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मुस्लिम आबादी के बीच शिव मंदिर बना खंडहर:मुजफ्फरनगर में 1970 में बना था, सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदू कर गए पलायन

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मुजफ्फरनगर जिले के लद्धावाला मोहल्ले में स्थित एक शिव मंदिर जो कभी हिंदू समाज के आस्था का केंद्र था, आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस मंदिर की स्थिति और उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। 54 साल पहले 1970 में भगवान शिव शंकर के मंदिर की स्थापना हुई थी। लद्धावाला मोहल्ला कभी हिंदू बहुल क्षेत्र था, जहां हिंदू समाज के लोग धार्मिक पूजा-अर्चना के लिए नियमित रूप से शिव मंदिर जाते थे। यह मंदिर उस समय स्थापित किया गया था जब इस इलाके में हिंदू समाज की बड़ी संख्या हुआ करती थी। यहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना होती थी और कई धार्मिक आयोजन भी होते थे। मुस्लिम आबादी का बढ़ना और पलायन
समय के साथ, लद्धावाला में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत बढ़ने लगा। धीरे-धीरे हिंदू समाज के लोग अपनी सुरक्षा और धार्मिक भावनाओं के कारण इस इलाके से पलायन करने लगे। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से उस समय शुरू हुई जब 1992 में बाबरी मस्जिद विवाद और उसके बाद के सांप्रदायिक दंगों ने पूरे देश में एक तकरार की स्थिति उत्पन्न की। लद्धावाला में रहने वाले हिंदू परिवारों ने इस माहौल में असुरक्षा का अनुभव किया और अपने घरों को छोड़ने का निर्णय लिया। पलायन करते समय वे इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी अपने साथ ले गए। मंदिर का खंडहर में बदलना
वर्तमान में यह मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका है, जहां न तो पूजा होती है और न ही कोई मंदिर में स्थापित मूर्तियां हैं। यह मंदिर अब नाममात्र के रूप में मौजूद है। वर्तमान समय में इस इलाके में मुस्लिम समाज की अधिकता होने के कारण इस मंदिर में कोई हिंदू पूजा-अर्चना करने नहीं आता है। स्थानीय हिंदू निवासी बताते हैं कि मंदिर के आस-पास अतिक्रमण हो चुका है और कई दुकानों का निर्माण हुआ है। इनमें से कुछ दुकानें नॉनवेज की हैं, जिससे हिंदू समाज के लोग वहां जाने से कतराते हैं। हिंदुओं की स्थिति हुई बेहद कम
हालांकि, यह भी सच है कि मंदिर का अस्तित्व अब पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल्य इलाके में जा चुका है और हिंदू समाज की उपस्थिति वहां अब लगभग समाप्त हो चुकी है। इसके चलते, मंदिर को पुनः सक्रिय करने की संभावना बेहद कम है। इस मुद्दे पर एक सामाजिक और राजनीतिक बहस चल रही है, जिसमें मंदिर को फिर से सक्रिय करने या इसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए एक सांस्कृतिक स्थल के रूप में पुनर्निर्माण की बात की जा रही है। मंदिर की स्थिति और स्थानीय विवाद
इसके अलावा, मुस्लिम आबादी के बीच स्थित होने के कारण लोग धार्मिक कारणों से मंदिर के पास जाने से बचते हैं। मंदिर की खंडहर स्थिति को लेकर स्थानीय हिंदू समाज में एक गहरी निराशा है। उनका मानना है कि यह धार्मिक स्थल न केवल हिंदू समाज की पहचान था, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा था। उनका कहना है कि आज भी यदि इस मंदिर की मरम्मत की जाए और धार्मिक गतिविधियों को पुनः आरंभ किया जाए, तो यह समाज के एकता और सौहार्द के प्रतीक के रूप में उभर सकता है।

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