गाजियाबाद से शुरू हुई वकीलों की लड़ाई वेस्ट यूपी समेत तमाम जिलों में लगातार जारी है। बरेली में भी वकीलों ने 28 नवंबर तक हड़ताल का ऐलान किया है। वकीलों का कहना है कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएगी, हड़ताल जारी रहेगी। वकीलों का कहना है कि 28 नवंबर के बाद भी अगर मांग नहीं मानी जाती है तो हम लोग आंदोलन की रणनीति नए सिरे से तय करेंगे। वकील करेंगे आमरण अनशन
आम सभा के दौरान ये निर्णय लिया गया है कि 28 नवंबर तक हड़ताल जारी रहेगी। और अगर फिर भी हम लोगों की मांगे नहीं मानी जाती है तो फिर आगे की रणनीति तय की जाएगी। वकील अपने हक की मांग के लिए आमरण अनशन करेंगे और अगर फिर भी सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है आंदोलन उग्र हो सकता है। वकीलों का कहना है कि गाजियाबाद के जिला जज को सस्पेंड किया जाए। जब तक ये कार्रवाई नहीं होगी, हड़ताल ऐसे ही चलती रहेगी। वही वकीलों की हड़ताल से कोर्ट के कामकाज लगातार प्रभावित हो रहे हैं। गाजियाबाद में 29 अक्टूबर को हुए वकीलों पर लाठीचार्ज के बाद से लगातार हड़ताल जारी है। वकीलों की हड़ताल से कई प्रकार के नुकसान हो सकते हैं, जो समाज, न्यायिक प्रक्रिया और प्रभावित व्यक्तियों पर व्यापक प्रभाव डालते हैं। इनमें मुख्य नुकसान इस प्रकार हैं: 1. न्याय प्रक्रिया में विलंब
– अदालतों में पहले से ही लंबित मामलों की संख्या अधिक होती है, और हड़ताल के कारण ये और बढ़ जाती है। लोगों को न्याय मिलने में देरी होती है, जिससे उनका समय और धन बर्बाद होता है। 2. आम जनता पर प्रभाव
– जिन लोगों की सुनवाई निर्धारित तिथियों पर होनी थी, उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं। आपराधिक मामलों में आरोपी और पीड़ित दोनों को मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक नुकसान होता है। 3. आर्थिक नुकसान
– अदालतों से जुड़े पेशेवर (जैसे टाइपिस्ट, नोटरी, फाइलिंग क्लर्क आदि) का काम प्रभावित होता है। वकीलों की आय भी प्रभावित होती है, खासकर युवा और नए वकीलों की। 4. प्रशासनिक व्यवधान
– अदालतों के कामकाज में बाधा आती है, जिससे सरकार और न्यायपालिका के संसाधनों का दुरुपयोग होता है। न्यायपालिका की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े होते हैं। 5. सामाजिक और कानूनी असंतोष
– समाज में न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम हो सकती है। लोगों में यह भावना उत्पन्न हो सकती है कि न्यायपालिका और वकील उनके हितों का ध्यान नहीं रख रहे। 6. विवाद और अविश्वास बढ़ना
– वकीलों और न्यायपालिका के बीच रिश्ते खराब हो सकते हैं। हड़ताल के कारण आपसी संवाद और सहमति प्रक्रिया कमजोर हो जाती है। ऐसे में जरूरी है कि न्यायपालिका और बार काउंसिल मिलकर समस्याओं का हल निकालें। हड़ताल जैसे कठोर कदम उठाने से पहले वैकल्पिक तरीकों पर विचार किया जाए।