ये खुलासे विधानसभा में पेश की गई भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट से हुए हैं। सरकार ने बुधवार को बिजली कंपनियों, महिला एवं बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की 2018 से 2022 के वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी। CAG की रिपोर्ट में तीनों ही विभागों में वित्तीय अनियमितता और योजनाओं के क्रियान्वयन में गड़बड़ियां पाई गईं। बता दें कि CAG एक संवैधानिक संस्था है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के खर्च का लेखा-जोखा रखती है। सिलसिलेवार पढ़िए, किस विभाग की किस रिपोर्ट में कैग ने क्या खुलासे किए हैं… जानिए, सौभाग्य योजना को लेकर कैग की आपत्तियां सोलर एनर्जी: हर यूनिट पर 11 हजार का नुकसान
सौभाग्य योजना के तहत दूर-दराज के ऐसे गांव, जहां बिजली की पहुंच नहीं है, वहां केंद्र सरकार ने हर परिवार को सोलर एनर्जी से 200 वॉट बिजली देने का फैसला किया था। इसके लिए हर घर में एक यूनिट लगाई जानी थी। प्रति यूनिट 31,348 रुपए हजार खर्च आना था। मप्र सरकार को इस योजना के लिए 1871 करोड़ रुपए मिले थे। राज्य सरकार ने कहा था कि वह योजना पर 10 प्रतिशत राशि व्यय करेगी। कैग की रिपोर्ट कहती है कि पूर्व क्षेत्र कंपनी ने इसके लिए लोन लिया और उसे मार्च 2022 तक ब्याज के तौर पर 24 करोड़ रुपए देने पड़े। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में बिजली कंपनियों ने पहले 50 वॉट के पैनल 17,622 रुपए और फिर 150 वॉट के पैनल 24,774 रुपए में लगाए। इस तरह हर यूनिट पर 11 हजार रुपए एक्स्ट्रा खर्च किया। नए कनेक्शन के केबल में भी घपला
नया कनेक्शन देने के लिए केबल का खर्च 3 हजार रुपए फिक्स था लेकिन पूर्व क्षेत्र कंपनी ने दो तरह के केबल का इस्तेमाल किया। एक केबल के लिए 3514 रुपए और दूसरे के लिए 4461 रुपए के हिसाब से भुगतान कर दिया। ऐसे में प्रति कनेक्शन 946 रुपए का भुगतान किया गया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कंपनी को 11 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। ई-टेंडर के बिना दे दिया ठेका
कैग के मुताबिक, सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शन का ठेका ई-टेंडर के माध्यम से दिया जाना था लेकिन पूर्व व पश्चिम विद्युत वितरण कंपनियों ने 1 लाख 38 हजार घरेलू कनेक्शन के लिए टुकड़ों में 4 हजार से ज्यादा वर्क ऑर्डर निकाले। इनके जरिए 50 करोड़ 62 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। इसी तरह कनेक्शन के लिए 4 एमएम का तार इस्तेमाल करना था लेकिन कैग ने जांच में पाया कि तीनों कंपनियों ने 3 लाख 36 हजार से ज्यादा घरों में बिजली कनेक्शन के लिए 2.5 एमएम के तार का इस्तेमाल किया। कैग ने कहा- योजना की डीपीआर ही गलत बनी
कैग ने कहा है कि सौभाग्य योजना की कार्ययोजना ही गलत बनाई गई। बिजली कंपनियों ने पहले बताया कि 9 लाख घर ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है। जब डीपीआर बनी तो ऐसे घरों की संख्या 9 लाख 77 हजार 056 हो गई। जब इसे संशोधित किया गया तो यह संख्या घटकर 5 लाख 4 हजार 841 रह गई जबकि वास्तविक घरों की संख्या 5 लाख 9 हजार 53 है। गलत आंकड़े दिखाकर लिया 201 करोड़ का पुरस्कार
केंद्र सरकार ने 24 अक्टूबर 2018 को एक पुरस्कार शुरू किया था। जिसमें कहा गया था कि सौभाग्य योजना का कंपनी स्तर पर 30 नवंबर 2018 तक 100 फीसदी घरेलू कनेक्शन देने का टारगेट था। मप्र की दो कंपनी- पश्चिम व मध्य विद्युत वितरण कंपनी ने इस टारगेट को पूरा करने का प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को भेज दिया था। इसके आधार पर केंद्र ने दोनों कंपनियों को 100-100 करोड़ रुपए का पुरस्कार दिया जबकि कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह टारगेट 2019 में पूरा हुआ था। पुरस्कार की अवधि निकल जाने के बाद मध्य क्षेत्र कंपनी ने 4 हजार 725 घरों में कनेक्शन करने के 24 वर्क ऑर्डर दिसंबर 2018 में जारी किए गए थे। यह काम अक्टूबर 2019 में पूरा किया गया था। इसी तरह पश्चिम क्षेत्र कंपनी ने यह टारगेट जून 2019 में पूरा किया था। एमपी की स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर-पैरामेडिकल स्टाफ की कमी
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, मप्र सरकार ने स्वीकृत संख्या के मुताबिक विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं की। जिला अस्पतालों में 6 से 92 फीसदी, सिविल अस्पतालों में 19 से 86 फीसदी, सामुदायिक, प्राथमिक और उप स्वास्थ्य केंद्रों में 27 से 81 फीसदी डॉक्टरों की कमी देखी गई। मेडिकल कॉलेजों में 27 से 43 फीसदी डॉक्टरों की कमी पाई गई। इसी तरह अस्पतालों में नर्सों की कमी पाई गई। अस्पतालों में दवाएं ही नहीं, आईसीयू में मरीजों की मौत
