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मोहन सरकार के एक साल में 438 IAS-IPS के तबादले:22 कलेक्टर और 39 एसपी बदले; पीडब्ल्यूडी-खनिज विभाग में हर चार महीने में नया चेहरा

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छोटा आदमी गलती करे तो उस पर कार्रवाई हो और बड़े आदमी को छोड़ दें, … माफ कीजिए मेरी सरकार में ऐसा नहीं चलेगा। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से जब दैनिक भास्कर ने पूछा कि एक साल में 200 से ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स के ट्रांसफर की जरूरत क्यों पड़ी? तब उन्होंने अपने जवाब में ये बात कही। पढ़िए पूरा इंटरव्यू दैनिक भास्कर ने मुख्यमंत्री के इस जवाब की पड़ताल की। पता चला कि चुनाव आचार संहिता के दो-ढाई महीनों को छोड़ दिया जाए तो पिछले 10 महीने में सरकार ने 79 फीसदी आईएएस और 73 फीसदी आईपीएस समेत कुल 438 अफसरों के तबादले किए हैं। इन तबादलों में 22 जिलों के कलेक्टर और 39 जिलों के एसपी बदले गए हैं। खास बात ये है इनमें 109 अफसरों के तबादलों की 6 लिस्ट आधी रात को जारी की गई। इसके अलावा कई विभाग ऐसे हैं जहां 2 से 3 बार अफसरों की नियुक्ति की गई है। एक्सपर्ट का मानना है कि अफसरों का बार-बार तबादला करना अच्छी प्रक्रिया नहीं है। इससे न तो अधिकारियों की जवाबदेही तय हो पाती है और न ही उनका परफॉर्मेंस बेहतर होता है। इस रिपोर्ट में पढ़िए 10 महीने में कितने अफसरों के तबादले हुए। 8 दिसंबर को 15 आईएएस के तबादले
सरकार के एक साल पूरे होने से चार दिन पहले 8 दिसंबर को मोहन सरकार ने 15 आईएएस के ट्रांसफर किए। सरकार ने वरिष्ठ अफसर एसीएस केसी गुप्ता को पीडब्ल्यूडी से हटाकर राज्यपाल का अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाया। पीडब्ल्यूडी का अतिरिक्त प्रभार एसीएस ऊर्जा नीरज मंडलोई को दिया गया। राजभवन के पीएस मुकेश चंद्र गुप्ता को मानव अधिकार आयोग के सचिव के रूप में पोस्टिंग दी गई। एसीएस अनुपम राजन को अतिरिक्त प्रभार के रूप में संसदीय कार्य विभाग दिया गया। वहीं रिटायर्ड आईएएस गोपाल चंद्र डांड को 1 साल के लिए सीएम सचिवालय में संविदा नियुक्ति दी गई। PWD: 1 साल में 3 प्रमुख सचिव बदले
पिछले एक साल में पीडब्ल्यूडी को 3 अलग-अलग मुखिया मिल चुके हैं। सरकार बनने के बाद सुखबीर सिंह को (7 नंवबर 2023) पीडब्ल्यूडी का प्रमुख सचिव बनाया गया था, लेकिन वे 82 दिन ही रह पाए। उन्हें 28 जनवरी 2023 को हटाकर डीपी आहूजा की पोस्टिंग की गई। आहूजा भी छह महीने ही पदस्थ रह पाए। अगस्त में केसी गुप्ता को उच्च शिक्षा विभाग से हटाकर पीडब्ल्यूडी की कमान सौंपी गई, लेकिन चार महीने में ही उन्हें राजभवन भेज दिया गया। जबकि एक आईएएस अफसर नियाज खान को इस विभाग में बतौर उप सचिव 5 साल चार महीने हो गए हैं। खान को अगस्त 2019 में पीडब्ल्यूडी में पदस्थ किया गया था। तब वे राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। दिसंबर 2022 में वे आईएएस प्रमोट हो गए। इसके बाद भी उन्हें अब तक इसी विभाग में रखा गया है। शायद वे एक मात्र आईएएस अफसर हैं, जो एक ही विभाग में इतने लंबे समय से पदस्थ हैं। खनिज विभाग: 1 साल में 4 प्रमुख सचिव बदले
पीडब्ल्यूडी की तरह खनिज भी सरकार की प्राथमिकता वाला विभाग माना जाता है। यहां भी एक साल में तीन प्रमुख सचिव बदल गए। शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले (10 मई 2023) इस विभाग की कमान राघवेंद्र सिंह को सौंपी थी, लेकिन नई सरकार आने के दो दिन बाद उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ किया गया। उनकी जगह निकुंज श्रीवास्तव को यहां पदस्थ किया गया, लेकिन वे चार महीने ही यहां रह पाए और उनके स्थान पर संजय शुक्ला की पोस्टिंग की गई। शुक्ला को चार महीने में ही हटाकर नवंबर में उमाकांत उमराव की यहां पोस्टिंग की गई है। राजभवन: पहली बार ACS रैंक के अफसर की पोस्टिंग
