सुप्रीम कोर्ट (SC) में आज हिमाचल के मुख्य संसदीय सचिव (CPS) मामले में सुनवाई होगी। कांग्रेस सरकार ने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी है। वहीं बीजेपी ने भी इसी मामले में कैविएट फाइल कर रखी है, ताकि कांग्रेस सरकार की SLP (विशेष अनुमति याचिका) सुनने से पहले बीजेपी भी अपना पक्ष अदालत में रख सके। बीजेपी के चौपाल से MLA बलवीर वर्मा की ओर से कैविएट फाइल की गई है। यह मामला मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की कोर्ट में लगेगा। प्रदेश सरकार की ओर से इस केस की पैरवी सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल करेंगे। राज्य सरकार ने दलील दी है कि हिमाचल हाईकोर्ट ने बिमलोंशू राय बनाम असम के केस को आधार बनाते हुए फैसला सुनाया है, जबकि हिमाचल और असम का CPS एक्ट अलग था। हिमाचल के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने बताया कि राज्य सरकार ने ये दलीलें हाईकोर्ट में भी दी। मगर जजमेंट के वक्त उन दलीलों का ज्यादा ध्यान में नहीं रखा गया। इसी ग्राउंड पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने 13 नवंबर को हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) एक्ट,2006 को निरस्त किया था। सुक्खू ने इन्हें लगा रखा था CPS
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांग्रेस के 6 विधायकों अर्की से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर, बैजनाथ से किशोरी लाल, रोहड़ू से एमएल ब्राक्टा, दून से राम कुमार चौधरी और पालमपुर से आशीष कुमार को CPS बनाया था। इन्होंने दी हाईकोर्ट में चुनौती
कल्पना नाम की एक महिला के अलावा BJP के 11 विधायकों और पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था ने CPS की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए हिमाचल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।संविधान के अनुच्छेद 164(1)ए के तहत किसी भी राज्य की विधानसभा में मंत्रियों की संख्या 15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। हिमाचल में 68 विधायक हैं, इसलिए यहां अधिकतम 12 मंत्री ही बन सकते हैं। बावजूद इसके प्रदेश सरकार में सीएम, डिप्टी सीएम सहित कुल 11 मंत्री हैं, जो 6 सीपीएस को मिलाकर 17 बनते हैं। इसी को तीन याचिकाओं में चुनौती दी गई थी। 13 नवंबर को कल्पना और बीजेपी के 11 विधायकों की याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, जबकि पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था की याचिका पर बीते बुधवार (20 नवंबर) को अदालत ने आदेश दिए। विधायकों की सदस्यता पर संकट
6 पूर्व CPS की विधायकी पर अभी संकट बना हुआ है। बीजेपी इनकी सदस्यता को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बताते हुए चुनौती देने की तैयारी में है और विधि विशेषज्ञ से राय ले रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि अब CPS एक्ट में मिल रही प्रोटेक्शन भी समाप्त हो गई है। क्योंकि कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्य अयोग्यता अधिनियम 1971 की धारा 3 (डी) को भी असंवैधानिक करार दिया है। इसके तहत CPS पद को संरक्षण दिया गया था। साल 2005 में रद्द हो चुका CPS एक्ट
हिमाचल में CPS एक्ट दूसरी बार निरस्त हुआ है। इससे पहले साल 2005 में भी कोर्ट ने CPS एक्ट को निरस्त किया। इसके बाद राज्य सरकार ने नया CPS एक्ट 2006 बनाया। 2005 में भी कांग्रेस सरकार ने 12 CPS लगाए थे। साल 2009 में राज्य में पूर्व धूमल सरकार ने 3 CPS लगाए। तब ऊना से विधायक सत्तपाल सत्ती, पांवटा से सुखराम चौधरी और कुटलैहड़ से विधायक वीरेंद्र कंवर को CPS बनाया गया। 2012 में राज्य में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 2013 में 9 CPS लगाए। वीरभद्र सिंह ने नीरज भारती, राजेश धर्माणी, विनय कुमार, जगजीवन पाल, नंद लाल, रोहित ठाकुर, सोहन लाल ठाकुर, इंद्रदत्त लखनपाल और मनसा राम को CPS बनाया। पूर्व BJP सरकार ने CPS नहीं चीफ व्हिप व डिप्टी चीफ व्हिप लगाए
इस दौरान देश के कई राज्यों में CPS की नियुक्ति के मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे। 2017 में राज्य में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। तब जयराम के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार ने CPS तो नहीं लगाए। मगर चीफ व्हिप और डिप्टी चीफ व्हिप लगाए। चीफ व्हिप और डिप्टी चीफ व्हिप की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका भी अभी हिमाचल हाईकोर्ट में विचाराधीन है। दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार बनी। CM सुक्खू ने पहले कैबिनेट विस्तार व मंत्रियों की शपथ से पहले 6 CPS को शपथ दिलाई।