सिद्धिश्वर महादेव मंदिर करीब 300 साल पुराना है। हिंदू पक्ष का दावा है, यहां स्थापित शिवलिंग उससे भी पुराना। यह मंदिर काशी की प्राचीन नागर शैली में बना है। इसके अंदर-बाहर धार्मिक चिन्ह भी बने हैं। मंदिर के बाहर कमल पुष्प और शंख बनाए गए हैं। अंदर सनातनी चिह्न हैं। मंदिर 50 साल से अधिक समय से बंद है। संभल में मुस्लिम बहुल इलाके में मिले मंदिर को खुलवाने के बाद अब वाराणसी के मदनपुरा में 300 साल पुराना मंदिर सुर्खियों में है। मंदिर के दरवाजे पर सालों से ताला बंद है। यह मंदिर एक कोठी के अंदर मौजूद है। अब इस मंदिर में पूजा-पाठ करने की मांग उठने लगी है। सनातन रक्षक दल मंदिर का ताला खोलने पर अड़ा है। वहीं मुस्लिम समुदाय मंदिर खोलने के विरोध में है। मकान में रहने वालों का कहना है कि मंदिर को 80-100 साल से बंद ही देख रहे हैं। इसमें किसी देवी-देवता की प्रतिमा या शिवलिंग नहीं है। मंदिर का इतिहास और वजूद क्या है? जिस कोठी के अंदर मंदिर मौजूद है, उसका इतिहास क्या है? इस मंदिर को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्ष के दावे क्या-क्या हैं? प्रशासन इसको लेकर कितना संजीदा है, उसका रुख क्या है ? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम मदनपुरा पहुंची। दोनों पक्षों से बात भी की। मंदिर के बाहर और अंदर की स्थिति की पड़ताल करते हुए स्थानीय लोगों से इतिहास जाना। पढ़िए रिपोर्ट… पहले जानिए काशी के मदनपुरा का इतिहास
वाराणसी गलियों का शहर है। यहां हर गली में भगवान शंकर विराजमान हैं। काशी के प्राचीन मोहल्लों में शुमार मदनपुरा को सेठ मदनपाल सिंह के नाम पर बसाया गया था। बनारसी साड़ी कारोबारियों के इस मोहल्ले में मिश्रित आबादी रहती है। हिन्दू वर्ग में बंगाली समाज के कई घर हैं। वहीं 70 फीसदी मकान मुस्लिम समुदाय के हैं। इस मोहल्ले में केवल रिहायशी मकान ही नहीं व्यवसायिक दुकानें भी हैं। इतिहासकारों की माने तो इस क्षेत्र में गंगा स्नान से लौटेने वाले लोग गलियों में मंदिरों को जलाभिषेक करते थे और फिर अपने गंतव्य को जाते थे। बंगाली टोला की सराय या धर्मशालाओं में ठहरने वाले मदनपुरा के इसी मोहल्ले से दशाश्वमेध, केदार या अन्य घाटों तक जाते थे। पुरोहित इस क्षेत्र को सिद्धेश्वर और पुष्पदन्तेश्वर तीर्थ का नाम देते हैं। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए वह स्कन्द पुराण के काशी खंड में वर्णित श्लोक का जिक्र करते हैं। वह श्लोक भी पढ़कर सुनाते हैं- तदग्निदिशि देवर्षिगणलिङ्गान्यनेकशः। पुष्पदन्ताद्दक्षिणतः सिद्धीशः परसिद्धिदः॥ (पुष्पदन्तेश्वर) उनसे अग्निकोण पर देवता और ऋषिगण के स्थापित बहुतेरे लिंग विराजमान हैं। उक्त पुष्पदन्तेश्वर से दक्षिण परमसिद्धिप्रद सिद्धीश्वर हैं और विधिपूर्वक इनकी पूजा करने से कई फल मिलते हैं। पञ्चोपचारपूजातः स्वप्ने सिद्धिं परां दिशेत्। राज्यप्राप्तिर्भवेत्पुंसां हरिश्चन्द्रेशसेवया॥ यदि कोई उनकी पंचोपचार से पूजा करे तो उसे वे स्वप्न में परमसिद्धि को जता देते हैं। हरिश्चन्द्रेश्वर की पूजा और आराधना करने से लोगों को राज्य का लाभ होता है, यह राजयोग को मजबूत करते हैं। अब पढ़िए क्या कहते हैं हिंदू-मुस्लिम पक्ष के लोग… अजय शर्मा बोले- पुराणों में मंदिर का वर्णन
सनातन रक्षक दल के अजय शर्मा पिछले दिनों शिव मंदिरों से साईं प्रतिमाएं हटाने के बाद चर्चा में आए थे। अब अजय शर्मा काशी के बंद शिव मंदिरों का ताला खुलवाने की मुहिम में जुट गए हैं। उनका दावा है कि कोठी में शिव मंदिर है। जिसका पुराणों में जिक्र है। इसकी तस्वीरें भी पहले से पुस्तकों में हैं। मंदिर करीब 300 साल पुराना है और शिवलिंग उससे भी पहले का। उनका कहना है कि शिवलिंग मिट्टी में दबा है। अगर अंदर शिवलिंग नहीं मिला तो माना जाएगा किसी ने शिवलिंग को चोरी या क्षतिग्रस्त कर दिया है। ऐसे हालात में हम मंदिर में मूर्तियों की स्थापना कर पूजा पाठ करेंगे। मुस्लिम पक्ष बोला-मंदिर उनकी प्रॉपर्टी का हिस्सा
