यूपी के पूर्वांचल में एक दौर में आए दिन नया बदमाश पैदा होता। खुद का भौकाल जमाता। हत्या-लूट, छिनैती और रंगदारी जैसी घटनाओं को अंजाम देता। इन नए बदमाशों को मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी जैसे बाहुबली माफिया पनाह देते रहे। कोई एनकाउंटर में ढेर होता, तो उसकी जगह नए बदमाश को दी जाती। पूर्वांचल अपराध का अड्डा बन चुका था। डॉक्टर-व्यापारी सुरक्षित नहीं थे। खुलेआम पुलिस को चुनौती दी जाती थी। इन बदमाशों की इसी चुनौती को एक IPS अधिकारी ने कबूल किया। इनके पैटर्न को समझा। अपराधियों को खत्म करने का दृढ़ संकल्प लिया। इस IPS अधिकारी का नाम है- संतोष कुमार सिंह। IPS संतोष कुमार सिंह अपने 33 साल के पुलिस करियर में 10 साल से ज्यादा वाराणसी में तैनात रहे। 9 जिलों में तैनाती के दौरान 60 से ज्यादा एनकाउंटर किए। इनमें 17 बदमाश मार गिराए। मध्य प्रदेश में डिप्टी कलेक्टर की नौकरी छोड़ संतोष कुमार सिंह ने खाकी वर्दी क्यों चुनी? उनके काम करने का तरीका कैसा रहा? अपने करियर में कैसे उन्होंने DIG तक का सफर तय किया? दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज खाकी वर्दी में आज 6 चैप्टर में IPS संतोष कुमार की कहानी… यूपी के जौनपुर जिले में फत्तुपुर गांव पड़ता है। यहां प्रोफेसर शीतला प्रसाद सिंह के घर 15 जुलाई, 1963 को बेटे ने जन्म लिया। पत्नी तारा सिंह ने नाम रखा- संतोष। गांव की माटी में संतोष का बचपन बीता। यहीं सरकारी स्कूल में संतोष 8वीं तक पढ़े भी। संतोष कुमार सिंह अतीत के पन्ने पलटते हुए बताते हैं- बचपन के दिन याद करता हूं तो लगता है कि फिर से छोटा बच्चा बन जाऊं। मेरे पिताजी एक डिग्री कॉलेज में लेक्चर देने जाते थे। उस जमाने में यह बहुत बड़ी बात थी। जब मैंने प्राइमरी स्कूल से पढ़ाई पूरी की, तब पिताजी ने 1978 में मेरा एडमिशन टीडी कॉलेज, जौनपुर में करवा दिया। पिताजी हमेशा कहते थे- पढ़ाई से बड़ा धन कुछ नहीं। वो चाहते थे कि मैं हमेशा अव्वल रहूं। वह हमेशा प्रेरणा देते। परिणाम भी अच्छा रहता। 1979 में मैंने फर्स्ट डिवीजन से हाईस्कूल पास किया। उन दिनों यूपी बोर्ड सबसे सख्त बोर्ड माना जाता था। अखबार में रिजल्ट निकलता था। पिताजी अखबार लिए तेजी से घर में दाखिल हुए। बोले- संतोष ने सिर ऊंचा कर दिया है। मां ने पूछा क्या हुआ, तब बताया- संतोष प्रथम श्रेणी से पास हुआ है। संतोष बताते हैं- उस समय पूरे कॉलेज में चार या पांच छात्र ही प्रथम श्रेणी से हाईस्कूल पास कर पाते थे। जो फर्स्ट आ जाता था, उसे बहुत होनहार माना जाता था। खैर, इन बातों से हटकर मैंने सिर्फ इस पर फोकस किया कि आगे भी यह कायम रखना है। दो साल बाद 1981 में इंटर का रिजल्ट आया। गांव में सभी को बेसब्री से इंतजार था, चर्चा थी कि इस बार भी संतोष फर्स्ट आएगा। शाम को रिजल्ट का अखबार आते ही सभी की चर्चा सही हो गई। मैं फर्स्ट डिवीजन पास हो चुका था। संतोष कुमार सिंह कहते हैं- तब पिताजी ने मुझसे पूछा कि आगे क्या करना चाहते हो? मैंने जवाब दिया- पढ़ाई। मेरा जवाब सुनकर पिताजी ने मुझे गले लगाया और फिर गोरखपुर यूनिवर्सिटी में मेरा एडमिशन करा दिया। यहां से मैंने ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद 1985 में मैं इलाहाबाद चला गया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से दर्शन शास्त्र में मास्टर डिग्री पूरी की। इलाहाबाद से ही सिविल सर्विस में जाने की ललक उठी। फिर क्या था मैंने UPSC की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि, बनारस यूनिवर्सिटी से नेट पास करने के बाद PhD की तैयारी भी कर रहा था। इन सबके बीच मेरा सिलेक्शन मध्य प्रदेश में डिप्टी कलेक्टर की पोस्ट पर हो गया। