मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। वह भी ऐसी कि हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा है। दरअसल, विभाग ने साल 2018 में आयोजित हाई स्कूल भर्ती परीक्षा में शैक्षणिक योग्यता का पैमाना “प्रतिशत” की बजाय “सेकेंड डिवीजन” कर दिया था। तीन साल बाद 2021 में जब भर्ती परीक्षा का रिजल्ट आया तो विभाग ने 250 चयनित कैंडिडेट्स को नियुक्ति देने के बाद केवल इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उनकी मार्कशीट में थर्ड डिवीजन लिखा था। जबकि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की गाइडलाइन के मुताबिक ये सभी भर्ती परीक्षा के लिए पात्र थे। खास बात ये है कि ऐसे कैंडिडेट्स जिनके नंबर इन 250 कैंडिडेट्स के बराबर थे मगर उनकी मार्कशीट में सेकेंड डिवीजन लिखा था, उन्हें नौकरी से नहीं निकाला गया। विभाग की इस लापरवाही के खिलाफ कैंडिडेट्स ने जबलपुर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने सरकार को दो टूक आदेश दिए हैं कि या तो वह दो दिन में अपने नियम में संशोधन कर सभी याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति दे, नहीं तो 50% से कम अंक वाले सभी चयनित शिक्षकों को भी बाहर का रास्ता दिखाए। आखिर, क्या है ये पूरा मामला…पढ़िए रिपोर्ट पहले जानिए, क्या है पूरा मामला
हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले अवनीश त्रिपाठी कहते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग ने विधानसभा 2018 चुनाव से पहले शिक्षक वर्ग-1 की भर्ती निकाली थी। सरकार की मंशा चुनाव से पहले शिक्षकों की भर्ती से माइलेज लेने की थी, लेकिन विभाग ने हड़बड़ी में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के नियमों के विपरीत विज्ञापन निकाला। इसमें पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) में 45 प्रतिशत अंकों की न्यूनतम योग्यता की बजाय सेकेंड डिवीजन लिखा गया। इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग आवेदन नहीं कर पाए। तब सीधी जिले के सत्यभान सिंह कुशवाह ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने एनसीटीई के गजट को आधार बनाकर मप्र सरकार से नियमों में बदलाव कराने की मांग रखी। कोर्ट के अंतरिम आदेश पर ऐसे लोगों को भी आवेदन करने की अनुमति दी गई, जिनके पीजी में कुल अंक 45 या इससे अधिक हैं। पूरे देश में किसी भी भर्ती के लिए प्रतिशत को ही आधार बनाने का नियम है। विभाग ने बिना नियम बदले परीक्षा ली
अभ्यर्थियों ने तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक जोशी और लोक शिक्षण विभाग की तत्कालीन सचिव दीप्ति गौड़ से मिलकर इस त्रुटि से अवगत कराया था। तब दोनों ने आश्वस्त किया था कि नियम गलत निर्धारित किए गए हैं, तो इन्हें बदला जाएगा। चुनाव के बाद भर्ती परीक्षा टलती रही। 2020 में किसी तरह बिना नियम बदले परीक्षा कराई गई। फिर अक्टूबर 2021 में चयन सूची जारी करते हुए काउंसिलिंग शुरू की गई। विभाग द्वारा जारी चयन सूची में 250 ऐसे अभ्यर्थी भी शामिल थे, जिनके पीजी के अंक 45 प्रतिशत से अधिक थे लेकिन उनकी अंक सूची में थर्ड डिवीजन लिखा था। ऐसे सभी लोग काउंसिलिंग के बाद और कुछ तो एक से दो वेतन उठाने के बाद बाहर कर दिए गए। सभी को कारण बताया गया कि उनकी अंक सूची में थर्ड डिवीजन लिखा है जबकि भर्ती के लिए पीजी में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता सेकेंड डिवीजन है। पीड़ितों ने 2021 में कोर्ट में लगाई याचिका