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के 10 मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में भर्ती 34 हजार 643 मरीजों में से 16 हजार 848 (48.64 फीसदी) सांस और हार्ट पेशेंट्स थे। इनमें से 3025 (18 फीसदी) मरीजों की मौत हो गई। इसकी वजह ये रही कि इन मरीजों को इलाज के लिए जरूरी 16 अहम दवाओं में से 11 दवाएं नहीं मिलीं। इसी तरह कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं के इलाज के लिए 26 महत्वपूर्ण दवाएं नहीं थीं। कैग ने रिपोर्ट में कहा कि दवाओं की कमी चिंता का विषय है। साथ ही दवाओं के स्टॉक के मिस मैनेजमेंट की वजह से भोपाल, ग्वालियर और छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज में 1 करोड़ रुपए की 200 से ज्यादा दवाएं एक्सपायर हो गईं। जिला अस्पतालों में ट्रॉमा केयर सेंटर नहीं
केंद्र सरकार ने 2015 में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे ट्रॉमा केयर सेंटर बनाने की शुरुआत की थी। इसका मकसद सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों को 10 फीसदी तक कम करना था। कैग ने सभी जिला अस्पतालों से ट्रॉमा केयर सेंटर के आंकड़े इकट्ठा किए तो पता चला कि 18 जिला अस्पतालों में ट्रॉमा केयर सेंटर काम ही नहीं कर रहे थे। इसकी अलग-अलग वजहें सामने आईं। अशोकनगर में स्टाफ और उपकरण नहीं थे तो बुरहानपुर में भवन ही नहीं था। कई जिलों में भवन थे मगर उनका इस्तेमाल ट्रॉमा केयर सेंटर के रूप में नहीं किया गया था। 13 फीसदी बच्चों को ही लगा खसरे का टीका
कैग ने अपनी रिपोर्ट में बच्चों के टीकाकरण प्रोग्राम में भी मप्र की स्थिति चिंताजनक बताई है। बीसीजी को छोड़कर 100 फीसदी बच्चों को खसरा और डीपीटी का टीका नहीं लगा। साल 2017-22 के बीच 13 फीसदी बच्चों को खसरा और 0.12 फीसदी बच्चों को डीपीटी का टीका लगाया गया। पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए 100 फीसदी टीकाकरण का टारगेट पूरा नहीं हो सका। जब कैग ने सरकार से इस बारे में पूछा तो अप्रैल 2023 में जवाब दिया गया कि मृत्यु दर में सुधार और टीकाकरण कवरेज के लिए विशेष कैचअप अभियान चलाया जा रहा है। 4 करोड़ का 773.21 मीट्रिक टन फर्जी राशन बांटा
कैग ने महिला एवं बाल विकास विभाग की टेक होम राशन योजना पर भी सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, महिला एवं बाल विकास विभाग ने साल 2018-21 के दौरान सभी कैटेगरी के 1.35 करोड़ हितग्राहियों के 4.04 मीट्रिक टन टेक होम राशन की खरीदी पर 2393.21 करोड़ रुपए खर्च किए। कैग ने आठ जिलों में 572.35 करोड़ के राशन वितरण की जांच की। इसमें पाया गया कि 11 से 14 साल की 5.51 लाख शाला त्यागी किशोरियों को 122.99 करोड़ मूल्य का 20291 मीट्रिक टन राशन बांटा गया लेकिन फरवरी 2021 तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोई जमीनी सर्वे नहीं किया। प्रमाणित डेटा न होने के बाद भी हितग्राहियों को टेक होम राशन के वितरण के आदेश दे दिए। कैग ने ये भी पाया कि बाड़ी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी के प्लांट में स्टॉक न होने के बाद भी 277 चालानों के जरिए 178 प्रोजेक्ट्स को 773.21 मीट्रिक टन टेक होम राशन की आपूर्ति दिखा दी। नंबर बताया ट्रक का, जांच में निकला मोटरसाइकिल का
कैग की टीम ने प्लांट और डीपीओ के दफ्तरों से मिले 40 चालानों का सत्यापन किया। इनमें से पांच फर्म- एमपी एग्रो न्यूट्री फूड्स लिमिटेड, एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड, एमपीएसएआईडीसीएल, कोटा दाल मिल, राजस्थान और एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्री लिमिटेड ने ट्रकों के जरिए 2.96 करोड़ के 479.46 मीट्रिक टन राशन की आपूर्ति बताई थी। वाहन पोर्टल पर ट्रकों के नंबर की जांच करने पर पता चला कि ये ट्रक नंबर मोटरसाइकिल, कार, ऑटो, ट्रैक्टर और टैंकर के रूप में रजिस्टर्ड थे। इसमें कैग ने प्लांट, ट्रांसपोर्टर और परियोजना अधिकारियों के बीच मिलीभगत पाई। साथ ही 2.5 करोड़ रुपए कीमत के 404 मीट्रिक टन राशन का कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला। 10144.35 मीट्रिक टन राशन गायब
कैग ने आठ जिलों के डीपीओ के दस्तावेजों की जांच के दौरान पाया कि स्टॉक रजिस्टर के मुताबिक 96541.56 मीट्रिक टन राशन आंगनवाड़ी केंद्रों में भेजा गया। परिवहन देयकों के सत्यापन से पता चला कि 86397.21 मीट्रिक टन राशन ही आंगनवाड़ी तक पहुंचाया गया यानी 10144.35 मीट्रिक टन राशन गायब पाया गया। इससे सरकार को 62.53 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। कैग के पूछने पर सरकार ने दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की बात की थी।