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मनुष्य आत्माएं इस सृष्टि पर अधिकतम 84 जन्म लेती हैं, सतयुग में 150 वर्ष होती थी आयु : सोनिका बहन

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भास्कर न्यूज | उजियारपुर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, समस्तीपुर द्वारा रेल परिसर स्थित राम जानकी हनुमान मंदिर में आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के चौथे दिन मनुष्य आत्माओं के पुनर्जन्म और भारत के उत्थान और पतन के 84 जन्मों की कहानी के बारे में बताते हुए ब्रह्माकुमारी सोनिका बहन ने कहा कि सारे विश्व में भारत ही एकमात्र अविनाशी खंड है। भारत शब्द का अर्थ ही है जो निरंतर ज्ञान प्रकाश से प्रकाशित हो। सतयुग में भारत जब सोने की चिड़िया था, वहां सूर्यवंशी देवी-देवताओं का राज्य था। सभी की आयु 150 वर्ष होती थी और कभी अकाल मृत्यु नहीं होती थी। वहां देवताओं के रूप में हमने 8 जन्म लिये। सतयुग में सभी आत्माएं सातों गुण, यथा- ज्ञान, शांति, प्रेम, पवित्रता, सुख, आनंद और शक्ति से संपन्न थीं। सभी सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकार और मर्यादा पुरुषोत्तम थे। यह समय भारत का स्वर्णिम सवेरा था। इसके बाद त्रेतायुग आता है, जहां देवताओं की 2 कला कम हो जाती है और क्षत्रिय के रूप में हम 12 जन्म लेते हैं। श्री राम श्री सीता का राज्य चलता है। ऐसे समय पर भी भारत सभी प्रकार से संपन्नता की पराकाष्ठा पर होता है। सतयुग और त्रेतायुग मिलाकर भारत स्वर्ग कहलाता है। सभी युग 1250 वर्ष के होते हैं। इन दोनों युगों के बाद द्वापरयुग के साथ ही देव आत्माओं में विकारों की प्रवेशता के कारण वे विकारी मनुष्य बन जाते हैं। यहां से पापाचार-भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है, जिस कारण मनुष्य दुःखी होकर भगवान को पुकारना शुरू कर देते हैं। यहां हम वैश्य के रूप में 21 जन्म लेते हैं। देवता जो पूज्य थे, पुजारी बन जाते हैं। कलियुग में पापाचार-भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच जाता है और हम कर्म से शुद्र बन जाते हैं। कलियुग में मनुष्य आत्माएं 42 जन्म लेती हैं। कलियुग अंत में इस धरती को पुनः स्वर्ग बनाने के लिए परमात्मा का इस धरा पर अवतरण होता है, जो समय वर्तमान में चल रहा है, इसे संगमयुग कहते हैं। यह समय भारत के पुनरुत्थान का चल रहा है। इस समय जो परमात्मा को पहचान कर उनके बन जाते हैं, उनका जैसे नया जन्म होता है। यह अंतिम एक जन्म सबसे महत्वपूर्ण जन्म है। इसी में हमारा भगवान से मिलन होता है। इस प्रकार कुल 84 जन्म होते हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास स्वयं को पुनरावृति करता है और समय चक्रीय गति से चलता है। अभी वही समय है जब इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है और भारत फिर से स्वर्ग शीघ्र बनने ही वाला है। हम परमात्मा की मत पर चलकर अपनी सीट उस नई दुनिया के लिए बुक कर सकते हैं।

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