कोठी में रहने वाले मोहम्मद इमराम, मोहम्मद अल्ताफ ने मंदिर खोले जाने का विरोध किया। कहा कि यह उनकी प्रॉपर्टी का हिस्सा है। मंदिर होने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं, इसीलिए तो इतने सालों से सुरक्षित खड़ा है। हमारे पूर्वजों ने जो मकान लिया है। उसके धार्मिक पक्ष को हमने कभी प्रभावित नहीं किया। अब तक तमाम सरकारें आईं गईं, लेकिन किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। अब इस मंदिर को दबाव बनाकर खोलना और कई दावे करना समझ से बाहर है। कारोबारी खालिद जमाल ने बताया कि हम 45 साल से मंदिर को देख रहे हैं। यह तभी से बंद पड़ा है। इसकी मिलकियत ताज खान परिवार के पास है, जो यहां पर करीब 150 सालों से रह रहा है। पूरा इलाका बुनकरों का है, यहां पर साड़ियां बनती हैं और बिकती हैं। स्थानीय लोगों की माने तो 70-75 साल की उम्र में किसी ने इसको कभी खुलते नहीं देखा। यह हमारे बाप-दादा के जमाने से बंद है। अब जानिए मंदिर की वर्तमान हालत
सघन मुस्लिम इलाके के ताले में बंद मंदिर के गर्भगृह में करीब कई फीट मिट्टी भरी हुई है। बाहर से देखने पर केवल मिट्टी और गंदगी कूडा नजर आता है। अंदर के किसी स्थान को बाहर से देखा नहीं जा सकता। मंदिर के लिए कोई सीढ़ी भी नहीं बनी है, लेकिन उसके निशान हैं। लोग शिवलिंग को पौराणिक मान रहे हैं, इस मंदिर के बगल में सिंह कूप को भी खोज लिया गया है। वहीं इस मामले में श्री काशी विद्वत परिषद की एंट्री के बाद मदनपुरा मंदिर विवाद को मजबूती मिली है। विद्वत परिषद ने जल्द ही वहां प्रतिनिधिमंडल भेजकर स्थानीय निरीक्षण कराएगा। सरकार और प्रशासन से नियमित राग भोग और दर्शन-पूजन की व्यवस्था की मांग करेगा। वहीं, एडीएम आलोक वर्मा ने एक सप्ताह में दस्तावेजी जांच के बाद कोई फैसला लेने की बात कही है। अब जानिए उस कोठी का इतिहास, जिसमें मंदिर है मुस्लिम पक्ष ने 1900 में बंगाल रियासत के राय साहब से खरीदी थी कोठी
मदनपुरा के गोल चबूतरा मैदान में मंदिर के पास बना मकान बंगाल की रियासत के राय साहब का था, जिसे सन 1900 के आसपास बनारसी साड़ी और अन्य कारोबार के लिए उपयोग किया जाता था। मकान में रियासत के सिपहसालार और कारखास रहते थे। सन 1900 के बाद बंगाल की करखी रियासत से जुड़े रईस से हमारे पूर्वज मो. ताज खान उर्फ ताज बाबा ने ये प्रॉपर्टी खरीद ली। ताज बाबा तीन भाई थे और सभी इसी मकान में रहकर बनारसी साड़ी का कारोबार में जुट गए। मोहम्मदा ताज खान उर्फ ताज बाबा के कारोबार का विस्तार हुआ और पीढ़ियां बढ़ने के साथ मकान का बंटवारा भी हो गया। छह मंजिला मकान अलग-अलग खंडों में चचेरे भाइयों के बीच बंट गया। अब इसमें आठ-दस परिवार रहते हैं और जिसमें अधिकांश साड़ी कारोबार या नौकरीपेशा है। परिजनों की माने तो मकान खरीदे जाने के बाद बाहर बने मंदिर को लेकर ताज बाबा की कोई रुचि नहीं रही और किसी ने इस पर अपना दावा भी नहीं किया। अब जानिए प्रशासनिक अफसर क्या कहते हैं
DCP काशी जोन गौरव बंसवाल ने बताया- मंदिर पुराना है। गेट पर ताला बंद है। कोई यह नहीं बता सका कि मंदिर का मालिकाना हक किसके पास है। प्रशासन की टीम मौके का मुआयना कर रही है। इसके बाद स्थिति स्पष्ट होगी। वहीं ADM सिटी आलोक वर्मा ने कहा- हिंदू पक्ष के लोगों को समझाया गया है। हम इस पूरे मामले में जांच करेंगे। एक सप्ताह बाद हम यह आदेश देंगे कि यह मंदिर कब खोला जाएगा। उन्होंने कहा कि बाहर से सार्वजनिक प्रॉपर्टी लग रही है, लेकिन हम इसका एक बार पहले जांच करेंगे। मंदिर की डिटेल जुटाने के लिए प्रशासन को 2 दिन का समय दिया जाए। ताकि मंदिर को लेकर पूरी जानकारी सामने आ जाए। दस्तावेजों की जांच के बाद यह तय होगा कि मौजूदा स्थिति क्या है? ————————– ये भी पढ़ें: संभल में एक और बंद मंदिर मिला:1978 के दंगे के बाद हिंदू परिवार पलायन कर गए थे, तब से बंद है मंदिर संभल में 4 दिन में 2 बंद मंदिर मिले हैं। दोनों मुस्लिम बहुल इलाके में हैं। पहला कार्तिकेश्वर मंदिर 14 दिसंबर को जामा मस्जिद से डेढ़ किलोमीटर खग्गूसराय में मिला था। दूसरा आज यानी मंगलवार को हयात नगर के सरायतरीन में मिला। मंदिरों की बीच की दूरी 2 किलोमीटर है…(पढ़ें पूरी खबर)