पर्यटन विभाग की होटल शिप्रा रेसीडेंसी में फर्जी सत्कार का मामला सामने आया है। यहां अतिथि आए भी नहीं, फिर भी 52 लाख रुपए से अधिक के बिल सरकारी विभागों के नाम पर भेजे गए। पर्यटन विभाग की इंटरनल जांच में पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। जांच रिपोर्ट के अनुसार पर्यटन विभाग अपनी सभी होटलों में एसएपी बी-1 सॉफ्टवेयर से काम करता है, जिस पर प्रतिदिन डेढ़ से दो लाख की एंट्री होती है। तत्कालीन अकाउंटेंट गौरव यादव ने इसका पायरेटेड वर्जन तैयार कराया और कैश एंट्री में गड़बड़ी करके सरकारी विभागों के नाम पर उधारी दर्शाना शुरू कर दी। इसका कारण यह था कि सरकारी विभागों के बिलों का सेटलमेंट 6 माह या सालभर में होता है। ऐसे में गड़बड़ी करके भी गौरव बचता रहा। इसके बाद सरकारी विभागों से गेस्ट के हिसाब से उधारी की रकम मांगी गई तो सामने आया कि जितने रुपए मांगे जा रहे हैं, उतने तो गेस्ट ठहरे ही नहीं। लगभग 15 से 17 विभागों के गेस्ट की संख्या में अंतर आया। इसके बाद तीन साल के बिलों का मिलान किया तो 2019 में 14 लाख, 2020 में 14.55 लाख और 2021 में 23.33 लाख की गड़बड़ी सामने आई। उस समय के अन्य मैनेजर दिनेश शौरी और सुभाष अग्रवाल भी शक के दायरे में हैं। जांच टीम को नहीं दिए दस्तावेज : गड़बड़ी की आशंका 2017-18, 2018-19, 2019-20, 2020-21, 2021-22 और 2022-23 में जताई गई। जांच समिति ने 6 वर्षों के रिकॉर्ड मंगवाए, लेकिन 17 और 18 का डाटा भेजा ही नहीं। जिन वर्षों की जांच की गई उनमें 9 दिनों के लेन-देन की रिपोर्ट मिसिंग है। जांच टीम को 22-23 के रिकॉर्ड में भिन्नता नहीं मिली, क्योंकि अकाउंटेंट गौरव नौकरी छोड़ चुका था। जांच समिति ने 2017-18 से 2018-19 तक की गंभीरता से जांच कर दोषी पर एफआईआर दर्ज कराने की बात कही है। होटल की डीएसआर में ऐसे होती थी गड़बड़ी प्रतिदिन होटल की डीएसआर (डेली सेलिंग रिपोर्ट) रिपोर्ट चार कैटेगरी में बनती है। क्यूआर, क्रेडिट कार्ड और ऑनलाइन में कांट-छांट संभव नहीं है। ऐसे में गौरव यादव कैश एंट्री में गड़बड़ी कर रहा था। ऐसे हुई गड़बड़ी : कैश एंट्री को एडिट करके कम कर देता था गौरव जैसे कि एक दिन में होटल की एक लाख रुपए की इनकम हुई (क्यूआर कोड, क्रेडिट कार्ड, और कैश)। जो कंपनी के सॉप्टवेयर से डीएसआर (डेली सेलिंग रिपोर्ट) के रूप में हर रात 12 बजे जनरेट हो जाती। इसके बाद गौरव का खेल शुरू होता। वह रिसेप्शन काउंटर से कैश विभाग के अकाउंट में जमा कराने के लिए लाता। बाकी राशि की एंट्री को वैसे ही रहने देता और कैश की एंट्री में गड़बड़ी कर देता। मतलब, पायरेटेड सॉफ्टवेयर से कैश की एंट्री को एडिट कर कम कर देता। लेकिन समस्या यह थी कि टोटल अमाउंट में डिफरेंस बना रहता, जिसे बैलेंस करने के लिए सरकारी विभागों के नाम उधारी बता देता। विभागीय तौर पर रिव्यू और सरकारी विभागों की तरफ से आई क्यूरी पर सभी आंकड़े खंगालना शुरू किए तो यह गबन सामने आया। सरकारी विभागों में पहुंचे उधारी के बिल तब सामने आया फर्जीवाड़ा सीधी बात- गौरव यादव, तत्कालीन अकाउंटेंट आपके रहते 52 लाख की गड़बड़ी हुई है, रिपोर्ट में आपको दोषी माना है। – अभी तो जांच चल रही है। इस बारे में क्या कहूं। रिपोर्ट आ गई है, जांच टीम ने एफआईआर के लिए पत्र भेजा है। – नहीं, मेरी ऊपर बात हुई है। अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है। रिपोर्ट में सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ की बात कही गई है। – मैं आपसे आकर मिलता हूं। मैं कुछ नहीं कह सकता अगर ऐसा हुआ होगा तो जांच चल रही होगी। यह सही है, जिम्मेदारी मैनेजर की भी होती है। लेकिन मैं कुछ नहीं कह सकता हूं।
दिनेश शौरी, तत्कालीन मैनेजर मुझे नहीं मालूम, मेरे कार्यकाल के दौरान ऐसा हुआ। आप बता रहे हैं तो मैं पता करता हूं। इतनी बड़ी गड़बड़… अभी क्या बोलूं।
सुभाष अग्रवाल, तत्कालीन मैनेजर थाने में आवेदन दिया है
तत्कालीन अकाउंटेंट की गड़बड़ी की जांच भोपाल स्तर पर हुई। वहां से एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए, जिसके आधार पर अकाउंटेंट के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आवदेन थाने में दिया है।
-बिम्बिसार सिंगोदिया, जीएम, शिप्रा रेसीडेंसी।