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आदिवासी हॉस्टल्स में बच्चों की मौजूदगी से ज्यादा उपस्थिति दर्ज:आश्रम में अधीक्षक ने रहने वाले बताए 20, मिले सिर्फ 7; छात्र बोले- कभी-कभी आते

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जबलपुर जिले के ककरहटा और कटंगी के आदिवासी आश्रमों में सरकारी फंड हड़पने के लिए बच्चों की फर्जी उपस्थिति का खुलासा हुआ है। अधीक्षक बच्चों की संख्या बढ़ाकर सरकारी फंड में हेराफेरी कर रहे हैं। शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर ककरहटा गांव में आदिवासी बच्चों के लिए आश्रम पाठशाला खोली गई थी। इसका उद्देश्य बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ 24 घंटे उनकी देखरेख करना था। लेकिन, आदिम जाति विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर को फर्जीवाड़ें की बार-बार शिकायतें मिलने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। दैनिक भास्कर की टीम ने पाटन विधानसभा के ककरहटा और कटंगी स्थित आदिवासी आश्रमों का निरीक्षण किया, जहां चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। टीम सुबह 9 बजे आश्रम पाठशाला पहुंची तो एक भी बच्चा नजर नहीं आया। हॉस्टल का गेट बंद था, पूरा हॉस्टल खाली था। प्रांगण में एक महिला नजर आई, जो अपने आप को बच्चों के खाना बनाने वाली बता रही थी। महिला का नाम रितु था, जिसका कहना था कि बच्चे खेल रहे हैं। महिला ने दावा किया कि यहां पर 40 बच्चे हैं। वो कहती हैं “थोड़ी देर रुको हम सभी को बुला ला रहे हैं। हमारे पास सभी बच्चों के मोबाइल नंबर हैं।” महिला से जब पूछा गया कि यहां पर 24 घंटे कितने बच्चे रहते हैं तो उनका कहना था कि 20 बच्चे, जो कि अभी घर चले गए हैं, स्कूल लगने के समय सभी आ जाते हैं। उसने बताया कि आश्रम के अधीक्षक अशोक उपाध्याय हैं, जो कि कंटगी में रहते हैं, अभी नहीं आए हैं। वह 24 घंटे यहीं पर रहते हैं, उनका यहां पर कमरा भी है। इतना कहते हुए महिला वहां से चली गई। इधर कुछ देर बाद अधीक्षक कंटगी से ककरहटा स्थित छात्रावास पहुंचे। उनका कहना था कि पहली से 5वीं तक के इस आश्रम में अभी 20 बच्चे रह रहे हैं। हमने जब अधीक्षक को बताया कि यहां पर अभी सिर्फ सात से आठ बच्चे हैं तो उन्होंने दलील दी कि बच्चे पढ़ने चले गए हैं। हॉस्टल्स का जायजा लेने के बीच यह तथ्य सामने आए बच्चें बोले- छात्र सिर्फ कागजों में दर्ज 6वीं कक्षा के एक छात्र ने बताया कि आश्रम में 7-8 बच्चे ही रहते हैं। उसने यह भी कहा कि अन्य बच्चे केवल कागजों में दर्ज हैं। 12वीं कक्षा के छात्र आदित्य मेहरा ने बताया कि हॉस्टल में 30 छात्रों की क्षमता है, लेकिन वहां केवल 5-6 बच्चे ही रहते हैं। उसने कहा, “नाम तो सभी का दर्ज है, लेकिन वे यहां नहीं आते।” जांच के बाद होगी कड़ी कार्रवाई इस मामले पर आदिम जाति कल्याण विभाग के संभागीय अधिकारी नीलेश रघुवंशी ने कहा कि इस मामले की जांच की जाएगी। उन्होंने बताया कि हॉस्टल में रहने वाले हर बच्चे को लगभग 1500 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं, जिनमें से 10% राशि बच्चों के अकाउंट में जाती है और बाकी राशि अधीक्षक के अकाउंट में जाती है। अगर आरोप सही पाए गए तो हॉस्टल अधीक्षक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने बताया कि जबलपुर जिले में 72 छात्रावास अधीक्षक के पद स्वीकृत हैं जबकि 33 अधीक्षक वर्तमान में हैं। पढ़ाई न छूटे इसलिए होते आदिम जाति आश्रम पाठशाला मध्यप्रदेश आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है। जबलपुर जिले में भी कई ब्लॉक हैं जहां आदिवासी रहते हैं। इनमें गोंड जनजाति और कोल जनजाति के लोग निवास करते हैं। काम को लेकर आदिवासी पलायन करते हैं और साल के आधे से ज्यादा समय बाहर रहते हैं ऐसे में इनके बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने आदिम जाति आश्रम पाठशाला योजना शुरू की थी, ताकि इन बच्चों को शिक्षा मिल सके और गरीबी के चक्र से बाहर निकल सकें।

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