शिक्षक भर्ती की काउंसिलिंग से बाहर किए गए अभ्यर्थियों में शामिल भिंड के अवनीश त्रिपाठी, शिवानी शाह, हेमंत चौधरी, हुसैन मोहम्मद, प्रदीप अहिरवार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई। याचिकाकर्ताओं के वकील की तरफ से हाईकोर्ट में दो प्रमुख बिंदु रखे गए- 1. अलग-अलग यूनिवर्सिटी में डिवीजन का क्राइटेरिया अलग-अलग: हाईकोर्ट को बताया गया कि प्रदेश में अलग-अलग यूनिवर्सिटी में सेकेंड और थर्ड डिवीजन का पैमाना अलग-अलग है। मध्यप्रदेश भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय और बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल में 45% अंक को सेकेंड डिवीजन में माना जाता है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर और जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में 48 प्रतिशत अंक पर सेकेंड डिवीजन मानी जाती है। वहीं, डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में सेकेंड डिवीजन का पैमाना 50 प्रतिशत अंक है। 2. NCTE की गाइडलाइन में योग्यता का पैमाना प्रतिशत: राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की गाइडलाइन कहती है कि 45 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ एमए करने वाला शिक्षक वर्ग-1 (हाईस्कूल टीचर) की भर्ती के लिए पात्रता रखता है। एमपी के स्कूल शिक्षा विभाग ने भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता को “प्रतिशत” की बजाय “सेकेंड डिवीजन” कर दिया। 45% वालों की नौकरी दी, 48% को निकाला
हाईकोर्ट में लोक शिक्षण संचालनालय (DPI) ने शपथ पत्र देकर कहा कि भर्ती हुए 448 शिक्षक ऐसे हैं, जिनके पीजी में 45% से अधिक तथा 50% से कम अंक हैं। इनकी अंक सूची में सेकेंड डिवीजन लिखा होने के कारण इन्हें नियुक्ति दी गई। वहीं, 250 अभ्यर्थी ऐसे हैं, जिनके पीजी के अंक 50% से कम लेकिन 45% से अधिक हैं। इनकी अंक सूची में तृतीय श्रेणी लिखी होने के कारण नियुक्ति नहीं दी गईं। कोर्ट ने रिपोर्ट को अपर्याप्त माना
16 दिसंबर को मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच में इस याचिका की सुनवाई हुई। मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि कोर्ट ने मप्र सरकार को पर्याप्त अवसर दिया था। इसके बाद भी पूरी जानकारी नहीं दी गई। इसे कोर्ट ने गंभीरता से लिया। सरकार ने 13 दिसंबर 2024 को जो रिपोर्ट पेश की थी, उसे भी कोर्ट ने अपर्याप्त माना। सरकार को निर्देश दिए कि इस विवादित नियम को तत्काल संशोधन कर 19 दिसंबर तक कोर्ट को सूचित किया जाए। अब जानिए, किस हाल में हैं नौकरी से निकाले गए कैंडिडेट्स बेरोजगार हूं, दो बच्चों की जिम्मेदारी
भिंड निवासी मुख्य याचिकाकर्ता अवनीश त्रिपाठी कहते हैं कि शादी हो गई है। दो बच्चे हैं। बड़ी बिटिया 12वीं में पढ़ रही है। शासन की गलत नीतियों के कारण मैं आज भी बेरोजगार हूं। मेरिट लिस्ट में बॉयोलॉजी विषय में मेरी 12वीं रैंक थी। पीजी में मेरे अंक 47 प्रतिशत से अधिक थे लेकिन अंकसूची में तृतीय श्रेणी लिखे होने के चलते काउंसिलिंग में मुझे बाहर कर दिया गया। गेस्ट टीचर बनकर पढ़ा रहा हूं
सागर जिले के बंडा निवासी हेमंत चौधरी ने डॉ. हरिसिंह गौर विवि से पीजी किया है। वो 14 हजार रुपए में गेस्ट टीचर के तौर पर पढ़ा रहे हैं। चौधरी बताते हैं- मेरे 47.1% हैं लेकिन अंक सूची में तृतीय श्रेणी लिखा है। इसकी वजह से मुझे काउंसिलिंग में ही बाहर कर दिया गया जबकि मेरिट में 90वां स्थान था। मुझसे कम अंक वाले आज टीचर हैं, उन्हें 50 हजार रुपए मिल रहे हैं। मेरे से कम अंक वाले पढ़ा रहे, मुझे निकाला
श्योपुर जिले के रहने वाले ऋषिकेश मीना ने डॉ. भीमराव अंबेडकर एग्रीकल्चर विवि, आगरा से कृषि में पीजी किया है। पीजी में उनके अंक 47.87 हैं। इस विवि में 50 प्रतिशत से अधिक अंक वालों को ही सेकेंड डिवीजन की श्रेणी में रखा जाता है। वर्तमान में एग्रीकल्चर से जुड़े एक प्राइवेट फर्म में जॉब कर रहे हैं। संस्कृत से एमए किया, नौकरी नहीं मिली
कोटा, राजस्थान के रहने वाले हुसैन मोहम्मद की रैंक भर्ती परीक्षा में 341वीं थी। उन्होंने कोटा विवि से संस्कृत में एमए किया है। एमए में उनके अंक 45.09 प्रतिशत हैं। वहां 48 प्रतिशत वालों को सेकेंड डिवीजन माना जाता है। हुसैन मोहम्मद कहते हैं कि शादीशुदा हूं। दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी है। इस बेरोजगारी के दौर में कैसे खर्च निकाल रहा हूं, मेरी अंतरात्मा ही जानती है।