समस्तीपुर डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में गुरुवार को 17वीं द्विवार्षिक कार्यशाला ऑन एग्रोमेटोरोलॉजी का उद्घाटन आईसीएआर प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन उपमहानिदेशक और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पीएस पांडेय ने संयुक्त रूप से किया। मौके पर कुलपति डॉ. पांडेय ने मौसम और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों की निगरानी और इसके कृषि पर प्रभाव के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों से फसल उत्पादन पर मौसम व जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जांच कर प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतियों का विकास करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वर्चुअल रियलिटी के प्रयोग से एग्रोमेट को और मजबूत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का मौसम विभाग किसानों के लिए प्रतिदिन मौसम डाटा रिलीज करता है और हर सप्ताह किसानों के लिए सलाह जारी करता है जो काफी उपयोगी है। कम समय में अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की है मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एस.के. चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), आईसीएआर, नई दिल्ली ने कहा कि विश्वविद्यालय ने कुलपति डॉ पांडेय के नेतृत्व में कम समय में अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की है। विश्वविद्यालय ने 11 पेटेंट प्राप्त किए हैं और डिजिटल एग्रीकल्चर के क्षेत्र में देश को नई राह दिखाई है। उन्होंने कहा कि तीन दिनों के विचार-विमर्श के जो नतीजे निकलेंगे वो सरकार को पॉलिसी बनाने में मदद करेगी। जलवायु परिवर्तन दुनिया की बड़ी चुनौती है डॉ. बी.के. सिंह, निदेशक, सीआरआईडीए, हैदराबाद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन दुनिया की बड़ी चुनौती है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि पर देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि देश भर के कृषि वैज्ञानिक इस तीन दिवसीय कार्यशाला में विभिन्न विषयों पर चर्चा करेंगे। इस विमर्श से निश्चित ही मौसम विज्ञान को लेकर नए आयाम निकलेंगे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के निदेशक डॉ. ए के सिंह ने कहा कि बिहार में सूखा और बाढ़ एक बड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त मौसम में अचानक परिवर्तन से भी किसान प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन को लेकर काफी अच्छा कार्य हो रहा है। इसे और अधिक बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. मयंक राय ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर देश भर में जागरूकता बढ़ी है। इससे भारत को किस तरह निपटना है इस पर अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है। इस कार्यशाला में देश भर के 29 राज्यों और 38 केंद्रों से 200 से अधिक वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। तीन दिवसीय कार्यशाला में एग्रोमेटोरोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाएगी, जिसमें फसल मौसम संबंध, मौसम आधारित फसल बीमा और जलवायु लचीली कृषि शामिल हैं।