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- मुझे बचपन से पुलिस अफसर बनना था। मन में कहीं न कहीं ये बात चलती रहती थी। इसकी तैयारी में भी जुट गया था। इस दौरान मेरा UPSC में सिलेक्शन भी हुआ, लेकिन नौकरी कस्टम विभाग में मिल रही थी। मैंने इसे ठुकरा दिया। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- परिवार के लोग खुश थे, मुझसे कह रहे थे कि जॉइन कर सकते हो। लेकिन, मेरा मन कुछ और ही गवाही दे रहा था। मैंने UPPCS की परीक्षा दी थी। इसके रिजल्ट का इंतजार कर रहा था। जैसे ही यूपी पीसीएस का रिजल्ट आया, मेरा बचपन का सपना पूरा हो गया। PPS की पोस्ट पर मेरा चयन हो गया। इसके बाद मैंने मध्य प्रदेश में डिप्टी कलेक्टर की नौकरी से रिजाइन कर दिया। वापस यूपी लौट आया। मध्य प्रदेश में एक साल तक डिप्टी कलेक्टर रहा। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- ट्रेनिंग के दौरान हमें हथियार चलाना सिखाया गया। क्राइम को कैसे सॉल्व करना है, इसके पैटर्न बताए गए। हमने कानून की किताब पढ़ी। इसके बाद हमें पोस्टिंग मिली। मेरी पहली पोस्टिंग यूपी के एटा जिले में बतौर सीओ पोस्ट पर हुई। यह 1992-93 की बात है। जब वर्दी पहनी, एक अलग ही सुकून मिला। मैंने पहले दिन अपने ऑफिस की चौखट को नमन किया। इस दौरान मन में बस यही चल रहा था कि जो जिम्मेदारी मिली है, उसे पूरी ईमानदारी से निभाना है। शुरुआती दिनों में एटा में सबसे बड़ी समस्या अवैध शराब तस्करी की थी। हमें हर रोज सूचना मिलती- जिले में बड़े पैमाने पर कच्ची शराब बनाई जा रही है। लेकिन, यह नहीं पता चलता कि शराब माफिया कौन है? संतोष कुमार सिंह कहते हैं- हमने कई बार छापेमारी की, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद जो ट्रेनिंग के दौरान सिखाया गया, उस पैटर्न को फॉलो किया। हमने मुखबिरों का नेटवर्क तैयार किया। फिर इनके इनपुट पर कड़ी जोड़ते हुए पुलिस टीम ने शराब माफिया के रूट को कैप्चर किया। चौंकाने वाली बात यह थी कि शराब माफिया जंगलों में बंकर बनाकर अपना काला धंधा चला रहे थे। जब भी छापेमारी होती, पुलिस टीम बंकर पर घास-फूस देख इन्हें पकड़ नहीं पाती। लेकिन, हमारे नेटवर्क ने सटीक काम किया। जिले में 3 साल सीओ रहते हुए 50 से ज्यादा शराब माफियाओं को जेल भेजा। कई बार शराब माफियाओं ने पुलिस पर हमला भी किया, लेकिन सबसे बड़े माफियाओं की पुलिस ने रीढ़ तोड़ दी। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- साल 2010…मैं STF में था। पोस्टिंग मिली-वाराणसी। 