बिहार में ब्यूरोक्रेट से नेता बने एक मंत्री जी की कभी काफी हनक थी। वह बड़का सिपहसालार थे। कहा जाता था सत्ता के गलियारे में पत्ता भी इनकी इजाजत लेकर हिलता था। बिना उनको टैक्स दिए ना टेंडर फाइनल होता था और ना ट्रांसफर-पोस्टिंग। तब इनके नाम के टैक्स की कथा जगजाहिर थी। नेता जी हर साल करीब 5 हजार करोड़ रुपए का कमीशन मैनेज करते थे। हालांकि, उनके द्वारा शुरू की गई यह प्रथा आज भी कायम है। बस आदमी बदल गया है। अब वह काम पटना वाले साहब के प्यारे अफसर कर रहे हैं। हमेशा सूट-बूट में नजर आने वाले अफसर साहब की हनक इतनी है कि पटना से लेकर जिलों तक के अफसर उनके नाम पर थरथर कांपते हैं। एक बार तो पटना वाले साहब ने उनके सामने काम कराने के लिए हाथ तक जोड़ लिया था। अब कहानी नेता जी की… पार्टी के भीतर हर तरह के पद का सुख भोग चुके थे। केंद्र में मंत्री बन गए। तभी उनके अंदर दिल्ली वाले साहब की आत्मा समा गई। इससे पटना वाले साहब नाराज हो गए। इशारे-इशारे में उनको समझाया गया, लेकिन वे खुद को पटना वाले साहब से बड़ा समझने लगे थे। फिर क्या था साहब ने आंख तरेरी और वह न घर के रहे और न घाट के। हमेशा पूजा-पाठ करने वाले नेता जी अपने गांव वाले घर में बैठकी करते हैं। कभी-कभी पटना आते हैं। जब वह पटना आते हैं तब कभी उनके एक इशारे पर नाचने वाले नेता जी सामने आने पर आंख चुराकर भाग जाते हैं। सियासी गलियारों में अब वे मसखरी के पात्र रह गए हैं। हर बैठकी में उन पर लोग मजे ले रहे हैं। कह रहे हैं वे कल भी अध्यक्ष थे, आज भी अध्यक्ष हैं और चुनाव बाद भी अध्यक्ष रहेंगे, कहां के रहेंगे ये तो बस वही जाने। नेता जी की यात्रा के कारण बिगड़ा पार्टी का पावर बैलेंस बिहार में एक और ब्यूरोक्रेट हाल में नेता बने हैं। साहब भारी गुमान में थे। सत्ताधारी पार्टी ने आते ही उनको बड़ा ओहदा दे दिया। वे जिलों से लेकर राज्य के नेताओं को हड़काने लगे। उन्हें इस बात का घमंड था कि उनके ऊपर पार्टी के मुखिया का हाथ था। सुबह-शाम नेता जी की मुखिया जी के बंगला में बैठकी लगती थी। पावर की हनक ऐसी कि अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर फाइल की नोटिंग तक उनकी आंखों से होकर गुजरती थी। उनके कई करीबी का ऐसा दावा था। इस दावे को हकीकत में बदलने के लिए नेता जी ने अपनी यात्रा शुरू करने का ऐलान किया। 6 महीने में 38 जिला घूमने के प्लान की घोषणा कर दी। समस्या जिलाध्यक्षों को हो गई। बेचारे परेशान, एक जिला में कितनों की खातिरदारी करेंगे। ई वाले नेता जी एकदम हनक में थे, जिले में अधिकारियों को बुलाकर कार्यकर्ताओं को हड़काने लगे। अब जिलाध्यक्ष से ज्यादा परेशानी प्रदेश और राष्ट्र के अलग-अलग विंग के अध्यक्षों को होने लगी। भीतरखाने चर्चा तेज होने लगी कि नेताजी का पद के साथ कहीं कद भी न बढ़ जाए। इसके बाद पार्टी का एक धड़ा एक्टिव हुआ। बात मुखिया जी तक पहुंचाई गई और एक सॉलिड प्लान तैयार कर नेताजी की यात्रा पर विराम लगा दिया गया। फिलहाल नेताजी नेहरू पथ के एक बंगले में मंथन करने में जुटे हैं। इस बीच चर्चा तेज हो गई है कि सत्ताधारी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। 11 एकड़ की कोठी में रहने वाले साहब फ्लैट में आए जिले में साहब का अपना रुतबा था। बंगला, गाड़ी, अर्दली सब था। सितारे आसमान में थे। तभी एक केस ने उनको गर्दिश में ला दिया। बड़े साहब के प्यारे बाबू ने उनको जिला से पटना बुला लिया है। 5 से 11 एकड़ में फैले आवास को छोड़कर अब वह छोटे फ्लैट में फिट हो गए हैं। बात-बात में पत्नी और बच्चे भी ताना मार देते हैं। बोलते हैं यहां ना खेलने के लिए पर्याप्त जगह है और ना घूमने को पार्क। गार्ड के रहने के लिए भी जगह नहीं है। पहले कहां एक बार आवाज देने पर सब सामान घर पहुंच जाता था। अब हर सामान के लिए अपने ही बाजार जाना पड़ता है। ना कोई सलामी ठोकता है और ना कुछ पूछता है। टू पल्स 12 वाली सुरक्षा गार्ड भी मिस किया जा रहा। अपनी पीड़ा बड़े साहब को सुनाते हुए साहब रुआंसा हो गए। बड़े साहब ने काफी समझाया कि यही समय का चक्र है। कुछ दिन में ठीक हो जाएगा। इस पर साहब फट पड़े। कहा- उनके पास तो कोठी है, लेकिन रहने वाला ही कोई नहीं है। मियां-बीबी के लिए पांच कट्ठा के फ्लैट का क्या काम। रौशनी वाला बंगला भूत बंगला सा लगता होगा। दर्द अपना-अपना है। कायदा कहां दर्द समझता है। कायदा बनाने वाले को तो इसे मानना ही पड़ेगा न। अफसर कुर्सी पर डटे रहे, नेता ताली बजाते रहे मौका था पटना में एक आलीशान भवन के उद्घाटन का। इस बहुमंजिला और अल्ट्रा मॉडर्न सरकारी बिल्डिंग का फीता काटने राज्य के सबसे बड़े नेता से लेकर अधिकारी तक सब पहुंचे। बिल्डिंग की खूब चर्चा हो रही है। शहर के बीचो-बीच बनी इस बिल्डिंग के पीछे-पीछे गंगा का किनारा है। साथ ही इसे एक तय समय में तैयार भी कर लिया गया है। उद्घाटन के बाद अब इसकी एक तस्वीर सामने आई है। इसके बाद बिल्डिंग से ज्यादा चर्चा इस तस्वीर की हो रही है। इसमें जिले के एक आला अधिकारी कुर्सी पर बैठे हैं और उनके सामने राज्य के सबसे बड़े नेता ताली बजा रहे हैं। इस वाकये से अफसर लॉबी से लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि साहबे बड़े वाले साहब के बहुत करीबी हैं। कुछ लोग तो इसे राज्य के अफसरशाही राज से जोड़कर भी देख रहे हैं। वैसे भी बड़े साहब को नेताओं से ज्यादा अफसर बड़े पसंद आते हैं। तभी तो जनसुराज वाले पीके से लेकर बाकी विपक्षी दल कहते हैं- राज्य को 4 रिटायर्ड अफसर चला रहे हैं।