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राज कपूर के करीबी दोस्त अशौक कौल बोले:राज आम लोगों के साथ डोसा खाते थे; सेट पर लाइटमैन की बातें भी मानते थे

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राज कपूर और अशोक कौल की दोस्ती एक संयोग से शुरू हुई, जो उनके बीच की गहरी और लंबे समय से चली आ रही रिश्ते की नींव बन गई। बता दें, अशोक कौल, जो भारतीय सेना में सेवा दे चुके थे, बाद में फिल्म निर्माता राज कपूर के करीबी दोस्त बने। दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान, अशोक कौल ने उनकी मुलाकात और दोस्ती की दिलचस्प कहानियों के बारे में बताया। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश: आपकी दोस्ती की शुरुआत कैसे हुई और उस समय किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? हमने ‘राम तेरी गंगा मैली’ से शुरुआत की थी। गंगोत्री जैसे दूरदराज जगह पर शूटिंग करना बहुत मुश्किल था। एक दिन राज साहब ने मुझसे कहा, ‘अशोक, हमें गंगोत्री जाना है।’ मैंने कहा, ‘साहब, वहां जाना मुश्किल होगा। रास्ता सही नहीं है, कोई पुल नहीं है, और हमें बहुत ऊपर चढ़ना पड़ेगा।’ फिल्म पर गहराई से शोध किया था क्योंकि यह गंगा के बारे में थी। उनकी तबियत ठीक नहीं थी, सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी, फिर भी वह गए। यह उनकी फिल्मों के प्रति लगाव की मिसाल थी। आपने बताया कि आर के स्टूडियो उनके दिल के काफी करीब था। वहां का माहौल और भावना किस तरह से फैमिली ओरिएंटेड थी? राज साहब कभी भी आर के स्टूडियो को सिर्फ अपना नहीं मानते थे; वह इसे अपने परिवार की तरह मानते थे। वहां सभी टेक्नीशियन एक ही परिवार के सदस्य होते थे। लंच टाइम में सभी एक साथ बैठते थे, कोई अलगाव नहीं होता था। स्टूडियो में शूटिंग के वक्त वही खाना सबके लिए होता था और राज साहब भी इसमें शामिल होते थे। सेट पर लक्ष्मण ठोमरे के साथ क्या हुआ था? लक्ष्मण ठोमरे नाम के एक लाइटमैन थे, जो सेट पर हेड लाइटमैन थे। जब हम सेट लगा रहे थे और गंगा के गीत ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग हो रही थी, लक्ष्मण ठोमरे वहां मौजूद किसी वर्कर को चुपचाप कह रहे थे कि इस शॉट में तो क्रेन होनी चाहिए। राज साहब दूर खड़े थे। उन्होंने लक्ष्मण को बुलाया और पूछा कि क्या बात है लक्ष्मण? लक्ष्मण ने कहा, ‘कुछ नहीं साहब, क्रेन लगाओ।’ यह राज कपूर की इंसानियत थी, जहां अहंकार नाम की कोई चीज नहीं थी। सेट पर राज साहब कैसे काम करते थे। हर यूनिट के सदस्य के साथ उनका कनेक्शन कैसा था? सेट पर उस वक्त भी राज साहब सबको नाम से पहचानते थे। हर यूनिट के सदस्य का नाम जानते थे, यहां तक कि स्पॉट बॉयज़ का भी। यह एक अलग तरह का कनेक्शन था। राज साहब बेहद इमोशनल व्यक्ति थे। जब आप स्टूडियो में होते थे, तो क्या वहां किसी खास जगह पर जाते थे, जैसे कि रेस्टोरेंट? हां, जब मैं स्टूडियो में होता था, तो हम अक्सर एक शेट्टी के रेस्टोरेंट जाते थे, जहां सिमी ग्रेवाल ने बाद में इंटरव्यू लिया था। वहां हम आम लोगों की तरह कॉफी और डोसा खाते थे। राज कपूर ने खुद को कभी बड़ा नहीं माना, उनका अंदाज हमेशा बेहद साधारण था। वह हमेशा एक आम आदमी की तरह ही व्यवहार करते थे, चाहे सेट पर हो या रेस्टोरेंट में। पार्टियों में भी उनका कोई दिखावा नहीं होता था कि वह बड़े हैं। उनके साथ बैठना और खाना उनके लिए किसी और के साथ घुल-मिल जाने जैसा था। आपकी मुलाकात कैसे हुई? आप फौज में थे और राज कपूर फिल्म इंडस्ट्री में… मेरा मिलना राज कपूर जी से एक संयोग था। उस समय मैं फौज में था और मेरी पोस्टिंग रामपुर (उरी सेक्टर) में हेडक्वार्टर्स में थी। सभी ऑफिसर्स अग्रिम मोर्चे पर चले गए थे और मैं अकेला ऑफिसर हेडक्वार्टर्स में था। दरवाजे पर खटखट की आवाज आई और जवान ने बताया कि राज कपूर जी मिलना चाहते हैं। मुझे समझ में नहीं आया कि कौन राज कपूर जी। जब दरवाजा खटखटाया और राज कपूर जी अंदर आए तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वहां जा सकता हूं जहां झेलम नदी पाकिस्तान में जाती है। मैंने हां कह दिया। सेंसिटिव इलाका था, लेकिन मुझे इजाजत लेनी पड़ी और एक ऑफिसर उनके साथ भेजने को कहा। जब हम कमांड पोस्ट पहुंचे तो वहां पाकिस्तान पोस्ट थी। पाकिस्तानी जवान हाथ हिलाकर कह रहे थे कि हम आपकी फिल्में देखना चाहते हैं। राज कपूर जी बोले, ठीक है, एक दिन जो टूटा हुआ ब्रिज है वहां से आऊंगा। आज वह पूरा ब्रिज अमन सेतु बन चुका है। राज कपूर जी की भविष्यवाणी सच हो गई थी। उस वक्त मैंने एक फिक्शन कहानी लिखी है जिसमें देश के लिए देशभक्ति और बलिदान का जज्बा है। मैंने कहानी का सारांश दिया। उन्होंने कहा कि मैं इसमें फिल्म बनाऊंगा। मैंने कहा कि सर, अभी इसे मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस में भेजना है, मैं इसे पब्लिश नहीं कर सकता। लेकिन उनका मेरे साथ टच बना रहा।”

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