राजभवन में भी एक साल में तीन प्रमुख सचिवों को बदला गया है। यहां पहली बार अपर मुख्य सचिव रैंक के अधिकारी की पोस्टिंग की गई है। शिवराज सरकार ने जुलाई 2020 में डीपी आहूजा को राजभवन में पदस्थ किया था। वे यहां करीब साढ़े तीन साल रहे। मोहन सरकार के सत्ता में आने के दो महीने बाद जनवरी में आहूजा की जगह संजय शुक्ला को बतौर प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया, जबकि आहूजा को पीडब्ल्यूडी की कमान सौंपी गई। संजय शुक्ला राजभवन में दो महीने भी पदस्थ नहीं रह पाए। उनकी जगह मुकेश चंद्र गुप्ता को राजभवन भेजा गया। लेकिन एक सप्ताह पहले ही पीडब्ल्यूडी के अपर मुख्य सचिव केसी गुप्ता की राजभवन में पोस्टिंग की गई। ऊर्जा, एमएसएमई में भी एक साल में तीन नियुक्तियां
इसी तरह ऊर्जा विभाग में भी नई सरकार बनने के बाद तीन बार प्रमुख सचिव बदले जा चुके हैं। नई सरकार के गठन से पहले संजय दुबे इसके प्रमुख सचिव थे। 28 जनवरी को उनकी जगह मनु श्रीवास्तव को पीएस का जिम्मा सौंपा गया। सरकार के एक साल पूरे होने के 4 दिन पहले मनु श्रीवास्तव को हटा कर नीरज मंडलोई को ऊर्जा विभाग का प्रमुख सचिव बनाया गया है। इसी तरह एमएसएमई विभाग में पी नरहरि तीन साल तक प्रमुख सचिव रहे। उनका 14 मार्च 2024 को ट्रांसफर किया गया। उनकी जगह नवनीत कोठारी को जिम्मेदारी दी गई, मगर कोठारी केवल 8 महीने विभाग में रहे उसके बाद 13 नवंबर को राघवेंद्र सिंह को ये जिम्मेदारी सौंपी गई। एक्सपर्ट बोले- लगातार ट्रांसफर से काम पर असर पड़ता है
वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह कहते हैं कि एक ही विभाग में अफसरों के ट्रांसफर से उस विभाग के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। मप्र सरकार के अफसर ये शुरू से शिकायत करते रहे हैं कि अफसरों को जमने का, उन्हें काम देखने का मौका नहीं मिलता, उससे पहले उनके ट्रांसफर हो जाते हैं। सरकार अफसरों को स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग पर भेजती है। इस पर जनता के पैसों की बरबादी होती है, क्योंकि जब अफसर ट्रेनिंग से लौटते हैं तो वो उस विभाग में ट्रेनिंग में सीखे हुए काम को इम्प्लीमेन्ट ही नहीं कर पाते। हर काम में स्थिरता जरूरी होती है। इससे काम पर भी प्रभाव पड़ता है। एन के सिंह कहते हैं कि एक साल में बहुत ज्यादा ट्रांसफर की दो वजह रहीं। सरकार भले ही बीजेपी की थी, मगर मुख्यमंत्री बदल गए। उन्हें जो प्रशासनिक आधार चाहिए था उसे तलाशने में उन्हें समय लगा। वे प्रशासनिक अमले के बीच अपनी एक नई लकीर खींचना चाहते थे। उसके बाद नए मुख्य सचिव आए। जो भी मुख्य सचिव होता है वह अपनी टीम बनाना चाहता है। नए सीएस के आने के बाद जो ट्रांसफर हुए वो प्रशासनिक जमावट के तौर पर किए गए। इससे पहले जो ट्रांसफर हुए वो पॉलिटिकली मोटिवेट थे। जो पूर्व सीएम थे उनके नजदीकी अफसरों को महत्वपूर्ण पदों से हटाया गया। 22 में से 11 कलेक्टर्स का ट्रांसफर लोकसभा चुनाव से पहले