2001 में गाजीपुर जेल ब्रेक कांड हुआ था। जेल से अजय सिंह और आशुतोष राय नाम के दो कुख्यात फरार हो गए। इनकी तलाश में यूपी पुलिस और एसटीएफ लगी थी। लंबे समय तक इन दोनों ही बदमाशों का सुराग नहीं लगा। कभी यह बिहार में छिपकर लूट, अपहरण और हत्या करते, तो कभी वाराणसी और दूसरे क्षेत्रों में पनाह लेते। मुझे इन दोनों को पकड़ने का टास्क मिला। आलम ये था कि उन दिनों कोई भी क्राइम होता, इन्हीं दोनों का नाम पहले सामने आता। ऐसा लगने लगा था कि ये दोनों बदमाश मुझे चैलेंज दे रहे हैं। मैं कई बार अपनी टीम के साथ बिहार तक गया। कई जगह छापेमारी की। लेकिन हमारे मुखबिर की सटीक सूचना के बाद भी ये दोनों फरार हो जाते। संतोष कुमार सिंह कहते हैं- अक्सर अपराधियों को लगता है कि वे पकड़े नहीं जाएंगे। लेकिन, वह इतिहास के पन्ने नहीं पलटता। अजय सिंह और आशुतोष राय भी ऐसे ही क्रिमिनल थे, जो खुद को बहुत चालाक समझते थे। एक दिन हमें बिल्कुल सटीक इन्फॉर्मेशन मिली- दोनों वाराणसी में हैं…एक बड़े अपराध को अंजाम देने जा रहे हैं, साहब जल्दी से पकड़ लीजिएगा। बस फिर क्या था। हमने टीम तैयार की। पूरी प्लानिंग के साथ निकले। मन में बस यही था कि आज इन्हें हर हाल में पकड़ना है। शाम का समय था, अंधेरा हो गया था। हमारी प्लानिंग में सबसे मजबूत पॉइंट यही था कि दोनों तक हमारी एंट्री की खबर नहीं पहुंचनी है। सब कुछ बहुत गोपनीय रखा गया। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- दोनों लगातार मूव कर रहे थे। इनकी लोकेशन बार-बार बदल रही थी। हमारा मुखबिर बहुत हिम्मती था, वह इन पर लगातार नजर बनाए रहा। जब हम इनके पास तक पहुंचे, तो पता चला कि दोनों ट्रेन में सवार हो गए हैं। हम भी अपनी गाड़ी छोड़ ट्रेन पर सवार हो गए। हमने भी ठान लिया कि ट्रेन से ही इनका पीछा करेंगे। हम लोग अलग-अलग टीम में बंट गए। अंदाजा था कि यह लोग वाराणसी के आसपास ही किसी शहर में उतरेंगे। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। इन दोनों का पीछा करते-करते पूरी रात गुजर गई। तब तक हमने ट्रैवलिंग पैटर्न समझा, हमें अंदाजा हो गया कि दोनों दिल्ली जा रहे हैं। सुबह के 10 बजे होंगे। नोएडा में दोनों बदमाश जैसे ही ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर आए। हमने इन्हें घेर लिया। अजय सिंह और आशुतोष राय समझ गए कि वह फंस गए। दोनों के पास हथियार थे। वो लोग पिस्टल लहराते हुए दौड़ने लगे। हमने उनका पीछा किया। वे दोनों कुछ दूर जाकर फायरिंग करने लगे। जवाबी कार्रवाई में हमने भी गोलियां चलाईं। ये लोग रुके नहीं… हमें इन्हें पकड़ना था। आधे घंटे की मुठभेड़ के बाद दिनदहाड़े नोएडा में दोनों ढेर हो गए। इस घटना में हमारी टीम के 2 दरोगा को सरकार ने आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर इंस्पेक्टर बनाया था। संतोष बताते हैं- जरायम की दुनिया में एक समय मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी का काफी बोलबाला था। इनकी अनगिनत गैंग थी। गैंग में कितने शूटर हैं? इसका पता तक लगा पाना मुश्किल था। मतलब सीन ऐसा था कि कोई भी किसी को भी गोली मार सकता था। वाराणसी माफियाओं और गुंडाराज का गढ़ न बने, इसलिए पुलिस की निगाहें खास तौर पर वाराणसी पर बनी रहतीं। मुख्तार और मुन्ना, हर महीने यह अपने शूटरों से अकेले वाराणसी से ही 20 से 25 लाख रुपए वसूली कराते थे। किसी डॉक्टर का अपहरण कर लिया, किसी से रंगदारी मांगी, तो किसी से फिरौती वसूली। सबसे ज्यादा व्यापारी इनके निशाने पर रहते। कोई ऐसा महीना नहीं जाता था कि एक बदमाश न मारा जाता। मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी ने