पताल में भर्ती थीं। शारदा सिन्हा को बचपन से ही संगीत में काफी रुचि थी। संगीत के लिए उनकी लगन देखकर पिता ने भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिला दिया था। हिंदी, मैथिली, भोजपुरी भाषाओं में कई गीत गाने वाली इस लोक गायिका को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया, लेकिन उनके लिए गाना आसान नहीं रहा। जब उनकी शादी हुई तो उनकी सास ने गाने पर पाबंदी लगा दी थी। गाना गाने की जिद करने पर सास ने कई दिनों तक खाना नहीं खाया था, लेकिन पति बृजकिशोर सिन्हा और ससुर ने उस समय उनका साथ दिया था। सास ने 2 दिनों तक खाना नहीं खाया था भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने बताया था कि ‘मेरी सासू मां का कहना था कि घर में भजन करने तक तो ठीक है। उससे आगे गाना-बजाना नहीं चलेगा। हमारे यहां आज तक घर की बहू ने बाहर जाकर गाना नहीं गाया है, तो तुम भी नहीं गाओगी।’ ‘मेरे सुसर जी को भजन-कीर्तन सुनना बहुत पसंद था। शादी हुए 5 दिन ही हुए थे कि मेरे गांव के मुखिया जी ने मेरे ससुर से कहा था कि सुना है आपकी बहू बहुत अच्छा गाती हैं। आप अपनी बहू से बोलिए कि वह ठाकुरबाड़ी में भजन गाना शुरू कर दें। ससुर जी ने भजन गाने की इजाजत दे दी। ससुर की बहुत इच्छा था कि मेरी बहू ठाकुरबाड़ी में भजन कीर्तन करें।’ ‘इतना सुनते सासू मां बहुत गुस्सा हो गईं। उन्होंने मेरे ससुर से कहा कि आप तो झूठ का इनका मन बढ़ा दे रहे हैं। नई दुल्हन क्या मंदिर में भजन कीर्तन करने जाएंगी। मैंने कहा कि मुझे तो बस गाना गाने के लिए मौका चाहिए था। मुझे यह नहीं मतलब था कि सास खाना खाए या ना खाए, हम बस ससुर जी के पीछे हो लिए।’ ‘मैं सिर पर पल्लू लेकर तुलसीदास जी का भजन गाने लगी, ‘मोहे रघुवर की सुधि आई।’ गाने का सुख इतना बड़ा था कि भूल ही गई कि कहां हूं। गाने के बाद ससुर जी और गांव के बड़े-बुजुर्गों ने आशीष दिया। मगर, सास इतनी नाराज हुईं कि दो दिन तक खाना नहीं खाया, फिर जैसे-तैसे पति ने उन्हें मनाया और कहा, अगर हम गाते तो क्या हमें घर से निकाल देतीं। उसके बाद जब बाहर के लोगों ने उनसे यह कहना शुरू किया कि आपकी बहू काफी अच्छा गाना गाती है। तब जाकर उनका गुस्सा थोड़ा काम हुआ।’ शादी के बाद से ही पति का मिला सपोर्ट शारदा सिन्हा को पति बृजकिशोर सिन्हा का हमेशा से सपोर्ट मिलता रहा। पति ने शुरू से ही उनका साथ दिया। इस वजह से उनका गाना गाने का सफर हमेशा जारी रहा। उन्होंने पूर्वोत्तर के सबसे बड़े महापर्व छठ के गीतों से सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने मैथिली और भोजपुरी में भाषाओं में गीत गाए। शारदा सिन्हा गायन के अलावा नृत्य में भी पारंगत थी। उन्होंने मणिपुरी नृत्य की शिक्षा ली थी। लखनऊ में HMV की प्रतियोगिता से मिला गाने का मौका शारदा सिन्हा के संगीतमय जीवन में बड़ा बदलाव 1971 में आया। लखनऊ के एचएमवी ने प्रतिभा खोज प्रतियोगिता आयोजित की। वह अपने पति के साथ ऑडिशन देने लखनऊ गईं। यहां पर कई परेशानियां आईं। उन्होंने ऑडिशन दिया, लेकिन एचएमवी के रिकार्डिंग मैनेजर जहीर अहमद ने किसी को सिलेक्ट नहीं किया। उसके बाद उनके पति ने जहीर अहमद से दोबारा टेस्ट लेने का आग्रह किया। उन्होंने गाया, यौ दुलरुआ भैया… यह संयोग था कि इसी दौरान एचएमवी के एक बड़े अधिकारी वीके दुबे वहां पहुंचे। आवाज सुनते ही उन्होंने अपनी टीम से कहा कि उनके गाने को तुरंत रिकॉर्ड करिए। उसके बाद जब मेरा गाना रिकॉर्ड