सरकार ने इस एक साल में न केवल पीएस लेवल के अधिकारियों के तबादले किए बल्कि मैदानी अमले को भी बदला। एक साल में 22 जिलों के कलेक्टर बदले गए। इनमें से सबसे ज्यादा 11 कलेक्टर्स के ट्रांसफर लोकसभा चुनाव से पहले किए गए। इनमें सीधी, उमरिया, रतलाम, झाबुआ, विदिशा, दमोह, ग्वालियर, गुना, पन्ना, शहडोल, सिंगरौली जिले के कलेक्टर शामिल हैं। हालांकि 33 जिलों के कलेक्टर नहीं बदले गए हैं। 6 जनवरी 2025 तक मतदाता सूची का काम पूरा होगा। माना जा रहा है कि इसके बाद इन जिलों के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। वैसे भी मुख्यमंत्री पिछले महीने हुई कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस में कह चुके हैं कि जनवरी तक सभी का परफॉर्मेंस देखा जाएगा। जानकार भी मानते हैं कि नए मुख्य सचिव भी अपने हिसाब से मैदानी जमावट कर सकते हैं। फरवरी-मार्च महीने में 15 जिलों के एसपी बदले गए
कलेक्टर्स के साथ जिलों के एसपी भी बदले गए। फरवरी और मार्च में 15 जिलों के एसपी के ट्रांसफर हुए। इनमें जनवरी में हरदा, बैतूल, दतिया, उज्जैन, नीमच, झाबुआ, व दतिया और फरवरी में ग्वालियर, छतरपुर, दमोह, अशोकनगर, खंडवा, , शिवपुरी, खरगोन और राजगढ़ के एसपी बदले गए। इनमें से 4 जिले सिंगरौली, निवाड़ी, श्योपुर और डिंडौरी में 6-6 महीने में एसपी के दो बार ट्रांसफर किए गए। जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री इन जिलों के एसपी की कार्यप्रणाली से नाखुश थे। पुलिस अफसरों के लिए 2007 में बना स्थापना बोर्ड
पुलिस अफसरों के ट्रांसफर करने के लिए पुलिस स्थापना बोर्ड बना है। यह बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बनाया गया था। इस संबंध में राज्य सरकार ने 14 फरवरी 2007 को आदेश जारी किया था। इस बोर्ड की अनुशंसा पर सरकार पुलिस अफसरों के ट्रांसफर करती है। बोर्ड में डीजीपी के अलावा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एसएएफ, गुप्त वार्ता, सीआईडी और प्रशासन सदस्य हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर के लिए सरकार को बोर्ड की अनुशंसा को प्राथमिकता देना होगी। लेकिन सरकार को इसमें बदलाव करने का अधिकार है। आईपीएस: गृह विभाग आदेश जारी करता है, मंजूरी बाद में IAS अफसरों के लिए सिविल सर्विस बोर्ड 2017 में बना
आईएएस अफसरों के ट्रांसफर करने के लिए सिविल सर्विस बोर्ड बना है। यह बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के आदेश (अक्टूबर 2017) पर बना है। इसमें मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव (कार्मिक) और एक सीनियर अपर मुख्य सचिव सदस्य होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार किसी भी आईएएस अफसर को 2 साल से पहले नहीं हटा सकती है। यदि किसी आईएएस का 2 साल से पहले तबादला किया जाना जरूरी है तो उसके लिए कारण बताना होगा। आईएएस: पहले ट्रांसफर, फिर बोर्ड की मंजूरी पूर्व CS बोले- अधिकारियों को न्यूनतम समय देना जरूरी
​​​​​​​मप्र के पूर्व मुख्य सचिव शरदचंद्र बेहार कहते हैं कि ट्रांसफर का एक लॉजिक होता है। पहला लॉजिक तो ये होता है कि जो अधिकारी जिस पद पर होता है वह बरसों तक वहां काम करते-करते थक जाता है, या फिर सरकार को लगता है कि उसने अपना बेस्ट दिया है तो अब उसका फायदा दूसरी जगह लेना चाहिए। दूसरी वजह होती है कि एक जगह रहने पर अधिकारियों के निजी स्वार्थ होने लगते हैं, इसलिए भी ट्रांसफर किया जाता है। अब यहां ये समझने की जरूरत है कि किसी भी अफसर को कितना समय एक जगह रहना चाहिए। पोस्टिंग के बाद उन्हें इतना समय मिलना चाहिए कि वे काम को समझ सकें। कम से कम 3 से 5 साल का समय आदर्श माना जाता है। जहां तक सरकार के पक्ष की बात करें तो बार-बार तबादलों से सरकार उस अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं कर पाती है।

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