तानसेन संगीत समारोह के शताब्दी महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को सुबह की संगीत सभा में विश्व विख्यात तबला वादक पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को नादव्रह्म के साधकों और संगीतप्रेमियों द्वारा श्रृद्धासुमन अर्पित किए गए और संगीत सभा उन्हीं को समर्पित की गई। सुबह और शाम की सभा का शुभारंभ सारदा नाद मंदिर, ग्वालियर के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के सुमधुर ध्रुपद गायन से हुई। इसके बाद मंच संभाला ग्वालियर के युवा गायक हेमांग कोल्हटकर ने। हेमांग ने अपने गायन के लिए राग ललित का चयन किया। इस राग में उन्होंने तीन बंदिशें पेश की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे ‘रैन का सपना’ जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे ‘’जोगिया मोरे घर आए’’ इसी राग में द्रुत एक ताल की बंदिश थी, हे गोविंद, हे गोपाल। तीनों ही बंदिशों को हेमांग ने बड़े ही संयम से पेश किया। राग गूजरी तोड़ी से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बाला साहेब पूछवाले की बंदिश ‘गावो गावो गावो रिझावो’ की प्रस्तुति दी। फिर द्रुत एक ताल में तराना और भजन ‘’रघुवर तुमको मेरी लाज’’ गाते हुए गायन का समापन किया। इस प्रस्तुति में तबले पर मनीष करवड़े व हारमोनियम पर अनूप मोघे ने साथ दिया। इसके बाद सुबह की सभा में दिल्ली के भास्कर नाथ ने अपने साथियों के साथ शहनाई वादन की सुमधुर प्रस्तुति दी। शाम की सभा भी ध्रुपद गायन से हुई तानसेन समारोह के दूसरे दिन की शाम की सभा का शुभारंभ राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कलाकारों के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। उनकी प्रस्तुति राग यमन पर आधारित थी। जिसमें उन्होंने चौताल एवं सुलताल की बंदिशे प्रस्तुत की। इस प्रस्तुति में 12 कलाकार सम्मिलित थे। पखावज पर जयंत गायकवाड़, सारंगी पर अब्दुल हामिद ने संगत दी। प्रस्तुति का निर्देशन डॉ. पारुल दीक्षित ने किया, ध्रुपद रचना पद्मश्री ऋत्विक सान्याल की थी। इजरायल की सितार, गायन, तबला की प्रस्तुति रही खास दूसरी प्रस्तुति इजराइल के तावोर बेन दोर एवं तामार क्लोपर की सितार-गायन-तबला की प्रस्तुति हुई। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत राग बागेश्री से की। आलाप, जोड़ झाला से राग को विस्तार देते हुए उन्होंने विलंबित बंदिश और द्रुत बंदिश तीन ताल में प्रस्तुत की। इसके बाद राग यमन कल्याण में इजराइली कवि लीन गोल्डबर्ग की कविता से परिसर को सुगंधित कर दिया। पद्मश्री ऋत्विक, वाराणसी की ध्रुपद गायन की प्रस्तुति ने मोहा मन जैसे-जैसे समय बीत रहा था, संगीतप्रेमियों की संगीत लालसा और भी बढ़ती जा रही थी। जो सुर साज का अनूठा ताना बाना देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच पर बुना जा रहा था। अब मंच पर नमूदार हुए पद्मश्री ऋत्विक सान्याल, वाराणसी। ध्रुपद गायन की एक ऐसी शख्सियत जो न इस मंच से नावाखिफ थी और न ही सुनने वालों की पसंद से। उन्होंने स्वर सम्राट तानसेन को समर्पित राग भूपाली में तानसेन की ध्रुपद रचना ‘बानी चारो के व्यवहार’ प्रस्तुत की। इसके बाद राग दरबारी को विस्तार से प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने आलाप, तानसेन की चार ताल की रचना खरज रिखब गंधार…. प्रस्तुत की। सुलताल में शिव स्तुति शंकर जटाजूट…. और अंत में राग चंद्रकौंस में धमार चलो सखी ब्रज में धूम मची है…. से आनन्द के रंग बिखेरते हुए प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ वाराणसी के ही आदित्य दीप ने पखावज पर संगत की। बैठे हरि राधे संग, कुंज भवन अपने संग, पर झूमे श्रोता प्रात:कालीन सभा का समापन प्रयागराज से पधारे पं. प्रेम कुमार मलिक के ध्रुपद गायन से हुआ। उन्होंने राग शुद्ध सारंग में आलाप, जोड़ झाला की बेहतरीन प्रस्तुति से राग के स्वरूप को विस्तार देते हुए चौताल में निबद्ध बंदिश ‘’बैठे हरि राधे संग, कुंज भवन अपने संग’’ को बड़े ही सलीके से पेश किया। इसके बाद राग भीमपलासी से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने धमार की रचना ’’मारत पिचकारी श्याम बिहारी’’ को बड़े रंजक अंदाज में पेश कर होली की रंगत को साकार करने का प्रयास किया। इसी राग में सूलताल की बंदिश ‘’शंभू हरि रे, गंगाधर रे’’ से उन्होंने अपने गायन का समापन किया। उनके साथ पखावज पर मनमोहन नायक व सारंगी पर अब्दुल मजीद खा ने संगत की।