हुआ तो मैंने कभी भी अपनी जिंदगी में पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऐसे शुरू हुआ छठ के गीत को रिकॉर्ड करने का सफर शारदा सिन्हा ने 2 साल पहले भास्कर को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ‘बचपन से ही हमारे घर में खासकर के नानी पटना आकर छठ करती थीं। गंगा नदी में अर्घ्य देना बहुत ही शुभ और पावन माना जाता है। उसी समय से घर में गाए जाने वाले छठ मेरे कान में पड़ते थे और वो सुनने में इतने अच्छे लगते कि याद रह जाते थे। जब मेरी शादी हुई तो मेरी सास भी छठ करती थी। बड़ी बहू होने के कारण मुझे सासू मां छठ की हर रीत और उससे जुड़ी कहानियां बताती थीं। वो छठ इसलिए करती थीं, क्योंकि मेरे पति बचपन में बहुत बीमार रहते थे। उन्होंने छठी मैया से उनके ठीक होने की प्रार्थना की। मैंने अपने जीवन के इन्हीं कहानियों को संजोकर गांव-घर में गाए जाने वाले छठ गीत लिखे और उन्हें रिकॉर्ड किया। ‘डोमिनी बेटी सुप लेले ठार छे’, ‘अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मैया आइथिन आज’ ‘मोरा भैया गैला मुंगेर’ और श्यामा खेले गैला हैली ओ भैया’ छठ के चार ऐसे गीत थे, जो मैंने 1978 में रिकॉर्ड किया था।’ जिन छठ के गीतों के लिए मैं पहचानी जाती हूं वो नानी और सासू मां की है देन ‘केलवा के पात पर उगे ला सुरज देव’, ‘हो दीनानाथ’, ‘सोना साठ कुनिया हो दीनानथ’ कुछ ऐसे गाने हैं, जो मैंने अपने घर में नानी को और शादी के बाद छठ के दौरान अपनी सासु मां को गाते सुना था। इन गीतों के जरिए सूर्य देव से जल्दी उगने की प्रार्थना की जाती है। उन्हें बताया जाता है कि ये व्रत मैंने अपने पति, बेटे-बेटी, परिवार की अच्छे स्वास्थ्य और सुख-शांती के लिए किया है। यही से मुझे लगा कि इन गीतों को जरूर गाना चाहिए। वहीं ‘पहली पहल हम कईनी छठी मैया व्रत तोहार’ लिखने का कारण नई पीढ़ी थी। ये मैंने और हदय नारायण झा ने नई पीढ़ी यानी ऐसे जोड़ों को ध्यान में रखते हुए लिखा था जो बाहर रहते हैं, जॉब करते हैं या जिस घर की बहू अलग परिवेश से आती है। इसमें दर्शाने की कोशिश की गई है कि कैसे पंजाबी फैमिली की लड़की, जो कि एक बिहारी बहू है वो छठ करती है और अपने घर के परंपरा को बरकरार रखती है। पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित साल 1991 में संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला। इसके अलावा साल 2018 में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। शारदा सिन्हा ने विवाह गीत, छठ गीत जैसे कई क्षेत्रीय गीत गाए हैं। इसे भी पढ़िए… बिहार कोकिला के नाम से मशहूर शारदा सिन्हा का निधन:छठ गीतों से प्रसिद्ध हुईं, पर्व के पहले दिन दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस दिल्ली AIIMS में भर्ती लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को निधन हो गया। कल शाम से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। तबीयत बिगड़ने के बाद 26 अक्टूबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था। वो आईसीयू में थी। 3 नवंबर को हालत में थोड़ा सुधार होने पर वार्ड में शिफ्ट किया गया। लेकिन 4 नंवबर की शाम को उनका ऑक्सीजन लेवल काफी गिर गया था, जिसके बाद से वो वेंटिलेटर पर थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा से आज फोन पर बात की थी। उन्होंने शारदा सिन्हा के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। पूरी खबर पढ़ें।