मानो खुला ऐलान कर रखा था कि शॉर्टकट से पैसा कमाना है, तो गैंग में शामिल हो जाओ। ये लोग अपने गुर्गों की सभी ख्वाहिश पूरी करते। महंगे कपड़ों से लेकर जूते। दारू पार्टी तक का आयोजन किया जाता। हमारे पास सभी इनपुट आते रहते। लेकिन, इनकी सटीक लोकेशन नहीं मिलती। वाराणसी में ही एक लाख के इनामी कुख्यात कृपा चौधरी को घेरने में हमें बहुत समय लगा। वह अपहरण, लूट करता और रंगदारी का पैसा वसूलता था। वह कई बार पुलिस पर फायरिंग कर चुका था। आखिर में इस कुख्यात को भी ढेर किया। वाराणसी में ही सारनाथ थाना क्षेत्र में न्यूरो के वरिष्ठ डॉक्टर कीर्तिकेय शर्मा का फिरौती के लिए बदमाशों ने अपहरण किया। यहां डॉक्टर की जान बचाते हुए गैंग का सफाया कर दिया। संतोष कहते हैं- 2021 की बात है। मैं SSP बुलंदशहर था। अगौता थाना क्षेत्र के सेगा में बीएसएफ के हेड कॉन्स्टेबल रामपाल सिंह होली पर अपने घर आए थे। जहां उन्होंने अपने पड़ोस के लोगों के साथ पार्टी की। उसके बाद वह लापता हो गए। लेकिन बेटों और परिवार के अन्य लोगों ने पुलिस को सूचना नहीं दी। कुछ दिन बाद हेड कॉन्स्टेबल के भाई ने पुलिस को सूचना दी कि मेरे भाई लापता हैं, उनका कोई अता-पता नहीं चला। मामला बीएसएफ से जुड़ा था, थाना प्रभारी अगौत को लगाया गया। पूरे मामले में पुलिस जांच में जुट गई। बेटों से पूछताछ की गई, लेकिन वह भी खुद को निर्दोष बताने लगे। क्राइम ब्रांच की टीम को निर्देश मिला कि बीएसएफ के हेड कांस्टेबल का केस सॉल्व होना है। सितंबर 2021 में 6 महीने हो गए। एक दिन मुखबिर द्वारा बताया गया कि घर में भूसे के कमरे में हेड कॉन्स्टेबल का शव दफनाया गया है। पूरे घर की खुदाई कराई गई, लेकिन शव बरामद नहीं हुआ। फिर पड़ोस का एक युवक जो संदिग्ध था, उसे हिरासत में लिया गया। उसने बताया कि होली की रात शराब पी गई, जिसके बाद हेड कॉन्स्टेबल की हत्या कर दी गई। इसमें उनका एक बेटा भी शामिल रहा। बेटे और पड़ोसी की निशानदेही पर पुलिस ने खुद के कुएं से ही हेड कॉन्स्टेबल रामपाल का शव बरामद किया। संपत्ति व बहू पर गलत नजर के चलते बेटे ने दोस्तों के साथ पिता की हत्या कर दी। शव के टुकड़े कर कुएं में दफना दिए। पुलिस ने इस केस में दोनों बेटों को जेल भेजा। संतोष कुमार सिंह बताते हैं- अप्रैल, 2020 की बात है, बुलंदशहर के अनूपशहर क्षेत्र के पगोना गांव में 2 साधुओं की हत्या कर दी गई। मंदिर परिसर में ही धारदार हथियार से हत्या की गई। सुबह जैसे ही सूचना पुलिस को मिली, मैं क्राइम स्पॉट पर पहुंच गया। मामला 2 साधुओं की हत्या से जुड़ा था, इसलिए आसपास के क्षेत्र में भारी संख्या में फोर्स तैनात कर दी गई। ये हत्याएं ऐसे समय में की गईं, जब महाराष्ट्र के पालघर में साधु की हत्या से देशभर में लोग आक्रोशित थे। लॉ एंड ऑर्डर का मामला था, ऐसे में पुलिस ने आसपास के लोगों पर नजर रखी। जहां हिंदू संगठनों के लोगों को आश्वासन दिया कि पुलिस जांच कर रही है, जल्द से जल्द केस को सॉल्व किया जाएगा। मौके पर पहुंचकर देखा तो यह बात साफ हो गई थी हत्या नजदीक के ही किसी लोगों ने की। जिस मंदिर में दोनों साधुओं की हत्या की गई। पहले यह देखा गया कि वहां आसपास कौन लोग आते हैं। जांच में सामने आया कि बाहरी लोग रात में नहीं आते, दिन में गांव के लोग और आसपास के लोग आते जाते