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‘पिता की मदद न कर पाने का मलाल आज भी’:नाना पाटेकर बोले- कमाने से पहले पिता गुजरे, दवा का पैसा भी नहीं दे सका

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20 दिसंबर को बाप-बेटे के रिश्ते पर आधारित फिल्म रिलीज हो रही है- वनवास। इसका डायरेक्शन अनिल शर्मा ने किया है। अनिल ने ही पिछले साल गदर-2 जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म बनाई थी। फिल्म वनवास में नाना पाटेकर और अनिल के बेटे एक्टर उत्कर्ष शर्मा लीड रोल में हैं। फिल्म की रिलीज से पहले नाना पाटेकर ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है। बातचीत के दौरान नाना पाटेकर थोड़े भावुक नजर आए। उन्होंने पिता से अपने रिश्ते पर बात की। नाना ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में इतने पैसे कमाए, लेकिन पिता की मदद नहीं कर पाए। ऐसा इसलिए क्योंकि सफल होने के पहले ही उनके पिता गुजर गए थे। नाना पाटेकर के साथ पूरी बातचीत पढ़िए.. सवाल- नाना, आपके लिए फिल्म वनवास क्या है, थोड़ा समझाइए?
जवाब- बहुत दिनों बाद एक ऐसा कैरेक्टर मिला, ऐसी फिल्म मिली, जिसमें समाज की विसंगतियों पर बात हुई। आज सबसे बड़ी विडंबना है कि बच्चों के पास अपने मां-बाप के पास बैठने का टाइम नहीं है। आज किसी से पूछो कि पिता को स्पर्श किए कितने दिन हुए तो वह नहीं बता पाएगा। माता-पिता को अपने बच्चों से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। बस इतना होना चाहिए कि बच्चे समय-समय पर उन्हें पूछते रहें। एक बात याद रखना, मां-बाप पारस पत्थर की तरह होते हैं, वे छू लें तो हम सोना भी बन सकते हैं। सवाल- जैसे कि फिल्म बाप-बेटे के रिलेशनशिप पर बेस्ड है। नाना, पिता के साथ आपके रिश्ते कैसे रहे?
जवाब- मुझे हमेशा यह लगा कि पिता मेरे दो भाइयों को मुझसे ज्यादा प्यार करते थे। हालांकि, यह बस मेरा भ्रम था। उनके गुजरने के कुछ साल पहले हम काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। मुझे इस बात का गहरा दुख है कि अपनी कमाई से पिता के लिए कुछ नहीं कर पाया। उनका निधन भी एक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के अस्पताल में हुआ था। उस वक्त उनकी दवाई के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरे दोस्तों ने उस वक्त मेरी काफी मदद की। उन्होंने ही मुझे दवा के पैसे दिए थे। सवाल- नाना, जैसे आपकी पिछली फिल्मों पर लोगों ने प्यार बरसाया है, क्या वनवास को भी उतना ही प्यार मिलेगा?
जवाब- बिल्कुल, मिलेगा। लोगों को पता है कि मैं किस टाइप की फिल्में करता हूं। लोगों को मेरे काम पर भरोसा है। इसका एक उदाहरण देता हूं। मैं ‘नाम फाउंडेशन’ नाम से एक NGO चलाता हूं। एक बार फाउंडेशन के काम के सिलसिले में एक गांव गया था। वहां एक बुजुर्ग महिला मुझसे मिली। उसने मुझे 50 रुपए दिए। उसने कहा कि मुझे पता है कि तुम कभी खराब काम नहीं करोगे, इसलिए मेरी तरफ से भी छोटी मदद ले लो। उस महिला को पता था कि उसके दिए पैसे सही जगह ही खर्च होंगे। वो 50 रुपए मेरे लिए 50 करोड़ के बराबर थे। आप यकीन नहीं करेंगे, दो महीने में नाम फाउंडेशन को 60 करोड़ डोनेशन मिले थे। यह लोगों का मेरे प्रति विश्वास नहीं तो और क्या है? सवाल- शूटिंग के दौरान कुछ मजेदार किस्से हों तो बताइए?
जवाब- हम लोगों ने बनारस और शिमला में शूट किया। क्रू मेंबर्स मेरे से बहुत डांट सुनते थे। हालांकि, मैं उन्हें खाने भी बनाकर खिलाता था। तकरीबन 200 क्रू मेंबर्स सेट पर रहते थे, सबके लिए मैं ही खाना बनाता था। मुझे लगता है कि खाना खिलाना भी एक पुण्य का काम है। हमारी माताएं सदियों से ऐसा करती आई हैं, हालांकि हम उनके प्रति बिल्कुल आभारी नहीं होते। हम सोचते हैं कि खाना बनाना तो उनका काम है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें जरूर उनके काम और मेहनत के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। सवाल- नाना जी, आप हिंदी सिनेमा में पहले और अब में क्या बदलाव देखते हैं?
जवाब- कमर्शियल सिनेमा बहुत बदल गया है। पहले की फिल्मों में भी वायलेंस था, लेकिन अब कुछ ज्यादा ही हो गया है। मैं ऐसी फिल्मों का नाम नहीं लूंगा। हालांकि, मुझे यह देखकर चिंता बहुत होती है कि आज कल की फिल्मों के जरिए हम क्या दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। आज की जेनरेशन ऐसी फिल्मों को खूब एन्जॉय करती है, इसी वजह से इनका कलेक्शन भी खूब होता है। आज समाज पहले से कहीं ज्यादा बदल चुका है। ऊपर से ऐसी फिल्में आएंगी तो माहौल कहीं न कहीं और ज्यादा खराब होगा। मुझे लगता है कि सिनेमा सिर्फ एंटरटेनमेंट का माध्यम नहीं होना चाहिए। सिनेमा के जरिए लोगों को सही संदेश देना बहुत अहम है। सवाल- अंत में, जो आपकी फिल्म वनवास देखने जाएंगे, उनके लिए क्या कहेंगे?
जवाब- ऑडियंस छोड़िए, मैं आपको भी कहता हूं कि अगर आपने यह फिल्म देख ली, तो दो-तीन बार और देखेंगे। फिल्म देखने के बाद आप मुझे मैसेज करेंगे। यहां तक कि लोग फिल्म के डायरेक्टर अनिल शर्मा से सवाल कर-करके परेशान कर देंगे कि उन्होंने ऐसी फिल्म कैसे बना ली। साथ ही इस फिल्म के बाद इंडस्ट्री को उत्कर्ष शर्मा के रूप में नया स्टार मिलेगा।

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