रहते थे। फिर पुलिस ने आसपास घूमने वाले ऐसे लोगों को चिन्हित किया जो सूखा नशा करते थे। वह खुद मौके पर रहे, आसपास के लोगों को देखा। एक व्यक्ति द्वारा बताया गया कि हत्या से दो दिन पहले दोनों साधुओं का चिमटा गायब हो गया था, उसमें एक व्यक्ति से विवाद भी हुआ था। पुलिस को यहां से लगा कि केस सॉल्व हो जाएगा। इस व्यक्ति को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। युवक पर संदेह था, वह अर्धनग्न हालत में मिला। उससे पुलिस ने सादे कपड़ो में पूछताछ की। उसने बताया कि साधुओं ने मेरा अपमान किया था, जिसका बदला लेने के लिए रात में पहले साधु जगनदास को मारा, फिर सेवादास को भी मार दिया। आरोपी को अरेस्ट कर केस सॉल्व किया गया। वाराणसी में 5 बार पोस्टिंग क्यों मिली? इसके जवाब में संतोष कुमार सिंह ने कहा- यह बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद रहा है। जहां भी ट्रांसफर हुआ, वहां चला गया। कभी भी सीनियर अधिकारियों के सामने कुछ नहीं कहा। शुरुआत में डीएसपी बनने के बाद एटा में 3 साल रहा, लखीमपुर में एक साल फिर मथुरा में 3 साल सीओ रहा। वाराणसी में भी 5 साल सीओ रहा। 2006 में एडिशनल एसपी बनने के बाद 6 महीने बस्ती और 2 साल सुल्तानपुर में रहा। फिर ढाई साल एसटीएफ में रहा। इसके बाद एसपी सिटी वाराणसी रहा। तीसरी बार ATS में फिर वाराणसी की जिम्मेदारी मिली। 2016 में IPS बनने के बाद पूर्वी जोन वाराणसी में एसपी ATS रहा। ढाई साल SP चंदौली और 3 साल एसएसपी बुलंदशहर की जिम्मेदारी संभाली। डीआईजी बनने के बाद फिर अपर पुलिस आयुक्त के तौर पर वाराणसी में 5वीं बार तैनाती मिली। रिटायरमेंट के बाद क्या बदलाव आया? संतोष कुमार सिंह सेकेंड भर के लिए चुप रहे। फिर बोले- अभी मार्केट से सब्जी खरीदकर लाया हूं। पुलिस विभाग में जब सीओ और एडिशनल एसपी रहा, तब भी सुबह व शाम सब्जी व घर का अन्य सामान खुद ही खरीदकर लाता था। लेकिन जब कप्तान रैंक पर आया तो यह पद के विपरीत लगा। वह कहते हैं कि करीब आधी नौकरी तो वाराणसी में ही रही। अब किताबें पढ़ना, गांव में पहुंचकर कामकाज दिखवाना और परिवार को समय देना। मोटिवेशेन किताबें आज भी लगातार पढ़ता रहता हूं। बेटा भी बनना चाहता है IPS
संतोष सिंह अपनी शादी के बारे में बताते हैं कि परिवार की मर्जी से मेरा विवाह प्रार्थना सिंह के साथ हुआ। पुलिस विभाग में कई बार ऐसा भी मौका आया कि 24 घंटे भी घर नहीं आया। नौेकरी में हमेशा पत्नी ने साथ दिया। कई बार मुठभेड़ की खबर का पता चलता तो पत्नी कॉल कर पूछ लेतीं कि सब ठीक हैं। बड़े बेटे शशांक शेखर सिंह एयरपोर्ट के कॉमर्शियल मैनेजर हैं। छोटा बेटा सुभ्रांस सिंह यूपीएससी की तैयारी कर रहा है। वह भी IPS बनना चाहता है। अचीवमेंट्स खाकी वर्दी पिता की हत्या के बाद नीरज जादौन बने IPS: बीहड़ से निकला था होनहार इंजीनियर, 22 लाख का पैकेज छोड़ UPSC क्रैक किया 2015 बैच के आईपीएस अधिकारी नीरज कुमार जादौन इस समय हरदोई के एसपी हैं। सरेआम एक महिला से माफी मांगने और अपने एक्शन को लेकर चर्चा में हैं। हरदोई से पहले वह प्रयागराज, गाजियाबाद, अलीगढ़, हापुड़, बागपत और बिजनौर में तैनात रह चुके हैं। ढ़ाई लाख के इनामी को ढेर करने वाले इस आईपीएस अधिकारी ने हापुड़ में चर्चित गैंगरेप को सॉल्व किया। पढ़ें पूरी स्टोरी…